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तीन साल.,गौ भक्त मारा मारी कर गौलोक धाम जायेगा

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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व्यंग्य ,अथ द्वितीयोध्यायः ..गाय को अब ..“राष्ट्रिय पशु” ..बना दिया जायेगा | गौ माता हम तुम्हें पाल नहीं सकते ,पूज नहीं सकते | किन्तु गौ मांश खाने वालों को मारकर तुम्हें .. “राष्ट्रिय पशु”…. बना सम्मानित तो कर सकते हैं | हम अपनी माँ की सेवा नहीं कर सकते तो किसी पशु की कैसे कर सकेंगे | गौ माता तो केवल हिन्दुओं की होगी ,किन्तु ..“राष्ट्रिय पशु”.. तो पुरे राष्ट्र का होगा | ………………………………………………………………………………..नारद मुनि की नारायण नारायण कहते भक्ति ,चैतन्य महा प्रभु की भक्ति ,और उसके बाद ,मीरा ,सूरदास ,तुलसीदास की भक्ति के बाद स्थापित मोदी भक्ति ………………………………………………………………………………….जैसे श्रीकृष्ण भक्ति बिना गौ के सम्पूर्ण नहीं हो सकती उसी प्रकार आधुनिक मोदी भक्ति भी बिना गौ के सम्पूर्ण नहीं हो सकती | …………………………………………………….श्रीकृष्ण यानि गोपाल …………………………………………जहाँ श्रीकृष्ण भक्ति वहां गौ तभी तो वे गोपाल कहलाये …| एक युग कृष्ण युग था गौ भक्ति से ओतप्रोत भक्त गाय की पूजा सेवा को गौलोक (मरने के बाद सबसे उत्तम लोक ) का मार्ग मानते थे | गोपियों संग ग्वाल बाल,गौ क्रीड़ाएं करते भक्ति मैं ओत प्रोत हो जाते थे | ……………………………………………………………………………….युग अब मोदी भक्ति का है गौ सेवा अब भी होती है | गौ को अब भी गौलोक धाम का मार्ग माना जाता है | किन्तु यहाँ कलियुगी गौ भक्ति अनोखी है जहाँ आराध्य मोदी जी की भक्ति मैं गौ भक्ति भी कलियुगी बन चुकी है | यहाँ गौ भक्ति तब जाग्रत होती है जब कोई गाय को काटता है उसके वंश को मारता है | गौमांस भक्षण करता है | ऐसा करने वाला मुस्लमान हो तो गौ भक्ति का जागरण अति तीब्रता से होता है | अब विपक्षी पार्टी पर भी जागरण मैं तीब्रता होने लगी है | क्यों न हो ,,आराध्य मोदी जी के प्रिय गौ को मारने खाने वालों को कैसे छोड़ा जा सकता है | अपने आराध्य मोदी जी को प्रसन्न करने का इससे अच्छा मार्ग क्या हो सकता है | हिन्दू जन जागरण तो होगा ही साथ साथ आराध्य भी प्रसन्न हो कुछ न कुछ वरदान अवश्य दे देंगे | ……………………………………………………………………………………….. ………………...भक्त गौ सेवा नहीं कर सकते हैं तो क्या गौ को मारने ,काटने खाने वालों को प्रताड़ित करके तो पुण्य कमा ही सकते हैं | जो भूल पाप, गौ भक्तों ने गौ न पालकर या पालने के बाद भी उसको प्रताड़ित करके (अनुपयोगी हो जाने पर )और अंत मैं उसको बेच कर कसाईयों तक पहुँचाकर किया , उसका प्रायश्चित तो करना ही होगा | ……………………………………………………..गौलोक धाम मरने के बाद मिले या न मिले इस जन्म मैं आराध्य को खुश करके अच्छे दिनों का गौलोक धाम का मार्ग जीवित ही मिल जायेगा | ……………………………………………………………………………..श्रीकृष्ण काल मैं हर व्यक्ति गौ को पालकर दिन रात उसकी सेवा करते गौलोक मार्ग सुगम करता था | …किन्तु धीरे धीरे मॅहगाई बढ़ती गयी लोग अन्य भोग विलास मैं डूबते गौ नहीं पाल सके तो उसको कलियुग मैं पंडितों ने सुगम कर दिया था …मरने से पहिले या बाद मैं क्रियाकर्म मैं किसी गाय की पूँछ पकड़कर दान देकर ….पुण्य लोक का मार्ग सुगम करके | ………………………………………………………………………………किन्तु अब मोदी भक्ति युग है अब अपने आराध्य को खुश रख सकना गाय को पालकर नहीं कर सकते हैं | महगाई से तृस्त जनता घर परिवार का पालन पोषण भी नहीं कर पाती है तो कैसे एक गाय का बोझ झेल पाएगी | गौलोक धाम तो मरने के बाद ही मिल सकता है वह भी तब, जब संतानें गौदान कर सकें | अतः सबसे सुगम मार्ग यही बन गया है कि गौ काटने ,मारने खाने वालों का संहार कर पुण्य कमाओ | इस लोक मैं भी अच्छे दिन और मरने के बाद भी गौलोक मैं अच्छे दिन ….