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भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध..

हस्तक्षेप..
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कॉमनवेल्थ खेल खत्म हुए २ महिने से ज्यादा हो गया, भारतीय जनमानस के ८०,००० करोड रुपयो का कुछ पता नही चला है.. और जो पता चला है वो ये कि देश मे एक नयी प्रणाली विकसित हो गई है, जो मिल जुल कर काम कर रही है, इसमे पत्रकार हैं, नेता हैं, व्यवसायी हैं, अधिकारी है. एक घेरा बना हुआ है जिसके बीच मे भारतीय जनमानस है और चारो ओर से इन सुरसाओ ने अपना मुँह खोला हुआ है.. भारतीय जनमानस को इतना असहाय और शासको का इतना अधिक नैतिक और चारित्रिक पतन आज तक नही सुना.. चोर शासको ने प्रणाली के अंदर स्वयं को बचाने के लिये पहले वैधानिक चोर दरवाजे बनाये, और फिर अपने को बेनकाब कर सकने वाले अन्य समूहो के प्रतिष्ठित सौदागरो को जिन्हे वो पत्रकार और अधिकारी कहते हैं, उन्हे भी अपनी प्रणाली का हिस्सा बना लिया, आम जनमानस को ठगा गया और ठगे गये पैसे की बंदरबॉट हुई, जिन्हे राष्ट्र हित सर्वोपरि रखना चाहिये था उन्होने स्वयं के और अपने स्वजनो के लाभ हेतु मौन धारण किया.

सत्तायें अब जनमानस के लिये कम और स्वयं के विकास के लिये ज्यादा ध्यान देने लगी, बोफोर्स, कॉमन्वेल्थ खेल, आदर्श सोसायटी, चारा, जमीन, खनन, पी एफ.. एक अंतहीन सारणी बनने लगी है लेकिन जब जॉच और सजा को देखते हैं तो एक पंक्ति भी नही भरती.. लोभ सिर्फ सत्ता तक सीमित नही रह गया है, लोभ सत्ता के साथ साथ आर्थिक सम्पन्नता का भी हो गया है. और सत्ता सुख सतत रूप से मिलता रहे, इसके लिये पत्रकार, व्यवसायियो के साथ मिलकर नेताओ ने ये प्रणाली विकसित की. पिछले कुछ दशकों से नेताओ के चरित्र और कार्यो का विश्लेषण करें तो लगता है कि सत्ता काजल की कोठरी हो गई है, जो उजला गया वो काला हो कर निकला, जो काला गया तो भुजंग हो कर निकला, और कोठरी मे जिसका दम घोटा गया वो आम जनमानस था. जो सफेद होने का ढोंग दिखाते हैं, वो मौन हैं और अपने स्वजनो को लूट खसूट की मौन स्वीकृति दे कर सत्ता सुख मे लीन हैं. सत्ताधीशो के लिये ५ साल अपनी सरकार चलाना एक मात्र उपलब्धि हो गया. राष्ट्र की उन्नति अब सत्ताओ के लिये कोई विषय नही है, सत्ता वापसी अब ज्यादा चिंता का विषय है, कागजी योजनाओ को भिन्न टीवी चैनलो पर प्रसारित कर के आम जनता को मरिचीका दिखाने का भार पत्रकारो ने लिया, लूट से अर्जित की गई संपत्ति से अरबपति बन कर लोगो को बताया गया कि भारत मे अरबपतियों की संख्या मे बढोत्तरी हो रही है, अधिकारियों को सत्ता सुख, भ्रष्टो को ऊंचे पदो और लूट का हिस्सा दे कर उन्हे उनके कर्तव्यो से विमुख किया गया और इस प्रकार ये भिन्न भिन्न श्रेणी की सुरसाओ से मिलकर बनी प्रणाली ने सत्ताओ पर बैठे लुटेरो की राह आसान कर दी.

लोकतंत्र की असहायता ये है कि उसके पास अधिकार ५ वर्ष मे एक बार आता है, और बाकि समय यदि वो चाहे तो भी कुछ नही कर सकता, लोकतंत्र की अंतिम कडी एक साधारण मनुष्य को इतना अक्षम कर दिया है कि वो एक दिन के विरोध के लिये भी अपने कार्य को नही छोड सकता, यदि उसको विरोध करने के लिये कहा जाये तो वो सहम जाता है और ऐसे डरता है जैसे उसे कोई चोरी करने के लिये कहा जा रहा हो. इस प्रणाली के रचियता और रक्षको का आत्मविश्वास इतना अधिक है कि जो उन पर उंगली उठाये वो उस संस्था (कैग) को या तो गलत बताते हैं या फिर जो उन पर उंगली उठा सकती है (जेपीसी) वो उसे बनने से रोकने के लिये संसद के पूरे सत्र का बलिदान देने से भी नही चूक रहे. भारतीय लोकतंत्र का ये नया शत्रु अपराधियों के राजनीतिकरण से भी अधिक भयावह है, एक अपराधी का आम जनमानस को पता होता है कि वो अपराधी है, लेकिन इस प्रणाली मे एक साधारण व्यक्ति किस पर संदेह करे, यहॉ तो जिसे खेत के रक्षक का काम करना चाहिये था वो खुद फसल को खा कर खेत बेचने के सौदे कर रही है,

राष्ट्र को यदि फिर से ठीक मार्ग पर लाना है तो इस देश को खाने वाली इस प्रणाली मे बसे एक एक हिस्से को काट कर बाहर निकालना होगा.. सत्ता से अपेक्षा करना व्यर्थ है, कोई सत्ता लोलुप स्वयं के भाग निकलने के मार्गो को बंद करेगा, ये आशा करना ही बेकार है. और पत्रकार, व्यवसायियो की जमात के मुँह लगा खून का स्वाद वो इतनी जल्दी भूल जायेंगे, इसकी संभावना भी कम ही लगती है. परिवर्तन तभी आ सकता है जब हम स्वयं एक ऐसी प्रणाली विकसित करें जिसके सामने कोई भी व्यक्ति या समूह भ्रष्ट आचरण करने से घबराये, ये प्रणाली संवैधानिक रूप से बनाई जाये या फिर सामाजिक रूप से, लेकिन यदि इसे जल्दी विकसित नही किया गया तो सत्ताधीशो, व्यवसायी, पत्रकार और अधिकारियो का ये गिरोह व्यक्ति, समाज, राष्ट्र को बेच कर खा जायेगा. राष्ट्र की अधोगति के लिये उत्तरदायी इस गिरोह के विरोध के लिये कुछ लोग प्रयास रत हो गये हैं, शासको से मात्र उपेक्षा और आश्वासन ही मिल सकते हैं, सत्ता और शासको को नियंत्रित करने के लिये कोई ना कोई सामाजिक / संवैधानिक व्यवस्था का निर्माण आवश्यक है, इस परिवर्तन के लिये यह आवश्यक है कि पहले संगठित हुआ जाये और फिर एक प्रणाली विकसित की जाये जिस से सत्ता मे भ्रष्टाचार के विरुद्ध भय उत्पन्न किया जा सके और भ्रष्टाचारियों को नियंत्रित कर के उन्हे सजा का प्रावधान किया जा सके.
ऐसी ही एक प्रणाली के विकास के लिये आपका फेसबुक पर स्वागत है, भ्रष्टाचार से त्रस्त हो कर उसके विरोध के लिये एक समूह India Against Corruption बनाया गया है, जिसका लिंक इस प्रकार है.

http://facebook.com/home.php#!/IndiACor

कृपया इस मे भाग ले कर अपने विचारो से अवगत करायें..
धन्यवाद.

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