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नीरेंद्र नागर वर्णित pk ..के सवालों के जबाब

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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नागर जी ओम शांति शांति ….मुझे लगता है आप pk से भटककर स्वयं ही किसी गुरु रूप मैं प्रवचन करने लग गए हैं | मैं इसी मैं उलझा रहा कि pk मैं क्या होगा | …………………………जिस लोक मैं हम सब जीव रहते हैं वह दुखों दुश्चिंताओं का समुन्द्र कहा जाता है | जिसके निवारण के लिए नारद मुनि सहित मनीषी चिंतन करते रहे हैं | हिन्दुओं का सनातन धर्म भी उन्हीं मैं एक प्रयास है | सनातन धर्म प्राचीन धर्म है | वैदिक काल मैं ईश्वर को निराकार माना गया | निराकार रूप मैं मन को भगवन मैं एकाग्र करना आम जन के लिए कठिन था | इसलिए साकार रूप को मनीषियों ने श्रजित किया साकार रूप को मन मैं बिठाकर मनुष्य ध्यान मग्न हो शांति का आभास करता आया है | ……………हमारे देश के राष्ट्रिय ग्रन्थ श्री मद भगवत गीता मैं भगवन श्री कृष्ण कहते हैं …….जो मेरे को मन मै बसाने वाले भक्त जन सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें अर्पण करके मुझ सगुण रूप परमेश्वर को ही अनन्य भक्ति योग से निरंतर चिंतन करते भजते हैं उनका सम्पूर्ण दुखों का उद्धारक करने वाला होता हूँ | …………………………………………………….मर्म को न जानकर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है ,ज्ञान से मुझ परमेश्वर के स्वरुप का ध्यान ,श्रेष्ठ है और ध्यान से सब कर्मों के फल का त्याग श्रेष्ठ है ,क्यों की त्याग से तत्काल ही परम शांति होती है | १२ (१२) ……………….लेकिन परमेश्वर का ज्ञान कैसे मिले ,ध्यान कैसे प्राप्त हो त्याग की भावना कैसे जाग्रत हो …..? इसी के लिए गुरु की आवश्यकता होती है | वही प्राप्त करने के लिए हम मनुष्य धर्म गुरुओं के पास जाते हैं और आत्म शांति पाते रहते हैं | ………………………..आपका पहला सवाल की …………………पीके आम हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख को इन धंधेबाजों से सावधान करती है और समझाती है कि ‘ऊपरवाले’ से डायरेक्ट कॉन्टैक्ट करो, इन एजेंटों के चक्कर में मत आओ क्योंकि ये एजेंट आपके पैसे से अपना घर भरते हैं। ……………………आख़िर इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि शिवजी पर दूध चढ़ाने से बेहतर है कि वह दूध किसी बच्चे के काम आए? और इस बात से भी कौन इनकार सक सकता है कि आप जो भी पैसा चढ़ाते हैं, वह बाबाओं और साधुओं का वेश धरे बैठे इन धंधेबाजों की ऐयाशी के काम आता है!……………………………………………….…………धर्म गुरुओं को धधेवाज ,एजेंट कहकर क्या अपने को सत्यवादी हरिश्चंद्र सिद्ध कर रहे हो | धर्म गुरु यदि धन्धेवाज़ ,एजेंट हैं तो भी वे दीं दुखी भयभीत लोगों को भयमुक्त करते शांति प्रदान करते हैं | यदि आपकी भाषा मैं वे अपना घर पैसों से भर रहे हैं किन्तु एक अलोकिक शांति तो दे ही रहे हैं | यह फिल्म निर्माता ,निर्देशक ,एक्टर ,लेखक ,राजनीतिज्ञ तो सब कुछ लूटकर करोड़ों का रिकार्ड बनाते अशांति पैदा कर रहे हैं | कौन लूट कर अपना घर नहीं भर रहा है | किसी को महान लेखक का ,किसी को महान एक्टर का ,किसी को महान निर्माता निर्देशक का ,तो किसी को राजनीतिक कुर्सी लोभ ही तो है जिसके चलते भावनाओं से खेलते तन मन और धन से अशांति पैदा करते लूट ही तो रहे हैं | समाज का कौन सा तबका ऐसा है जो लूटेरा नहीं है | अपनी अपनी कुर्सी पर सब अपना धर्म निभाते लूट ही तो रहे हैं | ……………………जब तन से ,मन से ,धन से लूट चुके होगे तो यही धर्माचार्य या ईश्वर आस्था ही शांति प्रदान करेगी | धर्म मैं त्याग करके यानि लुट कर भी गौरवान्वित होते शांति ही पाते हैं | किन्तु और जगह का लुटा भयभीत अशांत हो जाता है | …………………………………………………………………..