बोध/प्रसंग/ पश्चाताप!!! एक बार सिंकदर किसी कारण से अपने सेनापति से नाराज हो गया। उसने उसे सूबेदार बना दिया। सिकंदर ने सोचा कि इतने छोटे पद पर आने से उसका सेनापति अपमानित महसूस करेगा और घुल-घुलकर मर जाएगा। एक दिन उसने सेनापति को बुलवाया ताकि यह देख सके कि उसकी क्या हालत है। लेकिन सिकंदर ने जो सोचा था उसका उलटा ही हुआ। सेनापति तो पहले से भी ज्यादा स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई दे रहा था। सिकंदर हैरान रह गया। उसने उससे पूछा- तुम इतना खुश कैसे दिखाई दे रहे हो? सेनापति से सूबेदार बनने का तुम्हें कोई दुख नहीं है? सेनापति ने कहा- बिल्कुल नहीं। पहले जब मैं सेनापति था तो सैनिक मुझसे बात करने से कतराते थे। मैं भी अपने पद की मर्यादा का ध्यान रखकर उनसे बात करने से कतराता था। पर अब तो कोई संकोच रहा ही नहीं। अब मैं उनसे खुलकर बता करता हूं। वे भी मुझसे एकदम सहज रहते हैं। वे अब भी मेरा सम्मान करते हैं। और हम एक-दूसरे की सेवा में लगे रहते हैं। मैं समझ गया कि सम्मान पद से नहीं बल्कि अपने स्वभाव से मिलता है। जिसमें थोड़ी भी मानवीयता होगी उसे सारी दुनिया आदर देगी। मैं पहले भी संतुष्ट था आज भी संतुष्ट हूं क्योंकि मेरे लिए मानवता सबसे बड़ी चीज है। दुख तो उन्हें होता है जो पद के अभिमान में चूर होते हैं। सिकंदर इस जवाब से बेहद प्रभावित हुआ। उसे लगा कि उसने सेनापति को समझने में भूल की है। उसे अपने फैसले पर पश्चाताप हुआ। उसने उसे फिर से अपना सेनापति बना लिय!!!सुभाष बुड़ावन वाला,18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प] -456-224.E-mail-sbudawanwala@yahoo.com
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