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कल हमारे मित्र पोपटलाल जी मिले, हालात खराब थी महाशय की. बडी दर्दनाक और पीडादायक अवस्था में थे जनाब. हमने देखा तो उनसे उनका हाल पूछा. पता चला बेचारे की बीवी का जुल्म शुरू हुआ है. वैसे शादी को तीन साल हो गए हैं पर मैडम का रंग अब जाकर सामने आया है.
उनकी दुर्दशा देख हमें एक हास्य कविता याद आई जो मैंने कभी जागरण जंक्शन पर ही पढ़ी थी. कविता बड़ी मजेदार तो है ही साथ ही इसके बोल भी ऐसे हैं जो आप बार-बार गुनगुना चाहेंगे.
जब से बेग़म ने मुझे मुर्गा बना रखा है
मैनें नज़रों की तरह सर भी झुका रखा है ।
बर्तनों, आज मेरे सर पे बरसते क्यों हो
मैनें तो हमेशा से तुमको धुला रखा है ।
पहले बेलन ने बनाया था मेरे सर पे गुमड़
और अब चिमटे ने मेरा गाल सुजा रखा है ।
सारे कपड़े तो जला डाले हैं बेग़म ने
तन छुपाने को बनियान फटा रखा है ।
वही दुनिया में मुक़द्दर का सिकंदर ठहरा
जिसने खुद को अभी शादी से बचा रखा है ।
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अर्ज़ किया है,
शादी करके मैं तो परेशान हो गया
जीते जी मेरी मौत का सामान हो गया।
लेके आईं हैं मैके से वो दहेज़ में कुत्ता
फ्री में मेरे बिस्तर का दरबान हो गया।
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