Menu
blogid : 2824 postid : 764181

जीवन में कुछ स्वाद, कुछ मस्ती, कुछ रंग!सुभाष बुड़ावन वाला

koi bhi ladki psand nhi aati!!!
koi bhi ladki psand nhi aati!!!
  • 805 Posts
  • 46 Comments
‘रीति रिवाजों के बिना जीवन थोड़ा रूखा और एक रस हो जाता है। रीति रिवाज ही हैं, जो जीवन में कुछ स्वाद, कुछ मस्ती, कुछ रंग भर देते हैं, इसलिए मैं कहूंगा कि हमें समय समय पर कुछ रीति रिवाजों को शामिल करते रहना चाहिए, यह अच्छा है।’
एक बार किसी शिष्य ने मुझसे पूछा था कि जब ईश्वर सर्वव्यापक है तो फिर मंदिरों की जरूरत क्यों है? जब ईश्वर का मन में वास है तो ये रीति रिवाज क्यों? मैंने उनके प्रश्न को बहुत ध्यान से सुना। मैं उनके प्रश्न के आधे हिस्से से सहमत था लेकिन आधे हिस्से पर कुछ कहना चाहता था।
मैं सोचता हूं कि ईश्वर को पाने के लिए आपको किसी भी मंदिर, मस्जिद अथवा चर्च में जाने की आवश्यकता नहीं है। जहां भी आप हैं, बैठ जाएं और ध्यान करें, वहीं आप को ईश्वर दिखाई देंगे । परंतु जीवन में रीति रिवाजों का होना भी अच्छा है। बहुत ज्यादा नहीं, बस थोड़ा सा ही।
रीति रिवाजों के बिना जीवन थोड़ा रूखा और एक रस हो जाता है। रीति रिवाज ही हैं, जो जीवन में कुछ स्वाद, कुछ मस्ती, कुछ रंग भर देते हैं, इसलिए मैं कहूंगा कि हमें समय समय पर कुछ रीति रिवाजों को शामिल करते रहना चाहिए, यह अच्छा है।
देखिए, किसी ऐसे घर में जाएं जहां बिल्कुल भी रीति- रिवाज न निभाए जाते हों, और फिर ऐसे घर में जाएं जहां हर दिन दिया जलाया जाता है, अगरबत्ती जलाई जाती है, और जहां शुद्धता हो; तो दोनों के वातावरण में अंतर होता है। आप में से कितने लोगों ने यह अनुभव किया है ? कुछ अंतर होता है। यह एक तरह के वातावरण का निर्माण करता है। सूक्ष्म भी वहां जीवंत हो जाता है। ऐसा ही है न?
इसलिए रोजमर्रा के जीवन में थोड़े से रीति रिवाज अच्छे रहते हैं। प्रात: जब आप उठते हैं, तो बैठ जाएं और ध्यान करें। हां, आपको ध्यान के साथ प्राणायाम भी अवश्य चाहिए।
चाहे घर का एक सदस्य ही घर में कहीं दिया जलाए, हरेक को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, घर का एक सदस्य ही दीपक जलाता है तो यह सारे वातावरण को जीवंत कर देता है। मैंने व्यवहारिक रूप से यही देखा है। मैं कितने ही घरों में गया हूं, छोटे, बड़े, झोपड़े, बंगले और सब जगह, मैंने एक बात अवश्य देखी है,यहां तक कि एक छोटी झोंपड़ी में भी ,उन्होंने एक छोटा सा आला बना रखा है और उसमें मोमबत्ती या कुछ और रख रखा है, और सारे वातावरण में इसका प्रभाव है।
यदि किसी ऐसे घर में आप जाएं, जहां कुछ नहीं है, पवित्रता का कोई भी प्रतीक या दिया आदि नहीं जलाया जाता, वहां एक प्रकार की नीरसता की अनुभूति होती है ।
मैंने ऐसा देखा है, इसीलिये मैं कहूंगा कि, घर में आले का होना, थोड़ी रीतियों का होना आवश्यक है। घर में कोई एक ऐसा कर सकता है। घर की स्त्री या पुरुष कोई भी। बच्चों के लिए भी यह देखना ठीक है कि उन्हें भी धर्म या अध्यात्म के स्वाद को ग्रहण करने के लिये कुछ करना चाहिए।
इस देश में आपको ऐसा बसों में भी मिल जाएगा। हर बस, टैक्सी, कार, रिक्शा का चालक सुबह सब से पहले एक छोटा फूल रखकर या अगरबत्ती जला कर सिर झुकाता है और यह छोटी सी चीज उनके जीवन में गुणकारी परिवर्तन लाती है । भारत में दुकानों और होटलों में भी दीपक रखने का आला बना रहता है।
आप उनसे पूछ सकते हैं कि ‘ऐसा क्यों करते हैं? शायद कोई इस पर शोध भी कर सकता है। यह उन्हें एक प्रकार का मानसिक बल प्रदान करता है । एक प्रकार से यह वातावरण को जीवंत बनाता है। मुझे ऐसा ही लगता है। भारत में, सरकारी दफ्तरों में भी ऐसा किया जाता है।
अपने दफ्तर में हर अफसर ने दिया जलाने का स्थान बना रखा होता है। कर्नाटक में तो यह कुछ ज्यादा ही है। यदि मुख्यमंत्री को शपथ लेनी होती है, या फिर नए दफ्तर में जाना होता है, तो वह वहां एक सम्पूर्ण पूजा या और सबका आयोजन किया जाता है।
विश्वभर में ऐसा ही है। यूएस की सीनेट में और कनाडा के सदन में, हर रोज प्रार्थना का समय होता है। हर सदन के लिए एक पादरी है, जो आता है और पवित्र बाइबल का पाठ करता है। केवल भारत में ही हम धर्म निरपेक्षता और धर्म निरपेक्षता की बात करते हैं।
यह एक प्रकार की बीमारी है जिस से कि हम स्वयं को सारी समझ, ज्ञान और प्राचीन परम्पराओं से दूर रखने का प्रयत्न करते हैं। लोग ऐसा करने का प्रयत्न तो करते हैं, परंतु ऐसा होता नहीं है । यह हर एक में इतने गहरे से धंसा है।
रीतियों में बंध जाना ठीक नहीं लेकिन कुछ रीतियों को बचाने से हमारे जीवन में आनंद आता रहता है। उन रीतियों की वजह से जिनसे किसी का अहित नहीं होता हो उन्हें मानने में कोई बुराई नहीं। आखिरकर रीतियां हमारे श्रद्धा निवेश का परिचय ही तो है।by-सुभाष बुड़ावन वाला18,शांतीनाथ कार्नर,खाचरौद[म्प]**


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh