२०१४ का दिल्ली विधान सभा चुनाव त्रिकोणीय था जिसमें कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी सशक्त थीं किन्तु आप और उसके संथापक अरविन्द्र केजरीवाल नौसिखिये थे | दो सशक्त बिल्लियाँ एक रोटी के टुकड़े पर लड़ती रहीं और केजरीवाल की आप ने चमत्कार कर दिया | ……….२०१५ का दिल्ली विधान सभा चुनाव भी त्रिकोणीय ही है किन्तु बिल्ली केजरीवाल की आप और किरण की भारतीय जनता पार्टी है | दोनों पार्टियां ही सशक्त हैं | भ्रमित बोटर किधर लूडक जाये कोई कुछ कह नहीं सकता है | कांग्रेस के वोटरों की निश्चित आकार की लकीर है | मुस्लमान भी कांग्रेस की झोली मैं ही रहेंगे | वोटर रुपी रोटी का टुकड़ा नुचते नुचते छोटे आकर की लकीर रह जायेगा और कांग्रेस अपनी विधायकों की लकीर बड़ा लेगा | ……………….………….एक ही गुरु के दो ईमानदार छवि वाले केजरीवाल और किरण बेदी भी वोटरों को भ्रमित करेंगे | इस भ्रमित परिस्थिती मैं फिर त्रिसन्कु विधान सभा ही संभावित होगी | त्रिशंकु विधान सभा मैं प्रबल विरोधी आप और भारतीय जनता पार्टी मिलकर कभी सरकार नहीं बना पाएंगे | लौट फेर कर फिर एक ही सम्भावना बचेगी आप और कांग्रेस मिलकर बनायें | भारतीय जनता पार्टी की मोदी लहर और आप की अरविन्द्र केजरीवाल की लहर दोनों आपस मैं भिड़कर समतल हो जाएंगी | इस समतल धरातल मैं लगता यही है की कांग्रेस अपनी विधायक संख्या दुगनी कर लेगा और अपना मुख्यमंत्री बनाने को बाध्य कर देगा | आप और कांग्रेस मिलकर सरकार तो बनाएंगे किन्तु मुख्यमंत्री कांग्रेस का ही होगा | ………………………………………………..यानि की कांग्रेस के घोषित अजय माकन जी ही माखन खाते नजर आएंगे | मैं इधर जाऊँ या उधर जाऊँ…के भ्रम से वोटर कांग्रेस की झोली मैं खुशियां भर देंगे | राजनीती की यही कूटनीति होती है दो सशक्त दुश्मनों को लड़ कर कमजोर होने दो और सत्ता हथिया लो | एक चमत्कार फिर होगा दिल्ली की राजनीती मैं | कांग्रेस का फूटा भाग्य फिर से जाग्रत हो जायेगा | ………………………………………………..भारतीय जनता पार्टी का सांसदों ,विधायकों कार्यकर्ताओं की भयंकर फौज भी इसीलिये तैनात की जा रही है की पूर्ण बहुमत हासिल कर ले | किन्तु जितनी बड़ी फौज जनता को नजर आएगी जनता और भी भ्रमित होगी | अरविन्द्र केजरीवाल तो हरिश्चन्द्री रूप मैं ही रहेंगे उनके भाग्य मैं अपने दुश्मन को हराना तो लिखा है किन्तु उसका लाभ दूसरा ले उड़ता है | पाहिले कांग्रेस को हराया ,अब भारतीय जनता पार्टी को हराना या सत्तारूढ़ न होने देना | खैर हरिश्चंद्र तो इतने से ही खुश हो जाता है की उसके ईमानदार सत्य स्वरुप से बड़े बड़े सम्राट भी धरासायी हो जाते हैं | सत्ता मिले न मिले ईमानदार रहकर सत्य ही तो बोलना है | जो राजनीती मैं कभी कामयाब नहीं होता | राजनीती मैं तो ईमानदारी सत्य वादिता को छोड़कर साम , दाम दंड ,भेद सभी अपनाना होता है | ……………………………………………………………………………………………………अवसरवादी व्यक्ति ही व्यवसाय या राजनीती मैं सफल होता है | राजनीती मैं मौके का फायदा न उठाने वाले मुर्ख ही कहे जाते हैं | धर्म ईमान सब राजनीती ही होती है | बीते कल मैं क्या कहा सब भुला देना होता है | राजनीतिज्ञ वर्तमान मैं जीता है तभी तो सम्राट तक बन जाता है | …………………………………….ओम शांति शांति
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