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कुंए के मीडियाई मेंंढक…

हस्तक्षेप..
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भारतीय मीडिया जिस प्रकार से पत्रकारिता के गंभीर दायित्व का उल्लंघन कर आमदनी के ऊपर ध्यान केंद्रित कर रहा है उस से इसकी प्रमाणिकता और विश्वसनीयता समाप्ति की ओर है. मीडिया में आये इस स्खलन का दोष, दायित्व मीडिया के उन पत्रकारों का ही है जो सत्य के स्थान पर अपने स्वामियों की लाभहानि के अनुसार मुंह खोलते हैं. बदलते सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य मे मीडिया ने अपनी वरीयतायें भी बहुत तेज गति से बदली हैं. किन्हीं औद्योगिक घरानों की भांति यह राष्ट्र, समाज के प्रति अपने दायित्व को भूल अपने समाचारों, समाचारों के चयन, प्रस्तुत करने की भाषा और समाचार बनाने या ना बनाने के निर्णय राजनीतिक व्यक्तियों के लाभ हानि के अनुसार करने लगा है. इसमे ऐसे स्वघोषित पत्रकार और चैनल उत्पन्न हो गये हैं जिनके विचार बुद्धिमता के स्थान पर अपनी आमदनी के आकलन पर निर्भर हो रहे हैं. और जब सत्ता भ्रष्ट हो, और उस पर भ्रष्ट व्यवहार द्वारा कमाई गयी अकूत संपत्ति भी हो, तो ऐसे पत्रकार सत्ता के चरण पखार कर पीने मे संकोच / शर्म नही करते.

समाचार चैनल और पत्रों के घोर व्यवसायिक और बाजारू हो जाने के कारण इनसे किसी प्रकार की अपेक्षा रखना अब व्यर्थ है. अपने आर्थिक हितों, शक्ति, और धन लिप्सा के कारण यह पत्रकारिता को पैसा उगाने के साधन की तरह प्रयोग कर रहे हैं. समाचारों को तोडने और मरोड़ने मे इस मीडिया ने महारत हासिल कर ली है, यह स्वयं स्वीकार करता है कि लाशों की गिनती ही उनका समाचार बनाने का कारण होता है. सत्ता की भृकुटि के अनुसार समाचारों का चयन करने वाले ऐसे पत्रकार कुछ समय पहले तक स्वयं को चौथा खंबा होने का भ्रम पाले रहे, और समाचारों को अपनी सुविधानुसार मोड़ तोड़ कर प्रस्तुत कर सत्ता के सड़ रहे खंबे को सहायता देते रहे.

समाचारों के प्रस्तुतिकरण में शब्दों और चिह्नो से इस प्रकार प्रयोग किया जाता है कि यदि कोई उसका विरोध करना चाहे तो वह स्वयं को सही सिद्ध कर सके. बाजारी वातावरण के अभ्यस्त हो चुके इन पत्रकारों की लाभ आधारित पत्रकारिता के उदाहरण अनेकों बार देखने को मिलते हैं. जब यह कहते हैं कि इनके सूत्र द्वारा इन्हे समाचार मिला है, तो वह सूत्र कम और सत्ता पक्ष के निर्देश और इच्छा अधिक लगते है. घटनाओं को अपने अनुसार बदलने और दिखाने की प्रवृत्ति की कुशलता से इन्हे धन, प्रचार और शक्ति प्राप्त होती है. मुझे आश्चर्य होता है जब अनेकों समाचारों को मीडिया अपनी स्वयं की हांडी मे पकाता है, और फिर उन्हे अपने चैनलों पर परोसता है. अनेकों संगठनों के निर्णयों को यह यह अपनी कल्पना में तय करता है और फिर उन्हें समाचार बना कर प्रस्तुत करता है. ऐसे अनेकों उदाहरण है जब सत्य कुछ और था और दिखाया / बताया कुछ और गया. अपने समाचारों में प्रभाव के स्थान पर एक का प्रचार और दूसरे का दुष्प्रचार कर सकने को प्राथमिकता देने वाले से सत्य की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? अपनी पत्रकारिता चमकाने के लिये वह यह भी नही सोचते कि इस से राष्ट्रविरोधियों को सहायता मिल सकती है. गलत बयानी के विरोध में जो आवाजें उठती है उन्हें वो सुनाई तो देती है, लेकिन निर्लज्ज हो कर वे उसे अनसुना करते हैं या फिर धमकियां देते है. चैतन्य कुंटे इसका एक उदाहरण है.

