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मैदान में पहाड़ आया, वह भी कई रूपों में संस्कृति की बात करें तो पर्वतीय संस्कृति मैदान में झलकी, रसूख की बात करें तो राजनीति में पहाड़ जैसा रसूख रखने वाले भी मैदान यानी जमीन पर नजर आए। मौका था ढालवाला के ‘मुखिया जी’ की शादी का। जहां न कोई राजा और न कोई रंक थे। यहां चली तो सिर्फ महाराज यानी सरोले की।
पहाड़ की शादियों में पलायन से खाली हुए गांव और यहां होने वाली परंपरागत शादियों को एक सरोला (भोजन बनाने वाला) निपटा देता है। टिहरी जनपद की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत ढालवाला जो मैदानी परिवेश में रची बसी है वहां के प्रधान रोशन रतूड़ी ने अपने विवाह में एक मिसाल पेश की। शांतिकुंज हरिद्वार में सादगी के साथ सात फेरे लिए और रविवार को ढालवाला में स्नेहिल भोज का आयोजन किया। इस भोज में न कोई हलवाई था और न वेटर। न ही क्रॉकरी थी और न ही डीजे। फिर भी शादी यादगार बन कर रह गई। गढ़ संस्कृति के अनुरूप दावत में पंगत परंपरा निभाई गई। जूते उतार कर पंगत में मेहमान बैठे। सरोलों ने पत्तल परोसे, परंपरागत गुड़ की मिठास में डूबा भात परोसा गया। उसके बाद भात और ऊपर से भड्डू में बनी तोर और राजमा की दाल। मैदान में हुई शादी में पहाड़ी तड़का लगा पत्तल के ऊपर देशी घी का। पंगत में करीब चार हजार से अधिक लोग पहाड़ी सिस्टम से दाल-भात छक गए। अहम बात यह थी कि विधायक हो या पूर्व विधायक या जिला पंचायत सदस्य या निकाय के चेयर मैन या इन्हें कुर्सी सौंपने वाले आम जन सभी जमीन पर पंगत में एक साथ नजर आए।
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