मूवी ईश्वर-विरोधी नहीं है। यह नास्तिकता का प्रचार नहीं करती लेकिन यह स्पष्ट शब्दों में कहती है कि सड़क पर कुछ रुपयों में बिकनेवाली या मंदिर में रखी मूर्ति आपका काम नहीं करती। यदि आप इसे हिंदू धर्म का अपमान समझें तो यह आपकी समझ है। लेकिन यह बात कोई पहली बार तो नहीं कह रहा।………………………………………………………………………………………………नागर जी मूवी ईश्वर विरोधी नहीं है | सड़क पर चन्द रुपयों मैं विक्ने वाली ,मंदिर मैं रखी मूर्ती काम नहीं आती | नागर जी इसी मूर्ती बदौलत pk करोड़ों कमाते धन दौलत लूट रही है | यह मूर्ती चन्द रुपयों की विक्ने वाली साधारण मूर्ती नहीं होती (जो हिन्दू भक्ति भाव हीन व्यक्ति होते हैं उनके लिए )| इस मूर्ती मैं प्राण प्रतिष्ठा की जाती है साक्षात ईश्वर को अवतरित माना जाता है | और भक्ति भाव पैदा करते ध्यान मग्न होते शांति पाई जाती है | अशांत मन वाले व्यक्ति पागल कुत्ते की तरह ही भटकते व्यव्हार करते रहते हैं | एक शांति मार्ग पाने का यही वैज्ञानिक तथ्य पूर्ण मार्ग खोजा गया है | जिसका मन शांत होगा वाही परिवार शांत कर सकता है ,गली मोहल्ला ,गांव ,शहर प्रदेश ,देश विश्व शांति की भी कामना कर सकता है | …………………………………………और बात केवल मूर्तिपूजा की नहीं है। मस्ज़िद, चर्च, गुरुद्वारे या साईं मंदिर जानेवाले सभी लोगों की इच्छा पूरी होती है क्या? होती तो आज देश में कोई भूखा नहीं होता, कोई ग़रीब नहीं होता, कोई बेरोज़गार नहीं होता, कोई रेप नहीं होता। सारे अपराधी अपने-आप किसी रोग का शिकार हो जाते और मर जाते।………………………………………………………..…………..नागर जी धर्म कोई भी हो उद्देश्य उसका केवल मनुष्यों को शांति पूर्वक एक साथ रहने के मार्ग दर्शन करना ही होता है | मनुष्य का स्वाभाव ही कामना करना होता है | लेकिन गीता मैं भगवन श्रीकृष्ण ने कामनाओं को सब दुखों का कारण बताया है | कामनाएं पूर्ण होने पर सुखी किन्तु पूर्ण न हो पाने पर अति दुखी …| जो व्यक्ति निष्काम भाव से ईश्वर की पूजा अर्चना करता है वही सुखी माना गया है | क्यों की वह कामना के पूर्ण होने न होने पर एक सा भगवत सुख का आभास करता है | जो कुछ होता है सब कर्म फल वश ही सुनिश्चित होता है | ………………………पेशावर कांड जैसे आतंकवादी कृत्यों को करने वाले वही लोग होते हैं जो समाज से अशांति भाव प् चुके होते हैं | शांति उनका ध्येय नहीं हो पता है | वे फसल के साथ पैदा हो जाने वाली खरपतवार ही होते हैं | धर्म का काम भी यही होता है की खरपतवार पैदा न होने दें | जो पैदा हो चुकी है उनका अशांत मन खुद भी नष्ट होते रहना ही होता है | जो स्वयं शांत नहीं हो सकता वह कैसे शांति मार्ग देगा | धर्म यही तो करना चाहता है, शांत भाव पैदा करना | …………………………………………………………………………….मेरी मौसी का गणेश जी पर विश्वास खत्म नहीं हुआ जब सिद्धिविनायक मंदिर में जाकर प्रार्थना करने के बावजूद मौसा जी कैंसर की बीमारी से उबर नहीं पाए और चल बसे।