- 329 Posts
- 1555 Comments
फेसबुक उस व्यक्तिगत डायरी के समान है, जो हमने अपने दोस्तों के लिए ओपन कर दी है. जहां पहले छिप-छिपकर डायरियां लिखी जाती थी, वहीं अब भी एकांत में ही लिखी जाती है.लेकिन अब बात आती है सोशल साइट्स की तो इतना समझ लीजिए कि जब डायरी ओपन हो ही गई है, तब दूसरे से बेहतर होने की होड़ में चाहे-अनचाहे दोस्त भी लिस्ट में जुड़ते चले जाते है. क्योंकि यहां लाइक-कमेंट का सवाल होता है. अब चूंकि इंसानी स्वभाव के मुताबिक (अपने से बेहतर से दोस्ती और पहचान) के चलते बातचीत के ऑप्शन का. जितनी तेजी से फेसबुक इंसानी जिंदगी में शामिल हआ, उतनी ही तेजी से फेमस होने की इच्छा भी. तब ऐसे में चिढऩे जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए. अपने स्वभाव के अनुसार दोस्त हो या न हो यह स्वयं पर निर्भर करता है. यहां पर खूबसूरती के अपनी सोच को शब्दों का आकार देना ही आपकी पहचान और स्वभाव है. फेसबुक में फेस की बात तो भूल ही जाइए. दिक्कत होने पर अनफे्रंड का ऑप्शन है ही. यह आपका अधिकार है कि किसी भी समय किसी को भी अपनी लिस्ट से बाहर कर दिया जाए. तब ऐसे में हल्ला मचाने या ढोल पीटने की जरूरत ही क्या है. जबकि सच यह है कि लाइक-कमेंट की संख्या में गिरावट का डर ही अनफ्रेंड ऑप्शन पर क्लिक करने से रोकता है. फिर दूसरी बात हर कोई इतना समझदार होता तो साहित्यकार न बन जाता. अपनी टूटी-फूटी समझ के आधार पर खुद को बेहतर साबित करने के लिए कोई कॉपी-पेस्ट भी कर रहा है तो क्या. यहां कौन सा पुलित्जर पुरस्कार मिलेगा या रोज लगातार लिखने की रॉयल्टी के चैक एकाउंट में डिपोजिट होने है. भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ वक्त फुर्सत के निकाल कर कुछ को डायरी लिखने से सुकून मिलता है तो किसी को पढऩे में. बस इतनी सी बात का बतंगड़ बनाने से अच्छा है, अपनी डायरी को क्लोज कर दिया जाए या अनचाहे दोस्त को विदाई दे दी जाए.
Read Comments