| ………………………………………………………………………………….. भारतवर्श के सभी वैष्णवों के मन में मरणोंपरांत गोलोक धाम की कामना रहती है। पर यह गोलोकधाम है क्या ? कहाँ पर है ? कैसे जाते हैं ? यों तो इनके बारे में शायद वही बता सकता है जो गया हो परंतु जाने के बाद वहाँ से लौटना तो होता ही नहीं – कदाचित कोई लौटे तो बताने की स्थिति में नही होता है – कैसे पता किया जाय? यह एक यक्ष प्रश्न है ? जिसका उत्तर धर्मशास्त्रों में ही है । शास्त्र भी एक नेत्र है । शास्त्र- नेत्र से गोलोक धाम का दर्शन हो सकता है ।…………………………………………………………………………….पुराणों में गोलोकधाम का जो वर्णन है, वह मनुष्य की सोच, विश्वास व कल्पना से परे है। वहां का सब कुछ अनिर्वचनीय (वर्णन न किया जा सके), अदृष्ट और अश्रुत (वैसा दृश्य कभी देखने व सुनने में न आया हो) है। गोलोकधाम बहुमूल्य रत्नों व मणियों के सारतत्व से बना है, वहां के घर, नदी के तट, सीढ़ियां, मार्ग, स्तम्भ, परकोटे, दर्पण, दरवाजे सभी कुछ रत्नों व मणियों से बने हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण अपनी नीली आभा के कारण भक्तों द्वारा ‘नीलमणि’ नाम से पुकारे जाते हैं। ……………………………………………हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि गोलोकधाम में कितने गोप-गोपियां है, कितने कल्पवृक्ष हैं, कितनी गौएं हैं। सब कुछ इतना अलौकिक व आश्चर्यचकित कर देने वाला है कि सहज ही उस पर विश्वास करना कठिन हो जाता है। पर भक्ति तर्क से नहीं, विश्वास से होती है। गोलोकधाम का पूरा वर्णन करना बड़े-बड़े विद्वानों के लिए भी संभव नहीं है, परन्तु श्रद्धा, भक्ति और प्रेमरूपी त्रिवेणी के द्वारा उसको समझना और मन की कल्पनाओं द्वारा उसमें प्रवेश करना संभव है, अन्यथा किसकी क्षमता है जो इस अनन्त सौंदर्य, अनन्त ऐश्वर्य और अनन्त माधुर्य को भाषा के द्वारा व्यक्त कर सके..|…………………………………………………………………………गोलोक ब्रह्माण्ड से बाहर और तीनों लोकों से ऊपर है। उससे ऊपर दूसरा कोई लोक नहीं है। ऊपर सब कुछ शून्य ही है। वहीं तक सृष्टि की अंतिम सीमा है। गोलोकधाम परमात्मा श्रीकृष्ण के समान ही नित्य है। यह भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से निर्मित है। उसका कोई बाह्य आधार नहीं है। अप्राकृत आकाश में स्थित इस श्रेष्ठ धाम को परमात्मा श्रीकृष्ण अपनी योगशक्ति से (बिना आधार के) वायु रूप से धारण करते हैं।………………………………………………………………………प्रलयकाल में वहां केवल श्रीकृष्ण रहते हैं और सृष्टिकाल में वह गोप-गोपियों से भरा रहता है। गोलोक के नीचे पचास करोड़ योजन दूर दक्षिण में वैकुण्ठ और वामभाग में शिवलोक है। वैकुण्ठ व शिवलोक भी गोलोक की तरह नित्य धाम हैं। इन सबकी स्थिति कृत्रिम विश्व से बाहर है, ठीक उसी तरह जैसे आत्मा, आकाश और दिशाएं कृत्रिम जगत से बाहर तथा नित्य हैं। ………………………………………………………………………..योगियों को स्वप्न में भी इस धाम का दर्शन नहीं होता परन्तु वैष्णव भक्त भगवान की कृपा से उसको प्रत्यक्ष देखते और वहाँ जाते हैं। वहां आधि, व्याधि, जरा, मृत्यु, शोक और भय का प्रवेश नहीं है। मन, चित्त, बुद्धि, अहंकार, सोलह विकार तथा महतत्त्व भी वहां प्रवेश नहीं कर सकते फिर तीनों गुणों–सत्, रज, तम के विषय में तो कहना ही क्या? वहां न काल की दाल गलती है और न ही माया का कोई वश चलता है फिर माया के बाल-बच्चे तो वहां जा ही कैसे सकते हैं। यह केवल मंगल का धाम है जो समस्त लोकों में श्रेष्ठतम है। वहां कामदेव के समान रूपलावण्यवाली, श्यामसुन्दर के समान विग्रहवाली श्रीकृष्ण की पार्षदा द्वारपालिकाओं का काम करती हैं। ………………………………………………………………………………………. कृष्ण भक्त ही गोलोक के अधिकारी हैं क्योंकि अपने भक्तों के लिए श्रीकृष्ण अंधे की लकड़ी, निराश्रय के आश्रय, प्राणों के प्राण, निर्बल के बल, जीवन के जीवन, देवों के देव, ईश्वरों के ईश्वर यानि सर्वस्व वे हीं हैं बस।………………………………………………………………………...श्री कृष्ण भक्ति को जगाने वाले चैतन्य महा प्रभु माने जाते हैं जिनसे मोदी जी को प्रेरणा मिल रही है | और हिंदुस्तान का अच्छे दिन का नारा कारगर होगा | …………………………………………चैतन्य महाप्रभु (१८ फरवरी, १४८६-१५३४) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं।………………………………………………. इन्होंने भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामंत्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है।

