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अन्ना तुम तो सही हो पर…

हस्तक्षेप..
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अन्ना तुम फिर से हमारा आह्वान कर के जंतर मंतर पर जा रहे हो, हम फिर से आ जायेंगे लेकिन कहीं कुछ टीस रहा है, विश्वास कहीं कुछ कमजोर सा हो गया है. पिछली बार हम आये थे क्योंकि तुम हमारे लिये अनशन पर थे, इस बार भी तुम्हारे अनशन का कारण हम ही हैं लेकिन शंका तुम्हारे साथ के लोगों पर होने लगी है.
क्या तुम जानते हो, पिछली बार जब आये थे तो तुम्हारी टीम मे एक नक्सली समर्थक, काश्मीरी अलवाववादियों का समर्थक, धर्मनिरपेक्ष किंतु भगवा चोलाधारी, पूर्व राजनैतिक नेता, स्वयंभू आर्यसमाजी अग्निवेश भी तुम्हारे साथ खडे थे, जो बाद मे अमरनाथ यात्रा पर जाने वालों को पाखंडी कह गये थे. किंतु तुमने या तुम्हारी टीम ने उनके भूतकाल को देखते हुए भी उन्हे अपने साथ खडा होने दिया. क्या भ्रष्टाचार मिटाने के लिये एक ऐसे व्यक्ति का साथ आवश्यक था जो देश को तोडने का समर्थक हो?
तुम अनशन पर बैठे, तुम्हारे साथ अनेकों लोग जुड गये, अंत मे सरकार झुकी और तुम्हारी टीम ने स्वयं को भी लोकपाल टीम के लिये गठित कमेटी मे रखवा लिया, किंतु क्या तुम्हे किसी ने एक बात बताई? तुम्हारे अनशन से उठने के बाद शाम को इंडिया गेट पर लोग इकट्ठा हुए और खुशी मना रहे थे, उसी बीच  वहॉ एक तथाकथित बडे न्यूज चैनल की एक पत्रकार आई, जिसका नाम नीरा राडिया के साथ राजनेताओं की लॉबिंग करने मे आ चुका है, तुम्हे समर्थन देने वालो ने उसके भ्रष्ट आचरण का ध्यान कर के उसके विरोध मे नारे लगाने शुरु कर दिये कि उसे पत्रकारिता करने का कोई अधिकार नही है. तुम्हारे समर्थकों की इस खुशी को और भ्रष्ट लोगों के विरोध मे उठ रहे स्वरों को संपूर्ण राष्ट्र के साथ बॉटने के लिये उस वीडियो को तुम्हारे आंदोलन के अधिकारिक फेसबुक पेज http://facebook.com/IndiACor पर डाला गया, किंतु एक घंटे से भी कम समय मे उसे हटा दिया गया.
अन्ना क्या तुम उत्तर दे सकोगे, कि ऐसा क्यों हुआ? क्या वो भ्रष्टाचार के विरुद्ध उस युवक का गुस्सा नही था? क्या जिसका विरोध तुम्हारी टीम करे मात्र वही भ्रष्टाचार कहलायेगा? और जो तुम्हारी टीम का समर्थन करेगा, ऐसा अग्निवेश तो पवित्र माना जायेगा किंतु ऐसे समर्थक, जो अपनी क्षणिक विजय को देख कर भ्रष्ट पत्रकारों के विरोध मे नारे लगाये, उसका विरोध क्या दिखाने लायक भी नही माना जायेगा?
हमने कमेटी बनने के उत्साह मे इस बात को भुला दिया, अन्ना जब तुमने अपनी पहली रैली की थी वहॉ सुब्रण्यम स्वामी बैठे थे, जो अनेकों भ्रष्टाचारों के पता चलने का कारण हैं, और उनकी बुद्धि क्षमता पर भी कोई शायद ही उंगली उठाये, किरन बेदी भी तुम्हारे साथ थी, जिन्हे सरकारी तंत्र का अच्छा ज्ञान है, किंतु लोकपाल गठित करने के लिये जो टीम भेजी गयी, उसमे इन दोनो का नाम नही था. किरन बेदी जी यदि तैयार नही थी तो क्या उन्हें मनाया नही जा सका? अन्ना तुम कपिल सिब्बल जैसे व्यक्ति को झुका सकते हो, क्या एक किरन बेदी को नही मना सके? क्या हम इस कथन पर विश्वास कर लें कि किरन बेदी नही मानी किंतु क्या उन्हे मनाने का प्रयास मन से किया गया था?
अन्ना, लोकपाल एक संवैधानिक व्यवस्था बनाई जानी है, ऐसी व्यवस्था के लिये संविधान के विशेषज्ञों का होना आवश्यक है, तुम्हारी ओर से संतोष हेगडे जी को भेजे जाने का कारण समझ मे आता है,  तुम्हारे कमेटी मे होने के लिये ये तर्क मान्य हो सकता है कि तुम्हारे उपस्थिति से सरकारी लोगों पर दबाव बना रहेगा, किंतु एक एनजीओ को चलाने वाले अरविंद केजरीवाल उसमे किस विशेषज्ञता की वजह से गये ? क्या लोकपाल बिल मे कोई एनजीओ के कार्यों मे आने वाली बाधाओं के निवारण के लिये बिल बनना था? क्या इसका कोई उचित कारण था? इसके अतिरिक्त दो पिता पुत्र? दोनो मे से यदि एक को ही कमेटी मे रखा जाता तो तो दूसरे की कानून संबंधी विशेषज्ञता तो वैसे भी मिल जाती, क्यों कि दोनो के बीच पिता पुत्र संबंध हैं, क्या एक पिता अपने पुत्र को या पुत्र अपने पिता को मात्र तभी सलाह देता जब दोनो कमेटी मे होते..? और यदि इस तरह से खाली हुई एक सीट पर किसी अन्य विशेषज्ञ को रखा जा सकता था. किंतु ऐसा नही हुआ, और तुम्हे यह कैसे समझाया गया कि मात्र यही लोग कानून बना सकते हैं, इसका कारण हमे अज्ञात है.
