राजनीतिज्ञ अपने को कुशल चाणक्य समझते हैं | किन्तु कुशलता पतंग बाजी से उपजती है |..नौसिखिए पतंगबाज उलटे सीधे हाथ मारकर पतंग काट लेते हैं और चिल्लाते हैं वो काटा ….| फिर धीरे धीरे दांव पेंच सीखते जाते हैं और कुशल पतंगबाज बन जाते हैं | ……………………………………………………………………………..राजनीतिज्ञ का भी यही हाल होता है | …किन्तु दांव पेंच सदा एक से नहीं मारे जाते अन्यथा विपक्षी उसकी काट ढूंढ लेता है | …और कांग्रेस की तरह पतंग कट जाती है | …कुशल पतंगबाज वही होता है जो विपक्षी की चाल को समझते चाल बदल देता है किन्तु फिर भी विपक्षी उसकी पतंग काट देता है | ……क्या करें अब सब कुछ तो विपक्षी को सिखा दिया | वह हर उलटे सीधे चाल के हाथ समझ चूका है | अतः अब एक ही रास्ता है ढील के पेंच ………| ढील का पेंच भी कोई सुगम पेंच नहीं होता ..कब कितनी ढील देनी है यह भी अनुभव से ही सीखते हैं ,बरना पतंग का माँझा खिस्सा खा जायेगा या पतंग लटक जाएगी और कट जाएगी | …………………………………………………………………………………….कांग्रेस पतंग बाजी मैं कितनी कुशल है यह इससे जाना जा सकता है की उसकी पतंग पूरे जीवन मैं सिर्फ दो बार ही काट सकी है भारतीय जनता पार्टी | ….कुछ अन्य भी कभी कभी ही काट पाए हैं | ………………………………………………………………………….अब शायद विदेशी चायनीज माँझे के मिल जाने से ही भारतीय जनता पार्टी के स्वामी उछल कूद मचाए हैं की अब वे सदैव कांग्रेस की पतंग काटते रहेंगे | …………………………………………………………………………….धैर्यवान कांग्रेस बराबर ढील देती जा रही है | उसे संतोष है की उसकी ढील से भारतीय जनता पार्टी का चायनीज माँझा अवश्य ही खिस्सा खा जायेगा और उसकी पतंग टूट जाएगी | और कांग्रेस एक बार फिर चिल्लाएगी… वो कट्टा …|………………………………………………………………………….कांग्रेस जानती है की उसने इतिहास मैं कैसे कैसे कठिन समय मैं भी विपक्ष की पतंग ढील देकर ही काटी थी | पंडित जवाहर लाल जी की पतंग तो कभी कटी ही नहीं | उनके जीवन के बाद लाल बहादुर शास्त्री और उनके जीवन के बाद इंदिरा गांधी बेधड़क अपनी पतंग उड़ाती रहीं | जहाँ जवाहर लाल जी ढील के पेंच मैं माहिर रहे ,ढील का पेंच उन्हें इतना भाया,की जब चीन से लड़ाई हुयी तो वे बराबर ढील ही देते रहे,उनकी सेनाएं शान से पीछे हट्टी रहीं | और शान से अपनी पतंग उड़ाते रहे इसके लिए उन्हें चाहे कुछ खोना भी पड़ गया था | …………………………..लाल बहादुर शास्त्री जी भी ढील के पेंच को जारी रखते ताशकंद समझौता मैं ढील देते शहीद हो गए | ……………………………………………………………………………...इंदिरा गांधी जी की ढील तो देश वाशी ही नहीं समझ सके ,उन्हीं की पार्टी के टूटे बागी भी अपनी पतंग कटवा गए | भारतीय जनसंघ जैसी धुरंधर पार्टी भी कभी ढील के पेंच को नहीं समझ सकी |….पाकिस्तान तो ढील के पेंच मैं अपनी गर्दन पूर्वी पाकिस्तान ही कटवा बैठा |…इसी ढील के पेंच मैं बांग्ला देश बना और एक लाख युद्ध बंदियों को पाकिस्तान बापस भेजा | …और ढील देकर बना बांग्ला देश ,शिमला समझौता , और बैंकों का राष्ट्रीकरण ……….| ………………………………………………………………………….अपने पुत्र संजय गांधी को ढील दी तो देश की जनसख्या नियंत्रण का मार्ग सुगम हुआ और देश को जन सख्या नियंत्रण का मार्ग मिला वर्ना आज देश की आबादी २०० करोड़ से कम नहीं होती | …..बृक्षारोपण एक क्रांति बनी …….जो आगे चलकर ..आपातकाल की एक अनुभूति करा गयी | ….