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सोचा चलो कुछ लिखा जाए। लिखने बैठा तो समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखा जाए। सब कुछ तो लिखा जा चुका है। फिर मैं नया क्या लिख सकता हूँ। सोचते सोचते बहुत सोचा पर समझ नहीं आया। पता नहीं लोग कैसे लिख लेते है। सबसे कठिन काम है कुछ भी लिखना। जिसे कोई पढ़ सके। लोग बड़ी बड़ी बातें कितनी आसानी से लिख लेते है। उन्हें लिखते हुए देख कर लगता है कि क्या मैं भी कभी उनकी तरह लिख सकूगा। सबसे अच्छा काम है कुछ पढ़ना और थोड़ा बहुत लिख लेना। पर क्या करे लिखने की आदत भी तो होनी चाहिए। यहाँ तो दूसरो में कमियां निकालने के अलावा कोई दूसरा काम सिखा हो तो न। उम्मीद है आने वाले समय में आपके साथ कुछ अच्छा लिखने की आदत पढ़ जाए और आपको कुछ अच्छा पढने को मिल जाए। कभी कभी सोचता हूँ कि क्या हम अपनी जिन्दगी के साथ न्याय कर पायेगे। या फिर यूँ ही एक दिन इस दुनिया से चले जायेगें। अगर हम कुछ कर पाए तो ठीक। नही तो एक दिन तो चले ही जाना है। फिर क्यों मारामारी, क्यों हाय-तौबा। समझ नहीं आता। क्यों नहीं लोग आराम से अपनी ज़िन्दगी जीते है। हर तरफ़ दहशत का माहोल बना हुआ है। हर इन्सान डरा हुआ है। आख़िर क्यों। ऐसा कब तक। यह सब ठीक करना इन्सान के बस में ही है। कोई मसीहा नहीं आने वाला है। सब कुछ अपने आप करना होगा। चाहे अभी कर लो। या सब कुछ ख़त्म होने का इंतज़ार। फिर सोचता हूँ कि यहीं तो ज़िन्दगी है। ऐसे ही चलती रहेगी। हम बातें करेगे और भूल जायेगें क्योंकि भूलना हमारी आदत बन चुकी है. मैं खुद भूल गया, कुछ नया लिखने बैठा था, पर इस लेख को लिखने के चक्कर में ऐसा पड़ा कि समय का पता ही नहीं चला. अब फिर लिखने कोशिश करूँगा.
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