.महान ज्ञानी संत ,साध्वियों का बड़प्पन उन्होंने इस संसार के भोगी व्यक्तियों से ज्ञान देने पर भी क्षमा प्रार्थना कर ली | महान संतों की यही पहिचान होती है | परन्तु अज्ञानी कहाँ मानने वाले | प्रधानमंत्री जी के गंभीर भाव भंगिमा वाले ज्ञान से भी अज्ञानी नहीं समझ सके | उन्हें तो लौकिक सुखों के लिए राजस मार्ग ही उचित लगता है | किस भाषा मैं ,किस तरह ज्ञान मार्ग दिखाया जय अज्ञानियों को प्रधान मंत्री जी चिंतित हो गए हैं | सन्मार्ग पर आएं तो संसद के साथ साथ इनका भी लोक परलोक सुधर जाता |
”गीता मैं भगवन कृष्ण ने कहा है परम अक्षर ओम ‘ब्रह्म’ है अपना स्वरुप जीवात्मा ”अध्यात्म” कहा गया है | उत्पत्ति विनाश धर्म वाले सब पदार्थ प्रजापति ”ब्रह्मा” ही हैं | इस शरीर मैं अन्तर्यामी रूप से मैं भगवन कृष्ण ही हूँ | ”……………………………………………..निराकार परमात्मा से यह सब जगत जल से वर्फ के समान है |……………………कल्पों (प्रलय ) के अंत मैं सब भूत मेरी प्रकृति को पाते हुए मुझमें लीन हो जाते हैं | और फिर कल्पों (प्रलय ) के आदि मैं उनको मैं फिर रचता हूँ | ……………………………………………………………………………………..मेरी ब्रह्म रूप मूल प्रकृति सम्पूर्ण भूतों की योनि है अर्थात गर्भाधान का स्थान है और उस योनि मैं चेतन समुदाय रूप गर्भ को स्थापित करता हूँ | जड़ और चेतन के संयोग से सब भूतों की उत्पत्ति होती है | नाना प्रकार की योनियों मैं जितने शरीर धारी प्राणी उत्पन्न होते हैं ,प्रकृति तो उन सबकी गर्भ धारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापित करने वाला पिता हूँ | ………………..सम्पूर्ण श्रष्टि को उर्ध्वमूल वाला बृक्ष कहा गया है जहाँ सबसे ऊपर आदि पुरुष परमेश्वर ,जो मायापति ,सर्वशक्तिमान ,श्रष्टि के कारक हैं परमेश्वेर से अध यानि नीचे मुख्य शाखा वाले श्रष्टि कर्ता ब्रह्मा हैं | जिनसे श्रष्टि की विभिन्न शाखा उपशाखा पत्ते फल फूल आदि के समान देवता ,मनुष्य , आदि अन्य योनियों का विस्तार हुआ | …………………………....इस बृक्ष का मूल कारण परमेश्वर अविनाशी है | जबकि ब्रह्म लोक पर्यन्त सब क्षणिक और नाशवान हैं | ……………………..…………………………………………श्रीमद भगवत गीता भगवन कृष्ण की वाणी है | जिसका ज्ञान होने के पश्चात भोगी सब कुछ तुच्छ समझते हुए माया मोह से दूर होता जाता है | उसे संसार दुखों का कारण लगने लगता है | इसलिए वह भगवन की भक्ति मैं लीन होता जाता है | उसे यही दुखों के अंत और मुक्ति मार्ग लगता है | यहाँ तक वह सन्यासी हो जाता है | ……………………………………………………………………………..लोक हित के लिए सन्यासी भी सांसद बन जाते हैं | नारद मुनि भी तो लोक हित के लिए सन्यासी रूप मै तीनों लोकों मैं विचरण करते रहते हैं | दिव्य दृष्टिवान नारद से ,सन्यासी सांसद यदि अपनी ज्ञानी भाषा मैं सब कुछ ईश्वरमय ही देखते बोल कर मुक्तिमार्ग देते हैं तो यह उनका आशीर्वाद ही समझना चाहिए | ………………………………………………………………………………………....सात्विक ज्ञान तो उसे कहा गया है जिससे मनुष्य पृथक पृथक सब भूतों मैं एक अविनाशी परमात्मभाव को विभाग रहित सम भाव से स्थित देखता है | …………………………....इसी लिए ….साध्वी ,या सन्यासी की कोई जाती नहीं होती | जाति सूचक नाम उनके नहीं होते | साध्वी या सन्यासियों का यही ज्ञान संसद मैं आलोचना का विषय बन गया है | सब कुछ परमेश्वर से ही उत्पन्न है | और उन्हीं मैं अंत मैं समां जाना है तो साध्वी जी का ज्ञान विपक्ष क्यों नहीं समझ पा रहा | नाम कुछ भी ले लो, किसी नाम से जानो पहिचानो परमेश्वर मय ही तो है संसार | उसको सर्वत्र ”रामजादे” ही नजर आते हैं तो यह भक्ति ज्ञान ही तो है उनका | गोपियों को तो सर्वत्र कृष्ण ही नजर आते थे | ……………………….परमेश्वर से ही निकले और परमेश्वर मैं ही समाना है | प्रकृति माँ है परमेश्वर पिता ..तो कैसे कोई ” हरामजादा ” हो सकता है | श्रष्टि मैं सब परमेश्वर की ही शाखएँ ,उपशाखायें ,फूल पत्तियां ही हैं | सब ईश्वर के ही अंश हैं | ………………………………………..…गीता के अनुसार यही ज्ञान कहलाता है इसके आलावा जो भी है सब अज्ञान ही होता है | यानि आत्मा परमात्मा का ज्ञान अध्यात्म ज्ञान ही ज्ञान होता है | ……………………………………………………………………………….अज्ञानी विपक्ष यदि इस ज्ञान को समझ व्यव्हार नहीं करता तो उसका मार्ग लौकिक है | वह राजस मार्ग पर है | जिसका अंत दुखों का कारण बनता है | …………………………………………………………...महान ज्ञानी संत ,साध्वियों का बड़प्पन उन्होंने इस संसार के भोगी व्यक्तियों से ज्ञान देने पर भी क्षमा प्रार्थना कर ली | महान संतों की यही पहिचान होती है | परन्तु अज्ञानी कहाँ मानने वाले | प्रधानमंत्री जी के गंभीर भाव भंगिमा वाले ज्ञान से भी अज्ञानी नहीं समझ सके | उन्हें तो लौकिक सुखों के लिए राजस मार्ग ही उचित लगता है | किस भाषा मैं ,किस तरह ज्ञान मार्ग दिखाया जय अज्ञानियों को प्रधान मंत्री जी चिंतित हो गए हैं | सन्मार्ग पर आएं तो संसद के साथ साथ इनका भी लोक परलोक सुधर जाता | ………………………………………………………………..अज्ञानियों को ज्ञान देने का उचित मंच शायद संसद या कारागार नहीं हो सकता | इससे तो यही सिद्ध हो रहा है | साधु संत ,साध्वियों से किस त्याग की कामना कर रहा है विपक्ष | वे तो पाहिले से ही सांसारिक मोह माया को त्याग कर ही सन्यास आश्रम मैं जा चुके हैं | अगर नारद मुनि जी का लोक कल्याण का उद्देश्य नहीं होता तो हिमालय की कन्दराओं मैं ही तपष्या मैं लीं होते | …………………………….ओम शांति शांति शांति
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