संजय गांधी ने अपने को दांव पेंच मैं माहिर समझ खींच का पेंच लड़ा दिया और अपनी पतंग कटा बैठे | ….किन्तु उनकी भूल सुधार से पुनः कांग्रेस की पतंग फिर उड़ी |………………………………इंदिरा भी कितना ढील के पेंच को लड़ती कभी तो खींच का दांव लगन ही पड़ता | …लड़ाया और शहीद हुयी | किन्तु इस ढील ने कांग्रेस को एक बार फिर मजबूती से पतंग बाजी को उठा दिया | अब ढील की पतंगबाजी राजीव गांधी की हाथ मैं आई …| ………………………………………………….प्रचण्ड बहुमत से ढील की पतंगबाजी करते राजीव गांधी भी श्री लंका मैं खींच के पेंच लड़ा बैठे |…पतंग काटते काटते खुद भी शहीद हो बैठे | किन्तु देश की अर्थ व्यवस्था को एक नया मार्ग दे गए ,जिसको आज की पीढ़ी खा रही है |………………………………………………………………………..अब कौन लड़ता पेंच जो कुछ सीखा था वह नरसिम्हा राओ...अपनी कुशलता से ढील के पेंच लड़ाते गए | ढील के पेंच से बाबरी मस्जिद से मंदिर मार्ग बना और भारतीय जनता पार्टी को नया पेंच सिखा दिया | जिसके सहारे आज प्रचण्ड बहुमत की मोदी सरकार बना पाई | …………………………………………………………..सोनिया गांधी जी क्या जाने पतंगबाजी क्या होती है कैसे पेंच लड़ाई जाते हैं …..क्यों लड़ाए जाते हैं ..? …..उन्हें इस पतगबजी के दांव पेंच सीखने मैं वर्षों लग गए किन्तु कांग्रेस के सिपहसलहकर अपने अपने दांव से पतंगबाजी करते रहे |……..आखिर सोनिया गांधी जी को ढील के पेंच मैं माहिर हुयी ,किन्तु आत्म विस्वास की कमी के कारण उनमें पेंच लड़ाने की हिचकिचाहट थी जिसको अर्जुन सिंह ने दूर कर दिया | और पतंग की डोर सोनिया गांधी के हाथ मैं दे दी |………..सोनिया गांधी को एक ही तरह का पेंच सिखाया गया ढील का पेंच …अतः वे हर मामले मैं ढील के पेंच ही लड़ाती रहीं | …और दस वर्षों तक विपक्ष की सारी पतंगे काटती रही | …………………………………………………..…..पतंग बाजी ,जुआ ,शतरंज ,राजनीती ऐसी धाराएं हैं जहाँ एक ही हरिश्चन्द्री चाल सदा जीत नहीं दिलाती | विपक्षी जल्दी समझ जाता है की कैसी चाल चलता है यह | ….चाल की पहिचान हो जाती है तो उसकी काट ढून्ढ ली जाती है | ………………………………………………………………………………………….वही हुआ सोनिया गांधी की ढील की चाल भारतीय जनता पार्टी ने समझ ली .…..बदले मैं चायनीज मांझा उपयोग करके कांग्रेस की पतंग काट दी | ….अब क्या करे कांग्रेस ?..उसे तो एक ही चाल से पेंच लड़ाना आता है | पेंच सोनिया गांधी ने लड़ाना है और उन्हें केवल ढील का पेंच ही आता है |………….वे राहुल गांधी को भी वही सिखा सकती हैं जो उन्होंने सीखा है | …अब सर्वत्र भारतीय जनता पार्टी की पतंगें ही उड़ रही हैं |…कांग्रेस की पतंगें एक एक कर कटती जा रही हैं | …काश सोनिया गांधी जी ने भी खींच के दांव पेंच सीखे होते | ……………………………………………………………………………………..कांग्रेस के बुजुर्ग तो आशान्वित हैं इतिहास की तरह एक बार फिर ढील के पेंच कांग्रेस की पतंग को लहराएंगे | विपक्ष इस ढील से भ्रमित हो अपने माँझे मैं खिस्सा लगा बैठेगा | …और उसकी पतंगें एक एक कर फिर कटती जाएंगी | खींच के पेंच से कुछ समय ही आसमान मैं टिका रहा जा सकता है | यह भी इतिहास बताता है | भारतीय जनता पार्टी के पास भी तो वही चालें हैं जिनसे कांग्रेस सदा खेलती आई है |..अतः पतंग काटना कठिन नहीं होगा | ……………………………………………………………………………ओम शांति शांति शांति
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