…………..……….जो होनी होती है वह सुनिश्चित होती है या कर्म फल है ऐसा कहा गया है | किन्तु भगवत द्वार हमारी शांति का कारक तो होता ही है | …………………….मैं किसी कंपनी का सामान खरीदूं और वह अच्छा नहीं निकले या उसकी आफ्टर सेल सर्विस अच्छी न हो तो मैं अगली बार उसका सामान खरीदने से पहले दस बार सोचूंगा। लेकिन धर्म और ईश्वर के मामले में ऐसा नहीं होता। मेरा ईश्वर चाहे अच्छा करे या बुरा, मुझे उसको पूजना है और उस तरह पूजना है जैसा कि उनके एजेंट मुझे समझाते हैं। यह व्रत रखो, वह व्रत रखो, यह दान दो, वह दान दो, यहां जाकर चादर चढ़ाओ, वहां जाकर जलाभिषेक करो।एक बार, बस एक बार दिमाग़ लगाकर सोचिए, यदि इन सबसे काम बनता तो आज इतना दुख क्यों होता? मेरा बस चलता तो मैं इन मंदिरों और मस्जिदों में एक सर्वे कराता कि जो लोग यहां आते हैं, उनमें से कितने प्रतिशत का काम बनता है?…………………….कबीर ने कहा था, मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास रे। ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे-कैलास में… तो ईश्वर में यदि आपको विश्वास है तो वह तो आपके सामने है, आपके आसपास है, आपके भीतर है। लेकिन फिर भी आपको किसी भवन में जाना ज़रूरी लगे तो बेशक मंदिर जाओ, मस्जिद जाओ, गुरुद्वारा जाओ और चर्च जाओ लेकिन जहां कहीं कोई पैसा मांगे, वहां अपना हाथ रोक लो। यदि पैसा देना है तो किसी मजबूर को दे दो, किसी ग़रीब की मदद कर दो, किसी की शिक्षा में लगा दो, किसी का इलाज करवा दो। इससे तीन फ़ायदे होंगे – एक, आपको यह करके निश्चित रूप से अच्छा लगेगा, दो, यदि ऊपरवाला वास्तव में है और वह देखता है और इस बात का हिसाब रखता है कि कौन क्या अच्छा या बुरा कर रहा है तो वह भी आपके इस नेक काम से खुश होगा और तीन, इन धंधेबाजों का धंधा मंदा हो जाएगा। पीके का यही संदेश है।……………………………………………...शांति का सुगम मार्ग श्रद्धा (वेद गुरुजनों ,ईश्वर के प्रति ) से उपजती है श्रद्धा पूर्व जन्म के कर्मों से उपजती है | श्रद्धावान व्यक्ति ही भक्ति का भाव ला सकता है | भक्ति ध्यान मग्न करती है और ध्यानमग्न व्यक्ति ही उचित अनुचित का आभास करते शांति पाता है …………………………………………………………………….यही कारण है की श्रद्धा भक्ति से रहित व्यक्ति ध्यान से कुछ नहीं विचार पाता और काम क्रोध मद लोभ से ग्रसित होते व्यभिचार ,अत्याचार , आतंकवाद , करता अशांत रहता है | वह न स्वयं शांत रह सकता है न किसी को शांति से रहने देता है | धन ऐस्वर्य के विकास के लिए वह कुछ भी करने को आतुर रहता है | जो धर्म को खिलौना मान कर खेल खेलते धनार्जन कर रहे हैं वे एक दिन इसी शांति के लिए धर्म की ही शरण मैं शांति पाने आएंगे किन्तु उनके कर्म उन्हें शांति नहीं लेने देंगे | ……………………………………………………सम्पूर्ण विश्व और उसके मनुष्य भौतिक विकास के लिए लालायित होते सभी प्रकार के दुष्कर्मों को करने से भी नहीं हिचकिचाते हैं | चाहे एक साधारण मनुष्य हो या फिल्म का एक्टर ,डायरेक्टर ,राजनीतिज्ञ ,देश अपने पेशे का जो भी कर्म हो वह विकास के पीछे पागल हो चूका है | धर्म कर्म तो उसके लिए केवल विकास के कारक बन गए हैं | ……………………………………………………………………………………...ओम शांति शांति शांति पाना होगी तो दिल से श्रद्धा से धर्म शरण आना ही पड़ेगा |

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