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स्वधर्म से भटकते मोदी ….और उनकी पार्टी

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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.क्षत्रीय का धर्म शूरवीरता ,तेज ,धैर्य ,चतुरता ,और युद्ध मैं न भागना ,दान देना आदि | .……………...वैश्य के स्वाभाविक धर्म …खेती ,गोपालन और क्रय विक्रय रूप सत्य व्यव्हार हैं | ……………………………………………………………………………………....शूद्र का धर्म सब वर्णों की सेवा करना ही होता है | ………………..…………………………………………..कौन सा वर्ण अपने आप को धर्मी कह सकता है यह, आजकल के समय | जन्म से कुछ , कर्म से कुछ और ही धर्म कर्म करते सब पापी ही तो सिद्ध हो रहे हैं | जब अपने धर्म कर्म को त्याग कर दूसरे के धर्म कर्म को अपना लेते हैं तो धर्म कहाँ रहा | दुनियां ही पापी हो चुकी है | स्वधर्म मैं ही जीयें तो कैसे विकास कर सकते हैं | दुनियां कितनी विकसित हो चुकी है | विकास पुरुष बनना है तो स्वधर्म त्यागना ही होगा | …………………………स्वधर्म त्यागते ही सब कुछ विकसित हो जाता है | और एक अनोखा धर्म जन्म ले लेता है जिसको राजधर्म कहा जाता है | जहाँ बहुरूप भी धारण कर लिया जाता है | साम दाम दंड भेद की नीति भी धर्म हो जाती है | धर्म एक ही रह जाता है सिर्फ सत्ता ….| ………….सत्ता के लिए अपने स्वाभाविक धर्म भी त्यागते झाड़ू भी उठा ली जाती है | और झाड़ू वाला सत्ता भी पा लेता है | शक्ति को पाना ही लक्ष हो जाता है ,मार्ग कितना ही दुरूह क्यों न हो सुगम हो जाता है | …क्यों की राजसी बुद्धि की व्याख्या भी ३१ वे श्लोक मैं की गयी है ………………………………………………………..”मनुष्य जिस बुद्धि के द्वारा धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य और अकर्तव्य को यथार्थ नहीं जानता ,वह बुद्धि राजसी होती है ”…………………………………………………………………….गीता के अट्ठारहवें अध्याय का ४६ वां श्लोक राजनीती मैं अपना अश्तित्व खो जाता है ……………………………..”.जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुयी है ,और जिससे समस्त जगत व्याप्त है ,उस परमेश्वर की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धी को प्राप्त हो जाता है ”………………………………………………………………...स्वधर्म को त्यागो तभी विकास पा सकोगे | परिवर्तन मैं ही विकास है ,कुछ नया सोचो नया करो तभी विकास होगा | बदलाव सत्ता का बदलाव ,विचारों का बदलाव ,इंडिया के दो टुकड़े हुए एक हिंदुस्तान एक पाकिस्तान महात्मा गांधी ने समर्थन किया ,पाकिस्तान को सहायता दी मुस्लिम तुष्टिकरण किया, और समाधिष्ट हुए | किन्तु आज वही महात्मा गांधी स्वच्छता अभियान से स्वधर्मी बन गए | लोह पुरुष सरदार पटेल तो साक्षात लोह पुरुष बनते स्वधर्मी बन गए | साम्यवाद का विरोध तो वैश्वीकरण का भी विरोध …| रंगीन टी वी , कम्प्यूटर का विरोध ,जिस वैश्वीकरण ने भारतीय कंपनियों का सफाया कर दिया | पूंजीबाद ने गरीब और गरीब बना दिए | केवल विदेशी कम्पनियों का ही बर्चश्व रह गया है | या चायनीज का | अब उसी नीति पर मेक इन इंडिया पर आमंत्रण …………..क्या अब भारतीय उत्पाद एक बार फिर रसातल मैं चले जायेंगे | सब कुछ भूल गए …| धारा 370 का विरोध मुस्लिम तुष्टिकरण सब भूल गए | कश्मीर चुनाव सर पर हैं कश्मीर मैं सब कुछ झोंक दो ,स्वधर्म गया जाने दो | राम मंदिर अभी ठन्डे बस्ते मैं डालो | समान संहिता भूल जाओ | जो भूत काल मैं आलोचनात्मक था आज धर्म बन चूका है | उचित ही तो है देश काल ,ऋतू के अनुसार धर्म बदलना ही दीर्घजीवी बनाता है | डॉक्टर भी देश काल ,आयु ऋतू के अनुसार ही अपनी दवा देता है |………………………………………………....