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अपनों पर भरोसा नहीं तो…

Harish Bhatt
Harish Bhatt
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देश को उठाने वाले खुद कितना नीचे तक गिरेंगे, अभी तक मालूम नहीं चला और जनता है कि नारे लगाते-लगाते थक गई है, जागो, उठो और छू लो आसमां। गौरवशाली इतिहास और जोश जगाने वाली कविताओं और भाषणों से सराबोर भारत में वर्तमान परिदृश्य में दिलेर व साहसी नेताओं के बयान और कार्यप्रणाली समझ से बाहर है, ऐसा क्यों और कब तक होता रहेगा, कुछ पता नहीं। जिस जनता ने नेताओं को उठाया और उठाकर अपने पर राज करने का अधिकार दे दिया, वह नेता आखिर कितना नीचे तक गिरते चले जाएंगे, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। आजकल तो इनके नीचे गिरने का आलम यह है कि लगभग हर दिन एक नई खबर सामने आ जाती है, आज फलां नेता जी जेल जा रहे है, आज फलां नेताजी के घर पर छापा, अभी न जाने कितने पर गाज गिरना तय है। और हकीकत में जिनको जेल के अंदर होना चाहिए, वह बाहर खुलेआम दीवाली के पटाखों की तरह बम फोडे जा रहे है। आम जनता गाजर-मूली की तरह मारी जा रही है। जिनके कंधों पर देश व जनता को बचाने की जिम्मेदारी है, उनके कंधे इतना टूट चुके है, वह उन कंधों को ठीक कराने के चक्कर में ठीक से अपने पैरों पर भी खडे नहीं पा रहे है। खुद सिक्योरिटी में चलने वाले क्या जाने जनता का दर्द। फिर कहा भी जाता है, कब्र के हाल तो मुर्दा ही जानता है, जिसके घर का कोई सदस्य असमय साथ छोड देता है, वही जान सकता है, उस पर क्या बितती होगी, बाकी तो सब बकवास है, सांत्वना देना, मुआवजा देना, यह तो सब दिखावटी सा लगता है। अगर जनता की इतनी ही चिंता है, तो क्यों नहीं कोई ठोस कदम उठाते आतंकवाद से निपटने के लिए। आखिर आपको क्या चाहिए, आप सरकार है, आप नियम-कानून बनाते है, आपके पास हर फैसले लेने का अधिकार है। आपके पास इतना फोर्स है कि अगर कोई शांतिपूर्ण आंदोलन करे तो आप उस लाठीचार्ज करवा देते है, और कहते है कि इसके अलावा कोई चारा नहीं था, जबकि आपको यह बात भी बहुत अच्छी तरह से मालूम होती है, यह तो अपना ही वोटर है, जिनसे आपको वोट देकर इस लायक बनाया कि आज आप उनकी जिंदगी के फैसले ले सके। वह तो हर समय आपके साथ है। आप एक बार आंतकवाद के खिलाफ कोई ठोस पहल तो कीजिए। यह तो तय है कि अगर आपने कोई ठोस पहल की, तो कोई आपका कुछ नहीं बिगाड पाएगा, उल्टे आप इतना उठ जाएंगे कि जितना आप सोच भी नहीं सकते। आखिर आपको जनता ने उठकर कर देश चलाने के लिए चुनाव में जिताया था, न की नीचे गिरने के लिए। हां एक जरूरी बात कि अगर नेताओं को अपने देश के नागरिकों पर भरोसा नहीं है, जैसे खिलाडियों के लिए विदेशी कोचों की नियुक्तियां, महंगाई दूर करने के लिए विदेशो से कर्ज लेने की बात, अपना धन अपने बैंकों में न जमा कर विदेशी बैंकों में जमा करवाना, अपनी बीमारियों का इलाज करवाने के लिए अपने चिकित्सकों को छोड़कर अमेरिका जाना, अपने बच्चों को पढने के लिए विदेश भेजना साथ ही हर बात के लिए विदेशियो को बेहतर ठहराना, तो फिर आतंकवाद के खिलाफ लडने के लिए अमेरिका जैसी इच्छाशक्ति अपनाने से परहेज क्यों?

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