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‘उलटे चश्मे’ वाले “तारक मेहता”का बनारसी रंग

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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व्यंग्य …….चौं रे चंपू! गरदभ-चरचा बंद भई कै नायं?

—गर्दभ-चर्चा घर लेटी, बंद हो गईं मतपेटी।…………………………………..महान …..अशोक चक्र धर हमारे देश का संविधान है जहाँ यह नजर आजाये वही सत्य है | इसीलिए कहा गया है………… सत्यमेव जयते…….| . इसीलिए हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी भी इनकी कविताओं का सन्दर्भ देकर जनता का भय नाश करते हैं ………. भ्रस्टाचार के चार रूपों का वर्णन ………………………………………………………………….निर्भयजी की पंक्तियां हैं, ……………………………………………………………….‘कोई कहता निपट-निरक्षर नीच गधा है, कोई कहता कूड़ा-करकट कीच गधा है,| ……………………………………पर शब्दों के शिल्पी ने जब शब्द तराशे, उसने देखा स्वर्गधाम के बीच गधा है।’ देखिए, ‘स्वर गधा म’, स्वर्गधाम को खोल कर देखिए, गधा बीच में मिलेगा। ………………स्वर्ग सुख का आभास करता गधा महिमा अपरंपार होती है | राजनीतिज्ञ गधों की महिमा बखूबी जानते हैं | यदि गधे नहीं होते तो वे कैसे शासन सत्ता सुख भोग पाते | …………… जुग जुग जीयो गधो …..| यदि अपना अपने परिवार का ,अपनी जाति का अपनी पार्टी का उद्धार करना है तो गधों को बराबर सम्मान देना चाहिए तभी विकास मार्ग सुगम हो जाता है | गधे अपने स्वदेश मैं ही उत्प्रेरक होते हैं यह कहना भी गलत है अंतरराष्ट्रीय तौर पर भी उनकी उपयोगिता बनी रहती है | दुनियां के बड़े बड़े विकसित देश भी इन गधों के कारन ही विकास कर पाए | अपना मार्ग सुगम कर चुके भुक्तभोगी ही गधे की महिमा का वर्णन करके अन्य लोगों का मार्गदर्शन कर सकते हैं | अमेरिका मैं तो पार्टी का चुनाव चिन्ह ही गधा रख लिया जाता है |…………………………………………………………….कुछ भी हो गधों को बड़ी सुगमता से उल्लू बनाया जा सकता है | क्योंकि गधे बहुत भावुक होते हैं भावनाओं मैं बह जाना उनकी प्रकृति होती है अतः वे अपना दिमाग का प्रयोग करना व्यर्थ समझते हैं | ………….वेचारा उल्लू एक ऐसा जीव है जिसका महत्त्व गधे से भी ज्यादा होता है किन्तु उसको अपसगुन मान कर उसकी चर्चा भी नहीं की जाती | अपना अपना भाग्य है | गधों को इसीलिए ढूँढा जाता है की उसे उल्लू बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लिया जाये | ………………एक बार किसी गधे को उल्लू बना लिया जाता है तो उसका महत्त्व बिलकुल ख़त्म हो जाता है ,अतः उसको पहिचानना बेकार होता है | …किसी अन्य स्वार्थ साधन मैं यदि कभी उसको पहिचान लिया जाता है तो गधा अपने को बनाया गया उल्लू भी भूलकर पुनः उल्लू बनने को राजी हो जाता है | ……..पाप का लेश मात्र भी अहसास उसको नहीं होता और वह फिर अपने कर्तव्य कर्म करता हुआ पुनः धर्म मार्ग पर चल पड़ता है | ………………………………………………..एक अन्य जीव बकरा भी होता है जो राजनीती मैं बहुत कारगर होता है अतः उसकी पहिचान कर उसे बलि का बकरा बनाना सत्ता मार्ग को सुगम कर देता है | ………………………………………………………………………लोकतंत्र मैं एक और जीव होता है जिसके बिना लोकतंत्र अपनी पहिचान नहीं बना पाता | वह अभागा जीव भेड़ होता है | लोकतंत्र को भेड़ चाल कहा जाता है | लोकतंत्र को यह जीव अपने उन से, खाल से ,मांस से ,रक्त से ,हड्डियों से पोषित करता रहता है |…………………………………………………………………………..किन्तु सब जीवों मैं सबसे भाग्यशाली गधा ही होता है जिससे प्रेरणा ली जाती है | सौभाग्यशाली होते हैं वे लोग जो गधों की खोज कर लेते हैं | या भाग्यवश उन्हीं कोई गधा मिल जाता है | ………………………………………………………………………..व्यग्यकार भी अजीब होते हैं…….. कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना ……टाइटल है उल्टा चश्मा ….