- 272 Posts
- 172 Comments
आजकल भारत में झोला-छाप डॉक्टरों की भरमार हो गई है. इसी भरमार को देखते हुए एक लेखक ने बहुत भी जबरदस्त हास्य कविता लिखी है. झोला-छाप डॉक्टर होते तो समाज के लिए घातक हैं लेकिन एक बात तो सबको माननी ही होगी कि इन झोला छाप डॉक्टरों की वजह से ही गरीब आदमी कुछ दिन जी पा रहा है और झोला छाप डॉक्टरों का दिल उन डॉक्टरों से कहीं बड़ा होता है जो एमबीबीएस करके बनते हैं.
खैर हम यहां झोला-छाप डॉक्टरों पर कोई विचार-मंथन नहीं करना चाहते वरन हम तो एक बेहतरीन हास्य कविता का मजा लेना चाहते हैं जिसमें कवि ने अपनी कलाकारी दिखाई है.
झोला-छाप डॉक्टर का विज्ञापन
कब्जी की आम शिकायत हो, या बदहज़मी के हो शिकार,
नाड़ी जो ढीली चलती हो, अथवा गमगीन बने रहते हो
मत फ़िरो डॉक्टर के पीछे, राम ने राह बताई
ऊपर के रोगों की खातिर, जरदा पेटेंट दवाई है.
हमको कड़वा लगता है, खाने वाले को शरबत है,
राणा जी को जो जहर लगे वो मीरा बाई को अमृत है,
आख़िर जरदा ही मांगा है जेवर चाहा दान नहीं
इन्सल्ट प्रूफ जरदेवाले इनका होता अपमान नहीं
वह गौरी है यह कैसरिया सो रंग वाला बाना ज़ी
जोरू बिन महीना काट सको, जरदे बिन बहुत कठिन जी
तुम मर्द नहीं बन सकते, तलवार चलाने से
मर्दानगी का सर्टिफिकेट मिलता है, जरदा खाने से.
Read Comments