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एक दिन छत्रपति शिवाजी ने सोचा कि चूंकि उनके गुरु के ऊपर कोई विशेष दायित्व नहीं है, शायद इसलिए वे हरदम प्रसन्न रहते हैं। क्यों न वह भी शासन कार्य के झंझटों से छुटकारा पा लें। उसी समय समर्थ गुरु रामदास आ पहुंचे। शिवाजी ने उनसे अपने मन की बात कह दी। गुरुदेव सहज भाव से बोले-ठीक है, संन्यास ले लो। इससे अच्छी बात और क्या होगी। शिवाजी ने उत्साहित होकर पूछा- तो फिर आप बताएं कौन ऐसा व्यक्ति है, जिसे राजकाज सौंप कर मैं आत्मकल्याण की साधना करूं? गुरुदेव ने कहा- मुझे ही राज्य देकर चले जाओ। मैं चलाऊंगा राजकाज। शिवाजी ने हाथ में जल लेकर राज्यदान का संकल्प कर लिया। गुरुदेव ने कहा- अब तो तुम राज्य का दान कर चुके हो। इस पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं रहा। जब शिवाजी चलने लगे तो गुरुदेव ने पूछा – भविष्य में निर्वाह की व्यवस्था क्या होगी? शिवाजी बोले- जो भी हो जाए, कुछ मजदूरी या किसी की नौकरी कर लूंगा। गुरुदेव बोले- जब नौकरी ही करनी है तो मैं तुम्हारे लिए बढ़िया सी नौकरी की व्यवस्था कर देता हूं। तुम यह राज्य मुझे दे ही चुके हो। इसकी देखरेख और व्यवस्था के लिए किसी को भी नियुक्त कर सकता हूं। मुझे किसी योग्य व्यक्ति की आवश्यकता है। सोचता हूं कि तुमसे ज्यादा योग्य कौन होगा। इस भाव से राज्य का संचालन करना कि तुम केवल सेवक मात्र हो। यह राज्य मेरा है। शिवाजी गुरु का आशय समझ गए। उस दिन से वह तटस्थ भाव से राजकाज चलाने लगे। सारी चिंताएं दूर हो गईं।!-सुभाष बुड़ावन वाला,18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प] -456-224.E-mail-sbudawanwala@yएक दिन छत्रपति शिवाजी ने सोचा कि चूंकि उनके गुरु के ऊपर कोई विशेष दायित्व नहीं है, शायद इसलिए वे हरदम प्रसन्न रहते हैं। क्यों न वह भी शासन कार्य के झंझटों से छुटकारा पा लें। उसी समय समर्थ गुरु रामदास आ पहुंचे। शिवाजी ने उनसे अपने मन की बात कह दी। गुरुदेव सहज भाव से बोले-ठीक है, संन्यास ले लो। इससे अच्छी बात और क्या होगी। शिवाजी ने उत्साहित होकर पूछा- तो फिर आप बताएं कौन ऐसा व्यक्ति है, जिसे राजकाज सौंप कर मैं आत्मकल्याण की साधना करूं? गुरुदेव ने कहा- मुझे ही राज्य देकर चले जाओ। मैं चलाऊंगा राजकाज। शिवाजी ने हाथ में जल लेकर राज्यदान का संकल्प कर लिया। गुरुदेव ने कहा- अब तो तुम राज्य का दान कर चुके हो। इस पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं रहा। जब शिवाजी चलने लगे तो गुरुदेव ने पूछा – भविष्य में निर्वाह की व्यवस्था क्या होगी? शिवाजी बोले- जो भी हो जाए, कुछ मजदूरी या किसी की नौकरी कर लूंगा। गुरुदेव बोले- जब नौकरी ही करनी है तो मैं तुम्हारे लिए बढ़िया सी नौकरी की व्यवस्था कर देता हूं। तुम यह राज्य मुझे दे ही चुके हो। इसकी देखरेख और व्यवस्था के लिए किसी को भी नियुक्त कर सकता हूं। मुझे किसी योग्य व्यक्ति की आवश्यकता है। सोचता हूं कि तुमसे ज्यादा योग्य कौन होगा। इस भाव से राज्य का संचालन करना कि तुम केवल सेवक मात्र हो। यह राज्य मेरा है। शिवाजी गुरु का आशय समझ गए। उस दिन से वह तटस्थ भाव से राजकाज चलाने लगे। सारी चिंताएं दूर हो गईं।!-सुभाष बुड़ावन वाला,18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प] -456-224.E-mail-sbudawanwala@yahoo.com ahoo.com
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