सर्वश्रेष्ठ धर्म
एक राजा अपने लिए धर्म की तलाश में था। वह ऐसा धर्म अपनाना चाहता था, जो सबसे श्रेष्ठ हो। राजा की खोज बंद नहीं हुई । एक दिन राजा के द्वार पर एक युवा संन्यासी आया। संन्यासी ने दावा किया कि वह राजा को सर्वश्रेष्ठ धर्म से परिचित करा सकता है। लेकिन इसके लिए राजा को उसके साथ नदी तट पर चलना होगा। नदी तट पर पहुंचकर संन्यासी ने कहा कि नाव मंगवाई जाये। नाव आई लेकिन संन्यासी ने उसमें जाने से इनकार कर दिया। उसका कहना था कि उसे सर्वश्रेष्ठ नाव चाहिए। दूसरी नाव मंगाई गयी। संन्यासी ने उसमें भी कई दोष निकाल दिये। फिर और कई नावें लायी गयीं। संन्यासी ने सब में कोई न कोई कमी निकाली। इस पर राजा ने झल्लाकर कहा, ‘अरे पार ही तो जाना है फिर किसी नाव से चलें, क्या फर्क पड़ता है। संन्यासी ने कहा, ‘नहीं, चूंकि हम सर्वश्रेष्ठ धर्म की तलाश में जा रहे हैं। इसलिए हमें सर्वश्रेष्ठ नाव से ही जाना होगा।’
राजा ने कहा, ‘नाव का चक्कर छोडिय़े। छोटी-सी नदी पार करनी है। क्यों न तैर कर पार जायें।’ संन्यासी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘यही तो मैं कहना चाहता हूं महाराज। जब परमात्मा से मिलना है तो आपको जो मार्ग या तरीका सही लगता है उसे अपनायें। -सुभाष बुड़ावन वाला.18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]**
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