इन माध्यमों के एक तरफा होने के कारण इनकी इस कुटिलता के ऊपर प्रश्न उठाना दुरूह था, कोई व्यक्ति यदि किसी समाचार पर प्रश्न करना चाहे तो ऐसा करने के लिये कोई माध्यम उपलब्ध नही था जिस से सभी लोगों को समाचारों के प्रस्तुतिकरण की कुटिलता से परिचित कराया जा सके. इस कमी का लाभ उठाकर, जनमानस को प्रभावित करने के लिये गलत बयानी, पक्षपात पूर्ण पत्रकारिता, सत्य को दबाने का खेल चलता रहा / चलता रहता है. कभी कभी उपयुक्त अवसर मिलते ही आम व्यक्ति ने इनकी पक्षपात और द्वेषपूर्ण पत्रकारिता को ललकारा और अपमानित किया (वीडियो ०१, वीडियो ०२), किंतु चोर का भाई गिरहकट वाली तर्ज पर कभी किसी मीडिया हाउस ने अपने चैनल पर यह बात नही बताई कि किस प्रकार उनकी पत्रकारिता के ऊपर प्रश्न उठाया गया और भरे चौराहे उनकी पत्रकारिता पर उंगली उठाई गई.

इस तकनीक का पहलू यह है कि इसमे सारा संवाद एक तरफा है, चैनल यदि कुछ दिखाना चाहता है तो वह उसे किसी भी प्रकार से तोड मरोड कर दिखा सकता है किंतु उसके पक्षपातपूर्ण होने और उसका विरोध करने के लिये आम व्यक्ति के पास कोई उपाय नही है, इस तकनीक मे मीडिया को प्रत्युत्तर देना पूरी तरह मीडिया के ऊपर ही निर्भर है. यदि वह चाहे तो आम व्यक्तियों द्वारा किये गये विरोध को दिखाये या फिर सिर्फ अपने पक्ष को ही दिखाता रहे. लेकिन पिछले कुछ वर्षों मे जिस प्रकार से तकनीक ने बदलाव किये, इंटरनेट पर समाचार, विडियो और उस पर लोगो की प्रतिक्रिया देने की सुविधा उपलब्ध हुई तो इसने इस प्रकार के मीडिया चैनलों के विरोध मे एक पूरी सेना तैयार कर दी. और इसने तकनीक के सभी पहलुओं का प्रयोग कर मीडिया के बाजारू होने, पक्षपात और द्वेषपूर्ण समाचारों का विरोध सफलता पूर्वक किया / कर रही है. कई अवसरों पर इसने मीडिया के पत्रकारों को क्षमा मांगने तक को बाध्य किया.

इसका उदाहरण राडिया टेप कांड मे मिले मीडिया के पुरोधाओं के टेप हैं जिसे चलाने का साहस कोई मीडिया ना कर सका. लेकिन इन इंटरनेट को अस्त्र बना कर इन लड़ाकों ने ना सिर्फ उनको उपलब्ध कराया वरन मेहनत कर के उनके लिखित रूपांतरण भी उपलब्ध कराये.

इस प्रकार के युवकों और व्यक्तियों से जब मैं मिलता हूं तो वह अपनी हाईटेक डिवाइस से लैस, मस्त मौला, शिक्षित, विश्लेषण कर सकने वाले, देश मे घट रही घटनाओं पर लगातार दृष्टि बनाये रखने वाले, और उस पर बेबाक अपनी राय देने वाले हैं. इन्हे कोई डर नही सताता, इन्हें राष्ट्रहित के अतिरिक्त कोई और प्रभावित नही करता. ये आपस में संपर्क मे रहते हैं, सलाह करते हैं, योजना बनाते हैं, कार्य करते हैं और समाज पर अपना प्रभाव भी डालने लगे हैं. तकनीक का सर्वाधिक उपयुक्त लाभ इस वर्ग ने ही उठाया है. अपनी क्षमताओं का उपयोग मीडिया के व्यवासायिकता से भरे प्रभाव को समाप्त करने और उसकी आंख मे आंख डालकर उसका विरोध करने मे यह अग्रणी है. ये वर्ग साहसी है, निडर है, प्रत्युत्तर, प्रतिकार करने मे सक्षम है, तर्कपूर्ण और तथ्यात्मक रूप से अपनी बात को सामने रखने मे सफल है. यदि परिस्थिति इसी प्रकार ही चलती रही तो निश्चित ही कुछ दिन बाद यह मीडिया के दोमुंही और सड़ चुके सत्य से समाज के सभी वर्गों को परिचित करायेगा, जो कि आवश्यक हो चला है.

यह सत्य है कि मीडिया लोगो को मूर्ख समझ अपने समाचारों द्वारा प्रभावित करने के प्रयास करता रहता है, किंतु आश्चर्य है कि अभी तक यह तकनीक के बदलते पहलू से परिचित नही है. ट्विटर, फेसबुक व अन्य माध्यमों मे इनके झूठ का किस प्रकार से प्रतिकार होता है, यह जानने के बाद भी यह अभी तक अपनी टीआरपी आधारित आमदनी की चिंता मे व्यस्त है. शायद यह कूपमंडूक बना अपने कुंए से बाहर की दुनिया को जानने की आवश्यकता ही नही समझता. अपनी उस सड़ चुकी दुनिया से बाहर निकलने के प्रयासों से यह डरता है, इसमें साहस नही है, क्योंकि यह जानता है कि वहॉ इनकी सत्यता को लोग पहचानते हैं, वह भेड़ की खाल के अंदर के जानवर को पहचानते ही नही हैं बल्कि उसकी खाल उतारने की क्षमता भी रखते हैं.

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