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हिन्दी हास्य रचनाओं के इस अंक में बंगाल और अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए हम एक चुनावी हास्य रचना आपके लिए लेकर आए हैं. बेढ़ब बनारसी की यह रचना चुनावों पर एक कटाक्ष है.
बनारस को हमेशा से ही हास्य कवियों का गढ़ माना जाता है और बेढब बनारसी भी बनारस की धरती से ही हैं. अपनी हास्य रचनाओं और कटाक्ष से लोगों के दिलों में राज करने वाले बेढब बनारसी की यह रचना बेहद मनोरंजक है.
चुनाव हो गया
चुनाव हो गया
बहुत से जीते बहुत से हारे,
जैसे लगन में भी रह जाते हैं बहुत से कुँआरे।
बहुतों ने वोट दिया, कितनों ने नोट दिया।
कुछ को तालियाँ मिलीं, कुछ को गालियाँ मिलीं।
हारने वाले रोए, वोटर मौज से सोए,
देश कहां जाता है, किसी को पता नहीं।
सब यही कहते हैं हमारी खता नहीं।
गांव में खाने को लोग हैं तरसते,
शहर में ओस बन रुपये बरसते।
सिनेमा में चारों ओर मेला और धक्का है,
कहीं बना काशी है, कहीं बना मक्का है।
साड़ियाँ लेने दुकानों पर जाइए,
देख-देख के उनकी डिजाइन मर जाइए।
युवक ऐसे सूटों के दरिया में बहता है,
देश में गरीबी है, कौन यह कहता है।
भोजन मिले दूसरे दिन टेरिलीन चाहिए,
जीवन में इश्क की बजानी बीन चाहिए।
बैण्ड सरकार के चाहे कोई बजा ले,
कुरसी का शासन के कोई भी मजा ले।
पेट नहीं भरता है जब तक हमारा,
कोई नहीं अच्छा हमें लगता है नारा।
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