यानि पापी हरिश्चन्द्र ………| उल्टा चश्मा भी मेरा प्रेरणा स्त्रोत्र रहा | अब उल्टा चश्मा के जनक थे तारक मेहता ………….जिनका सर्वलोकप्रिय सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा है | १ मार्च २०१७ को उनका ८७ वर्ष की आयु मैं स्वर्गवाश हो गया | अब उनकी उलटी दृष्टि इन्द्र के राज सिंघासन को हिलाएगी | भगवन उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ताकि उनका उल्टा चश्मा वहां भी धूम मचाये | श्रद्धांजली पुष्प स्वरुप यह ब्लॉग उनको समर्पित ………………………………………………………………मुख्य रूप से अंधे चश्मे के जनक राजनीती मैं भी महत्त्व रखता है | ………………………………………………………………..गधे से प्रेरणा पाते राजनीतिज्ञों द्वारा जनता को उल्लू बनाते ,बकरे की बलि देते ,भेड़ चाल मैं हाँक कर ,उलटे चश्मे से अँधा करते वोट डलवा ही लिया है | अब चुनाव परिणाम ही बतलायेगा की किसका उल्टा चस्मा जनता को ज्यादा अँधा कर चूका है | जीत उसी की होगी जिसने सबसे अधिक गधों को उल्लू बनाते ,बकरों को बलि चढ़ाते ,भेड़ चाल मैं हाँक दिया होगा | …………………………………………………………….तुलसीदास जी ने भी उचित ही कहा है ….ढोल ,गंवार शुद्र ,पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी ………….फिर नियती पर विस्वास करो जो होगा भले के लिए ही होगा …………………………………………………………….भगवन श्रीकृष्ण भी कहते हैं जो कुछ होना है सब मेरे द्वारा सुनिश्चित है …………………….अतः जो कुछ मिल जाये खाओ पियो मेरे लिए निस्वार्थ ,निष्काम भाव से कर्म करो और सो जाओ …………..बाकि सब कुछ मेरे पर छोड़ दो …………………………………………………………………………………जीत चुके प्रत्यासियों को होली की शुभ कामना देकर उन्हैं भी गधा समझकर उल्लू बनाओ और अपने अपने उल्लू सिद्ध कर लो | समझदार वही जो उल्लू बन चुकने के बाद उल्लू बनाने के गुर अपनाये | ……………………………………………………………………………….अंतिम समय मैं मोक्ष प्रदान करने वाली काशी यानि बनारस मैं सत्यवादी हरिश्चन्द्र .को तो उल्लू बनाया जा सकता है | हरिश्चन्द्र स्वर्ग मैं मोक्ष्य की कामना लिए अपना सब कुछ गँवा देते हैं | किस राजनीतिक पार्टी को यहाँ मोक्ष्य मिलेगा ,कौन राज सत्ता पायेगी ….? जिसको राज सत्ता की कामना नहीं होगी …? ..किन्तु गीता के ज्ञानी योगी तो सब कुछ त्याग करके भी अपना अंत काशी यानि बनारस मैं करके भी मोक्ष्य पाकर भी संतोष करेंगे | भगवन शिव की नगरी काशी सबका सामान भला करती है यहाँ कोई निरास नहीं होता है | ………………………………………………………………………………...महान कलाकार अमिताभ बच्चन जी के अनुभव .तो कहते हैं .……………….खाय के पान बनारस वाला खुल जाये बंद अकल का ताला ……….छोरा गंगा किनारे वाला ….ताला खोलने मैं कौनसा छोरा कामयाब होगा ..?….गोद लिया या ठेठ बनारसी या निकट संबंधी ……जब गोद लिए छोरे को ताला खोलने मैं सफलता मिलती है तो गंगा किनारे के छोरों को दुःख तो होगा ही | बनारस के ठग छोरे तो दुनियां मैं मसहूर होते हैं किन्तु जब उनको ही कोई गोद लिया छोरा ठग ले जाये तो अजीब तो होगा ही ,,,,,| चेताना तो बनारसी छोरों का धर्म है ही किन्तु जनता फिर भी ठगी जाती है तो उनका क्या दोष ……| ११ मार्च को तो पता चल ही जायेगा की गोद लिए छोरे की ठगी कारगर होती है या गंगा किनारे वाले वाले छोरों की ……………|….११ मार्च के परिणामों के बाद तो छोरे गंगा किनारे वाले देव आनंद का यही गीत गुन गुनाते नेताओं को खुश करेंगे ………………...बुरे भी हम, भले भी हम समझियो न किसी से कम ,हमारा नाम बनारसी बाबु ….हम हैं बनारसी बाबु ………………| …………………………….कहीं ऐसा न हो मोहिनी स्वरूपा छोरों को ठग होली मुबारक कर ले और,छोरे मोक्ष्य पा लें | ………………………………………खैर पापी हरिश्चन्द्र को तो किसी को सत्ता मिले या किसी को मोक्ष्य सभी को होली मुबारक कहना ही होगा तभी …………………………………………………………………………………….. .ॐ शांति शांति शांतिमिलेगी

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