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शायद आपको अच्छा न लगे

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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किसी के दिल को ठेस लगे तो माफ कर देना, हमारे समाज में किसी शख्स की सबसे ज्यादा इज्जत थी या है, तो वह है ‘पत्रकार’. समाज का हर वर्ग इस पत्रकार से परोक्षअपरोक्ष रूप से जुड़ा होता है. अपने आसपास क्याक्या, कौनकौन सी घटनाएं घटित हुई है, इसके माध्यम से ही लोगों को पता चलती है. वर्षों पहले समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण या आजादी का आंदोलन या फिर और बातें. सभी में पत्रकारों ने मुख्य भूमिका निभाई थी. उन्होंने ही उस समय समाचारों को जनजन तक पहुंचाने के लिए समाचारपत्रों की स्थापना की थी. पत्रकार ही आज भटकते समाज को जोडऩे का दायित्व बखूबी निभा सकते है. पर अफसोस होता है कि जब आज के पत्रकार अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से दूर भाग रहे है. उनका मकसद सिर्फ पैसा ही रह गया है. समाज की सबसे मर्यादित व सम्मानित धारा को व्यापार बना देना, क्या जरूरी है? माना एक इंसान की जिंदगी में पैसा बहुत अहमियत रखता है, पर इतनी भी नहीं कि वह सुकून से जी सके. और वह इंसान जब पत्रकारिता जैसे माध्यम में अपने को शामिल कर ले. हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए जो जिम्मेदारियां छोड़ी थी, हम उनसे दूर होते जा रहे है. आज घटित घटनाओं से ज्यादा जरूरी है, भटक रहे समाज को जोडऩा, उसमें फैली बुराइयों के खिलाफ जनजागरण की सार्थक पहल को बढ़ावा देना. जिसके लिए समाज के महत्वपूर्ण व जिम्मेदार व्यक्तियों को मुख्य भूमिका में आने की आवश्यकता है. शायद मेरी सोच आपको अच्छी न लगे कि ‘अगर सभी पत्रकार एक साथ मिलकर भ्रष्टाचार, भ्रष्ट नेताओं और समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ सार्थक जंग छेड दे, तो हम सोच भी नहीं सकते कि इसके परिणाम कितने सुखद होगे, भले ही रामराज्य या गांधी युग न आए, पर सुव्यस्थित और भ्रष्टाचार मुक्त समाज की ओर पहला कदम तो सफलता से पार हो जाएगा.

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