श्रीकृष्ण ही एकमात्र देव हैं। वे मूर्तिमान सौन्दर्य हैं, प्रेमपरक है। उनकी तीन शक्तियाँ- परम ब्रह्म शक्ति, माया शक्ति और विलास शक्ति हैं। विलास शक्तियाँ दो प्रकार की हैं- एक है प्राभव विलास-जिसके माध्यम से श्रीकृष्ण एक से अनेक होकर गौ ,ग्वाल बाल और ,गोपियों से क्रीड़ा करते हैं। दूसरी है वैभव-विलास- जिसके द्वारा श्रीकृष्ण चतुर्व्यूह का रूप धारण करते है। चैतन्य मत के व्यूह-सिद्धान्त का आधार प्रेम और लीला है।……………. ………………………………………………………………………………..गोलोक में श्रीकृष्ण की लीला शाश्वत है। प्रेम उनकी मूल शक्ति है और वही आनन्द का कारण है। यही प्रेम भक्त के चित्त में स्थित होकर महाभाव बन जाता है। यह महाभाव ही राधा है। राधा ही कृष्ण के सर्वोच्च प्रेम का आलम्बन हैं। वही उनके प्रेम की आदर्श प्रतिमा है। गोपी-कृष्ण-लीला प्रेम का प्रतिफल है।………………………………………………………………………………चैतन्य महा प्रभु ने भक्ति मैं लीन होकर …………शिष्यों के सहयोग से ढोलक, मृदंग, झाँझ, मंजीरे आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया।

हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे। हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे…………………………………………………………….कहते हैं, कि इनके हरिनाम उच्चारण से उन्मत्त हो कर जंगल के जानवर भी इनके साथ नाचने लगते थे। बड़े बड़े जंगली जानवर जैसे शेर, बाघ और हाथी आदि भी इनके आगे नतमस्तक हो प्रेमभाव से नृत्य करते चलते थे।……………………………………………………………………………..उन्होंने कुष्ठ रोगियों व दलितों आदि को अपने गले लगाकर उनकी अनन्य सेवा की। वे सदैव हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देते रहे। साथ ही, उन्होंने लोगों को पारस्परिक सद्भावना जागृत करने की प्रेरणा दी। वस्तुत: उन्होंने जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को मानवता के सूत्र में पिरोया और भक्ति का अमृत पिलाया।…………………….और विश्व मानव को एक सूत्र में पिरोते हुए यह समझाया कि ईश्वर एक है। उन्होंने लोगों को यह मुक्ति सूत्र भी दिया-

कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, पाहियाम। राम राघव, राम राघव, राम राघव, रक्षयाम॥
………………………………………...हिन्दुस्तानियों के सभी दुखों के नाश का अब एक मात्र मार्ग गौ भक्ति से ओत प्रोत होकर चैतन्य महा प्रभु की तरह भक्ति मार्ग ही है |
अब गौ भक्तों का हिंदुस्तान विश्व गुरु बनेगा जहाँ प्रधान मंत्री मोदी जी की भक्ति ,और योगी आदित्यनाथ की भक्ति मिलकर नमो नारायण …नमो नारायण ..जपते सिद्ध स्थानों मंदिरों मैं विचरण करेगी | हिंदुस्तान के समस्त गौ भक्त ही नहीं अन्य भक्त जनता भी ढोल मंजीरों के
साथ साथ उनका अनुसरण करेंगे | ……………………………………………………………………………………..एक तरफ मोदी जी गौ भक्तों को श्री कृष्ण भक्ति की अलख जगायेंगे वहीँ दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ जी भी राम भक्ति के लिए राम राम, राम मंदिर से राम भक्ति |………………………………………….. सम्पूर्ण हिंदुस्तान की भक्ति मोदी जी और योगी आदित्यनाथ जी का अनुसरण करते गली गली शहर शहर राज्यों मैं चैतन्य महा प्रभु की तरह ………………………………………….. हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे। हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे…………. की धुन गाते गुजरती रहेगी | और उसमें से ……………………………………..नमो नारायण नमो नारायण से सम्पूर्ण हिन्दुस्तानियों को अच्छे दिनों का गोलोक मार्ग निकल आएगा |
………………………..पूर्व काल मैं भक्त नारद मुनि ने भी जन कल्याण के लिए …...”नमो नारायण “
ही जपा था | ………………………………………………………..इति द्वितीयोध्यायः ………………………………...ॐ शांति शांति शांति

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