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व्यंग्य ..पतित नरों(जो अपनी पार्टी मैं सम्मान न पा सके ) द्वारा पवित्र गंगा सी भाजपा मैं डुबकी लगाना तो एक साधारण सी बात हो गयी है किन्तु नरों मैं श्रेष्ठ नारायण भी यदि पतित पावन गंगा सी भाजपा मैं डुबकी लगाने को आतुर हो जाएँ तो यही सिद्ध हो जाता है कि गंगा (भाजपा )अवश्य ही पतित पावन होगी | नरों मैं श्रेष्ठ नारायण ,भगवन विष्णु कहे जाते हैं | किन्तु राजनीतिक नरों मैं श्रेष्ठ नारायण रोहित शेखर के जैविक पिता विकास पुरुष नारायण दत्त तिवारी ही ही माने जाते हैं | ………
……………………किन्तु लोक मैं यही समझा जा रहा है कि रोहित शेखर जी अपने उद्धार के लिए ही लालायित हैं | जबकि महात्मा बिदुर की तरह ही वे बिदुर (बुद्धिमान )होने पर भी अपने को राज सिंघासन से स्थापित नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी उत्पत्ति भी महात्मा बिदुर जैसी ही है | कौरवों और पांडवों की पार्टियां क्यों अपने मैं समाहित करने मैं हिचकिचा रही हैं | ध्रतराष्ट्र ,और पाण्डु के भाई होने पर भी सत्ता सुख उनके लिए नहीं मिल रहा है | आखिर कौन थे महात्मा बिदुर ………? महात्मा विदुर अपने भाइयों मैं सबसे बुद्धिमान ,सर्वगुणसम्पन्न विद्वान् और योद्धा थे | उनकी नीतियां बिदुर नीति के नाम से प्रसिद्द हुयी | जबकि उनके बड़े भाई धृतराष्ट्र जन्म से अंधे और पाण्डु जन्म से पीलिया के मरीज थे | बिदुर इतने गुणवान होने पर भी क्यों त्याज्य हुए ….? क्योंकि उनकी माता दासी थी | जबकि ध्रतराष्ट्र और पाण्डु की माता रानी थी | जबकि सर्व बिदित है कि तीनों भाइयों के पिता महान ऋषि वेदव्यास ही थे |.वंश तो पितामह भीष्म का ही चला |……………………………………….दलितों का उद्धार करने की हामी रखने वाली राजनीतिक पार्टियां दलितों का उपयोग केवल वोटों के लिए ही करना चाहती हैं | अपने को स्थापित करने को लालायित एक राजकुमार(रोहित शेखर ) क्यों नहीं धृतराष्ट्र या पाण्डु की तरह स्थापित हो पा रहा है | क्यों बिदुर सा राजपाट से अछूत माना जा रहा है | …………………क्या पितृ मातृ भक्त श्रवण कुमार की तरह ही दशरथ द्वारा रोहित का राजनीतिक अंत हो जायेगा | या कोई दलित उद्धारक बन मुक्ति मार्ग प्रदान करेगा …? |………………या बिदुर की तरह राजनीती से अछूत होते महात्मा बनना पड़ेगा ….?…महात्मा बिदुर महाभारत के युद्ध मैं एक निर्णायक जीत की शक्ति पा चुके थे | किन्तु भगवन श्रीकृष्ण की कुशल कूटनीति ने उन्हीं निष्क्रिय बना दिया था |…और कौरव युद्ध हार गए थे |……………क्या पितृ भक्तों का श्रवण कुमार सा ही अंत होता है | क्या राजनीतिक सत्ता पाने के लिए औरंगजेब बनना जरुरी होता है | या अखिलेश की तरह पिता मुलायम सिंह और निकट सम्बन्धियों से कूटनीतिक तौर से सब कुछ हथिया लेना पड़ता है | पितृ भक्त प्रताड़ित हो महात्मा कहलाते हैं और पितरों से सब छीन झपटकर हथिया लेने वाले सत्ता सुख पा सम्मानित हो जाते हैं|…….बिदुर मैं सत्ता सुख की महत्वाकाँक्षा ही समाप्त हो गयी थी या मजबूरन महात्मा मार्ग अपनाया ..? ……………………………………किन्तु रोहित शेखर मैं पितृ भक्ति भी है और सत्ता सुख की महत्वाकांक्षा भी | सत्ता सुख के लिए पितृ भक्ति या पित्रोद्धार के लिए सत्ता सुख …? |…जो भी हो बिदुर तो कौरव और पांडवो के युद्ध से सत्ता सुख नहीं पा सके | किन्तु रोहित शेखर कौरव ,पांडव की तरह भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को लड़वाकर पितृ भक्ति से सत्ता सुख की तरफ अवश्य स्थापित हो सकते हैं | ………….भविष्य ही बतलायेगा की वे पितृ भक्त श्रवण कुमार की तरह अंत हो जाते हैं या बिदुर की तरह महात्मा कहलाते हैं | या अखिलेश की तरह अपने को स्थापित कर पाते हैं | महात्मा बिदुर बनने के लिए तो वर्षों गंगा (भाजपा) स्नान करना ही पड़ता है | ………………..ॐ शांति शांति शांति
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