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जंगल गीत – हास्य कविता (HASYA KAVITA )

Hasya Kavita
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ashok_chakradhar_bg

यह कविता हास्य कवि अशोक चक्रधर की एक रचना है जो आज के राजनीतिक परिस्थितियों  की संपूर्ण व्याख्या करती है. अशोक चक्रधर भारत के बेहद प्रसिद्ध हास्यकवि हैं और उनकी सभी रचनाएं मुझे बहुत पसंद आती हैं. थोड़ा हंसने की आप भी कोशिश करें और इतना जोर से हंसें कि पास वाला व्यक्ति भी हंसने को मजबूर हो जाए.

पानी से निकलकर

मगरमच्छ किनारे पर आया,

इशारे से

बंदर को बुलाया.

बंदर गुर्राया-

खों खों, क्यों,

तुम्हारी नजर में तो

मेरा कलेजा है?

मगर्मच्छ बोला-

नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने

खास तुम्हारे लिये

सिंघाड़े का अचार भेजा है.

बंदर ने सोचा

ये क्या घोटाला है,

लगता है जंगल में

चुनाव आने वाला है.

लेकिन प्रकट में बोला-

वाह!

अचार, वो भी सिंघाड़े का,

यानि तालाब के कबाड़े का!

बड़ी ही दयावान

तुम्हारी मादा है,

लगता है शेर के खिलाफ़

चुनाव लड़ने का इरादा है.

कैसे जाना, कैसे जाना?

ऐसे जाना, ऐसे जाना

कि आजकल

भ्रष्टाचार की नदी में

नहाने के बाद

जिसकी भी छवि स्वच्छ है,

वही तो मगरमच्छ है.

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