ईश्वर की ,…………….राजनीती के स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करते परम सिद्धी ही तो प्राप्त कर रहे हैं | यही तो राज धर्म होता है | ईश्वर सिद्धी क्यों नहीं प्रदान करेगा | ………………………………………………राजस धर्म की व्याख्या भी निम्नवत की गयी है ………………”.कड़वे ,खट्टे ,लवणयुक्त ,बहुत गरम ,तीखे ,रूखे ,दहकारक और दुःख चिंता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार अर्थात भोजन करने के पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं | ”………………………………………………………………………...”..केवल दम्भाचरण के लिए अथवा फल को दृष्टी मैं रखकर जो यज्ञ किया जाता है वह राजस होता है ”………………………………………………………………………………………………….जो तप सत्कार ,मान ,और पूजा के लिए भी स्वाभाव से या पाखंड से किया जाता है ,वह अनिश्चित और क्षणिक फलवाला तप राजस कहा गया है |”…………………………………....”..जो दान क्लेश पूर्वक तथा प्रत्युपकार के प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टी मैं रखकर फिर दिया जाता है वह दान राजस कहा गया है | ”………………………………………………………………………………………………….”.जो कर्मबहुत परिश्रम से युक्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष या अहंकार युक्त पुरुष द्वारा किया जाता है वह कर्म राजस कहा गया है ”………………...”.जो कर्ता आसक्ति से युक्त ,कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी है तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाववाला ,अशुद्धाचारी और हर्ष शोक से लिप्त है वह राजस कहा गया है ”.…………………………………………”.फल की इच्छा वाला मनुष्य जिस धारणा शक्ति के द्वारा अत्यंत आसक्ति से धर्म ,अर्थ और कामों को धारण करता है वह धारणा शक्ति राजसी है ”………………………………………………………………”.जो सुख विषय और इन्द्रियों के संयोग से होता है ,वह पाहिले भोगकाल मैं अमृत तुल्य प्रतीत होता है किन्तु परिणाम मैं विष तुल्य होता है ऐसा सुख राजस कहा गया है |”………………………...अंत मैं भगवन कहते हैं …..तेरे लिए कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था मैं शास्त्र ही प्रमाण है | ऐसा जानकर तू शास्त्र विधि से नियत कर्म ही करने के योग्य है …”.सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझ मैं त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान ,सर्वाधार परमेश्वर की शरण मैं आ जा | मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा ,तू शोक मत कर ||”…………………………”.जहाँ योगेश्वर भगवन श्रीकृष्ण हैं और गांडीव धारी अर्जुन हैं ,वहीँ पर श्री ,विजय ,विभूति और अचल नीति है ”……………………………जिसके साथ भगवन कृष्ण हैं वहाँ अर्जुन योगी ही कहलाते हैं | …………………………………………..भगवन तो कहते हैं मेरा भक्त मुझको सब यज्ञ और तपों का भोगने वाला ,सम्पूर्ण लोकों के ईश्वर का भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण भूत प्राणियों का सुहृद अर्थात स्वार्थ रहित दयालु और प्रेमी ,ऐसा तत्व से जानकर शांति को प्राप्त होता है ||…………………………………………………………………….धर्म की जय हो ,अधर्म का नाश हो प्राणियों मैं सद्भावना हो ,विश्व का कल्याण हो ..……………………………………………….ओम शांति शांति शांति

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