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चलिए, मान लीजिए लोकपाल बिल ठीक वैसे ही पास हो गया, जैसा अन्ना हजारे और उनकी टीम चाहती है, तो इस बात की क्या गारंटी है कि हमारे देश से भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा. साथ ही जो लोकपाल बनेगा वह राजा हरीशचंद्र का प्रतिरूप होगा. क्या लोकपाल के आते ही भ्रष्टाचारी जेलों में जाना शुरू हो जाएगे, क्या लोग अपनी आदतें बदल लेंगे. क्या लोग रिश्वत लेना बंद कर देंगे. क्या लोग ईमानदारी से ईमानदारी से अपने नेता का चुनाव करने लगेंगे. क्या सरकारी नौकरियों में घोटाले नहीं होंगे. बातें करना अच्छा लगता है, क्योंकि जो बातें हमको हकीकत की दुनिया से निकालकर सपनों की दुनिया में ले जाए, उन बातों का क्या कहना. महात्मा गांधी जी ने स्वराज की कल्पना की थी, उन्होंने भी अपने देश को विदेशियों से मुक्त कराने के लिए एक लंबी और सफल लड़ाई लड़ी थी. उन्होंने किसी भी बात पर विवाद नहीं चाहा, इसके लिए उन्होंने बेमन से भारत-पाक बंटवारा भी स्वीकार कर लिया था. लेकिन इन सब बातों का क्या नतीजा निकला, आज बच्चा-बच्चा जानता है. आखिर यह बात समझ नहीं आती है कि लोकपाल बनने से क्या हो जाएगा. किसी भी पार्टी का टिकट हासिल करके चुनाव लडऩे के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने वाला क्या अपने पैसों की भरपाई नहीं करेगा या सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए जिसने लाखों रुपए रिश्वत के रूप में दिए हो वह ईमानदार क्यों बनेगा, जब तक वह अपने पूरे पैसे अपनी नौकरी पर रहते हुए हासिल नहीं कर लेगा, तब तक वह ईमानदार कैसे बन सकता है. इसलिए जैसा चल रहा है, वैसा ही ठीक है, हर काम के लिए सुविधा शुल्क देना स्टेटस सिंबल बन गया है, बहुत ही छोटी सी बात है आपके बच्चे का नर्सरी में फ्री में एडमिशन हो गया तो आप बैकवर्ड क्लास में गिने जाएगे, लेकिन अगर आपने लाखों रुपया खर्च करके पब्लिक स्कूल में एडमिशन करवा दिया तो आप हाई सोसाइटी में गिने जाने लगते है और आजकल हर कोई लोअर क्लास से हाई क्लास में जाने की कवायद में लगा है तो फिर हम कैसे अपने देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करवा पायेंगे. लोकपाल के इंतजार से ज्यादा अच्छा हर भारतवासी को अपनी सोच को बदलना होगा.
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