तुम्हारे अनशन के समय राजनैतिक व्यक्तियों के आने का विरोध हुआ, किंतु तुम्हारी टीम ने राजनैतिक दलों के समर्थकों से मोटी रकम का दान लिया. क्या सभी राजनैतिक दलों का विरोध कर के बिल का बनना संभव है? या तुम्हारी टीम धन लेते समय व्यक्तियों के राजनैतिक पक्ष को अनदेखा कर देती है?
अन्ना तुमने प्रधानमंत्री को, जजों को लोकपाल के अंदर लाने को कहा, हमें खुशी है कि सभी की समान रूप से जांच की जायेगी किंतु अन्ना जब बात एनजीओ की आती है तो लोकपाल मात्र सरकारी सहायता प्राप्त एनजीओ की जॉच क्यों करेगा? वो सभी एनजीओ की जांच क्यों नही करेगा? क्या गैर सरकारी सहायता प्राप्त एनजीओ मे गडबड नही की जाती ? तुम्हारी टीम इसका प्रावधान क्यों नही चाहती?
अन्ना बाबा रामदेव तुम्हारे मंच पर आये, तुम्हे समर्थन दिया, तुम्हारे पक्ष मे मजबूती से खडे हुए, किंतु जब भ्रष्टाचार पर वो भी अनशन करने आये तो तुम्हारी टीम का कोई सदस्य वहॉ नही पहुंचा, क्या समान उद्देश्य की पूर्ति के लिये तुम्हारी टीम को वैसा ही समर्थन नही करना चाहिये था जैसा उन्होने तुम्हारा किया था ? तुम्हारे अधूरे समर्थन के कारण सरकार का साहस हुआ और अर्धरात्रि को सरकार  ने वहॉ पहुंच कर सत्ता मद का नंगा नाच किया, अन्ना यदि तुम रामदेव के साथ समर्थन मे खडे हुए होते तो सरकार का साहस और मनोबल ना बढा होता.
अपने बिल के समर्थन मे तुम देश भर मे घूमें, तुमने गुजरात के लिये कुछ अच्छा कहा लेकिन फिर अपनी ही बात पर पलट गये. तुम गुजरात गये और तुमने कहा कि वहां दूध से ज्यादा शराब बिकती है, क्या यह तथ्य तुम्हे तुम्हारी टीम ने दिये? क्या तुम्हे नही पता था कि गुजरात मे शराब बंदी है, और वहॉ शराब बेचना और खरीदना मना है. फिर ऐसा क्यों हुआ? क्या तुम नही समझ सके कि तुम्हे किसलिये प्रयोग किया जा रहा है ?
अन्ना तुम्हारा अनशन जनांदोलन से शुरु हुआ था, किंतु इसे अपनी टीम की महत्वाकांक्षा प्राप्त करने का साधन मत बनने देना. सभी जन/संघटन/संस्थाओं का सहयोग लो और मांगो, श्रेय तुम्हे ही मिलेगा, तुम्हारा आंदोलन अब स्वयं को स्थापित करने का आंदोलन बनता दिखाई दे रहा है. ये आंदोलन तुम्हारे कारण से ही इतना बडा हुआ है, तुम्हारे अतिरिक्त यदि तुम्हारी टीम का कोई अन्य सदस्य अनशन पर बैठता तो सामान्य व्यक्ति वहॉ नही जाता, तुम्हारी सामाजिक स्वीकृति के कारण लोग तुमसे जुडे हुए हैं. और यही कारण है कि फेसबुक पर तुम्हारे पेज पर तुम्हारे प्रशंसकों की संख्या एक लाख पचास हजार से ज्यादा है, किंतु वहीं तुम्हारी टीम के अरविंद केजरीवाल के प्रशंसकों की संख्या सात हजार से भी कम है, तुम्हे भ्रष्टाचार के साथ साथ अपनी टीम की उन महत्वाकांक्षाओं को भी काबू मे करना होगा जो उन्हे अन्य लोगो से समर्थन लेने और देने को रोकती हैं, और सभी को साथ ले कर चलना होगा. हम तो आंदोलन के तुम्हारे दूसरे चरण मे भी आयेंगे किंतु हमारे आने का कारण तुम्हारे आंदोलन का उद्देश्य है, आंदोलन मे कौन कौन हिस्सा ले रहा है, उस से हमारा कोई सरोकार नही है. हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिये, वो चाहे तुम दिलाओ, चाहे भाजपा, चाहे बसपा, चाहे कांग्रेस, चाहे आरएसएस..

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