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HASYA KAVITA IN HINDI
पिछले दिनों हमारी बेहद लाचार, बेबस और निर्लज्ज सरकार ने गरीबा का पैमान मात्र 32 रु रखा था. यह उन महान अर्थशास्त्रियों की सोच थी जो दिन भर एसी में बैठते हैं और जिनके एक बोतल पानी का दाम ही 32 रू से ज्यादा होता है. खैर जैसे तैसे हो-हल्ला हुआ तो इन अति महानअर्थशास्त्रियों ने अब गरीबी का आकंडा 62 रूपए कर दिया. यानि कि अगर आप 62 रू प्रति दिन कमाते हैं तो आप गरीब नही हैं. दरअसल गलती इन अर्थशास्त्रियों की नहीं बल्कि इनके काम करने के तरीके में हैं. जो रिपोर्ट यह एसी रूम में बैठकर फ्री का लंच खाकर बना रहे हैं उसे ही अगर यह दिल्ली की गर्मी में किसी पार्क या इंडिया गेट जैसी जगह खुले में बैठकर भी बनाते तो उन्हें अहसास होता कि गरीबी क्या है. 62 रू. में इंसान सिर्फ जी सकता है. दो वक्त की रोटी खा सकता है पर उस रोटी को कमाने के लिए मेहनत करनी पडती है काम पर जाना प्डता है इन 62 रू. में यह संभव नहीं है. दिल्ली जैसे महानगर में जहां बस का किराया ही पांच रूपए से शुरू है और मेट्रो का दस रूपए से वहां इंसान 62 रू में जी कैसे सकता है.
चलिए इस अति महादुर्दशा पर भी हमारे द्वारा एक बेहतरीन हास्य कविता हाजिर है,. यह हास्य कविता ग्वालियर के बेमिसाल लेखक भारतदीप की है :
HASYA KAVITA IN HINDI
पोते ने पूछा दादाजी से
‘‘दादाजी आप यह बताओ
बड़े बड़े लोग उपवास क्यों रखते हैं,
छक कर खाते मलाई और मक्खन
फिर भी क्यों भूख का स्वाद चखते हैं।
दादाजी ने कहा
‘‘बेटा,
गरीबों का दिल जीतने के लिये
बड़े लोग उपवास इसलिये करते हैं
क्योंकि उनकी भूख शांत करने के लिये
रोटियां बांटने का जिम्मा लेकर मिली कमीशन से
अपनी तिजोरी भी वही भरते हैं,
देख लेना 32 रुपये खर्च करने वाला
अब गरीब नहीं माना जायेगा,
फिर भी गरीबों की संख्या
आंकड़ों में बढ़ती दिखेगी,
बड़ों की कलम मदद की रकम भी बड़ी लिखेगी,
उनको गरीबों से हमदर्दी नहीं है
फिर भी अपनी शौहरत और दौलत
बढ़ाने के लिये
वह गरीबी हटाने की योजना हमेशा साथ रखते हैं।
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