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फोटो के संबंध..

हस्तक्षेप..
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आर एस एस को स्वघोषित परिभाषा के अनुसार सोचने वाले व्यक्तियों का एक समूह, (जो संघ का मात्र इस हेतु से प्रतिकार करता है क्यों कि उसके वैचारिक दृष्टिकोण के उत्तर इस समूह के पास नही होते) अब एक ठहाका लगाने योग्य प्रमाण को ले कर अन्ना को संघ के साथ संबंधित करना चाहता है. किंतु यदि ये मान भी लिया जाये कि दो व्यक्तियों की फोटो एक साथ होने के कारण दोनो के वैचारिक दृष्टिकोण आपस मे मिलते हैं तो इस तर्क से राहुल गांधी की फोटो जो कि एक अपराधी के साथ थी, स्वयं मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और उनके दलों के सभी राष्ट्रभक्तों की फोटो नारायण दत्त तिवारी जी के साथ भी उपलब्ध है (क्या ये माना जाये कि वो भी नारायण दत्त तिवारी की तरह अपने पद और शक्ति का उपयोग करते हैं) राजीव गांधी सोनिया गांधी की फोटो भी क्वात्रोचि के साथ भी उपलब्ध हो सकती है, अर्जुन सिंह की फोटो एंडरसन जैसे हत्यारे के साथ उपलब्ध हो सकती है, और सिर्फ फोटो ही क्यों, कांग्रेस के एक विधायक की तो १३९ सीडी भंवरी देवी के साथ उपलब्ध है तो क्या कांग्रेस के समस्त आंदोलनो के लक्ष्य भी उस सीडी के आधार पर घोषित कर दिया जाये? और फोटो सिर्फ आज की राजनीतिज्ञों की ही नही, वरन जवाहर लाल नेहरू की लेडी माउंट बेटेन के साथ फोटो पत्रों के साथ उपलब्ध है, या फिर एक बार संपूर्ण संसद की फोटो ली जाये, और सभी पक्ष विपक्ष को एक ही थाली के चट्टे बट्टे घोषित कर देना चाहिये, क्योंकि वो सभी फोटो मे एक साथ हैं..

राजनैतिक शालीनता की सीमाओं का उल्लंघन कर के इस प्रकार के आरोप और भाषा (बेनी प्रसाद वर्मा व मनीष तिवारी) से सत्ताओं पर विराजमान या समर्थक समूहों का आचरण निंदनीय है, जो अन्ना को यह कहते हैं कि संविधान बदलने का अधिकार उनका है वह पहले भी कई बार संविधान मे अपनी सुविधा और सत्ता सुख को निरंतर बनाये रखने के लिये संशोधन कर चुके हैं.. किसी भी प्रकार से आंदोलन को तोडने का जो विकट परिश्रम जारी है, क्या यह परिश्रम राष्ट्रहित के कार्यों मे लगाने मे कष्ट होता है? जो व्यक्ति अन्ना की फोटो दिवंगत नानाजी देशमुख के साथ होने पर प्रश्न खडा करते हैं क्या वह अपनी फोटो के भी नाना जी देशमुख के साथ होने पर स्वयं के ऊपर भी वही प्रश्न चिह्न लगायेंगे जो वो अन्ना के ऊपर लगा रहे हैं? नाना देशमुख जी के साथ तो बलराम जाखड और मुलायम सिंह की फोटो भी है. मात्र सत्ता मे बने रहने को राष्ट्र सेवा और अपनी गलतियों के कारण मृत्यु को प्राप्त होने को पारिवारिक बलिदान घोषित कर के बहुत दिनों तक राज्य नही किया जा सकता, ऐसा समझ लेने के बाद अब अपने को चुनौति देने वाले कारकों के बारे मे दुषप्रचार करने और इस प्रकार के अट्टाहास लगाने योग्य तर्क दे कर कुछ दिन सत्ताधारी दलों को कुछ समय के लिये ऑक्सीजन तो प्राप्त हो सकती है किंतु इसी प्रकार से यदि राष्ट्र की सुप्त चेतना जागृत होती रही, तो वह ज्यादा समय नही है जब व्यवस्था परिवर्तन होगा और सत्ताधारी दलों को राष्ट्र हित के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार का कार्य करने मे भय का अनुभव होगा…

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