Menu
blogid : 15051 postid : 922551

”ब्रह्मचर्य”सुलभ योग,मेड इन इंडिया (२)

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
  • 216 Posts
  • 910 Comments

गतान्क …….”यह क्या.. योग मेड इन इंडिया हो गया” ….से आगे ….. ……………………..

किसी भी अध्यात्म योग के लिए ब्रह्मचर्य आवश्यक माना गया है |….और ‘ब्रह्मचर्य’ के लिए खान पान सात्विक होना चाहिए | मीट मांस ,मदिरा तो उत्तेजक होते ही हैं | साथ ही लहसुन प्याज जैसे उत्तेजक खान पान भी मन को बहका सकते हैं | विचार बिलकुल सात्विक होने चाहिए | स्त्री के रूपलावर्ण्य की कामना केवल माँ और बहिन के रूप मैं ही करना चाहिए | स्त्री प्रसंग को भगवत योग सिद्धी के मार्ग मैं बाधक मानना ही धर्म होगा | …………………..गीता मैं भगवन कृष्ण कहते हैं ……...रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है ,यह बहुत खाने वाला अर्थात भोगों से कभी न अघाने वाला और बड़ा पापी है इसको ही तू बैरी जान | इन्द्रियां ,मन बुद्धि …ये सब इसके वास स्थान हैं | जिनके द्वारा यह मोहित करता है | इसलिए हे अर्जुन तू इन्द्रियों को वश मैं करके इस काम रूप दुर्जय शत्रु को मार डाल | ३\४१

…...किन्तु यह सब भी कैसे हो सकेगा क्या संयम रह सकेगा ….? …………….इसके लिए भी चिंतकों ने मार्ग खोजा है | ……बालपन मैं ही यज्ञोपवीत कर दिया जाये | यज्ञोपवीत के बाद संध्या बंधन आवश्यक हो जाता है | संध्या बंधन मैं स्त्री प्रसंग और काम क्रियाओं के प्रति होने वाले पापों की क्षमा याचना होती है संध्या तीन समय सुबह दोपहर और शाम को की जाती है | संध्या मैं गायत्री मंत्र का जप भी आवश्यक होता है | गायत्री मंत्र का अर्थ भी यही होता है की मुझे सत्कर्मों की और प्रेरित करें | ………….उपाय तो ऋषी मुनियों ने बहुत उत्तम बनाया है | ब्रह्मचर्य की और प्रेरित करके योग के सच्चे साधक तो बनेंगे ही ,साथ ही होने वाले बलात्कारों मैं भी कमी आएगी | स्कूल कॉलेज से ही योग शिक्षा .कर दी जाये | बालक का यज्ञोपवीत करके उसे संध्या बंधन करना आवश्यक कर दिया जाये | और अपने सहपाठी को माँ और बहिन सा व्यव्हार काने की शिक्षा दी जाये | …….जहाँ गीता अध्ध्यन आवश्यक किया जा रहा है उसे पाठ्यक्रम मैं शामिल किया जा रहा है (,क्यों की गीता का ज्ञान ,या नित्य पाठ से काम शक्ति का नाश होता है ) वहीँ यज्ञोपवीत करके संध्या बंधन को भी जन सुलभ कर दिया जाये | .अच्छे सात्विक विचार लाने के लिए गायत्री मन्त्र का एक माला जप सुबह की प्रार्थना मैं शामिल कर दिया जाये | ……एक ब्राह्मण से यह उम्मीद कर सकते हैं | वह भी लाखों मैं एक से | ……………………………………क्योंकि ब्रह्म ज्ञान (वेद ,धर्म ,परमात्मा ) रखने वाले को ही ब्राह्मण कहा गया है | ऐसे पुरुष जो ब्रह्म ज्ञान रखते हों वे ही ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं | यानि संभावित योगारूढ़ केवल ब्राह्मण ही हो सकते हैं | ……………………………..आम जन साधारण इसको कैसे अपनाएगा ….? ………”.ब्रह्मचर्य” की कल्पना विश्व के किसी अन्य देश मैं या धर्म मैं नहीं की जा सकती | वह भी आजकल के मुक्त यौन युग मैं ..| .

…………………………………….इस्लाम क्या ब्रह्मचर्य की इजाजत देगा | जहाँ इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए अनेक विवाह मान्य हैं और अनेकों संताने पैदा करना ही धर्म है | जहाँ परिवार नियोजन के संसाधन भी धर्म विरुद्ध है | …………………….क्या ब्रह्मचर्य का पालन करते पूरा जीवन विताया जा सकता है , जबकि मनुष्य सक्षम हो …?” किन्हीं कारण वश अविवाहित तो रहना पड़ सकता है | या अपने लक्ष के प्रति इतना लालायित हो जाये की उसे यौन अनुभव हो ही नहीं | भगवन की भक्ति मैं लीं या बहुत चिंता ग्रष्ट व्यक्ति भी कभी न कभी यौन अनुभव करता है | क्या पुरुष मैं बीर्य का उत्पादन ,या स्त्री मैं अण्ड निर्माण बंद किया जा सकता है | ……………शायद नागा सन्यासी अफीम भांग ,सुल्फा का सेवन करके अपने बीर्य को सुखा कर भगवत चिंतन करते हैं किन्तु क्या वे योग को यानि भगवत साक्षात्कार कर पाते हैं | ……………………………………….योगासन को योग का अंग माना गया है क्या योगासन यौन उत्तेजना ख़त्म कर देते हैं ….? योगासन से तो शरीर के अंग प्रत्यंग मैं रक्त प्रवाह सुचारू हो जाता है जिससे समस्त सैल पुनर्जीवित होते हैं | योगासन मैं तो वह शक्ति है की नपुंसक को भी जीवन दे दे | शीर्षासन तो यौन इच्छा जाग्रत करने का मुख्य आसान होता है | तो फिर कैसे ब्रह्मचर्य निभा सकते हैं | गर्मी पाकर दूध उबलता ही है ,जितना अधिक होगा उबलकर गिर जायेगा | कितना ही संयमित जीवन जिया जाये ,.अविवाहित पुरुषों मैं बीर्य स्वप्न दोष के रूप मैं एक सप्ताह ,१५दिन मैं छलक ही जाता है | ……………………..मेडिकल साइंस क्या ब्रह्मचर्य को मान्यता देता है….? मेडिकल साइंस के अनुसार ब्रह्मचर्य से शारीरिक विकृत्यं आती हैं | पथरी ,तनाव ,हृदय रोग आदि की संभावनाएं रहती हैं | प्रोस्टेड ग्लैंड की संभावनाएं भी अधिक होती हैं | स्त्रीयों मैं भी योनि सम्बन्धी विकार की संभावनाएं बढ़ जाती हैं | यहाँ तक की कैंसर की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं | ……………………………………………..किन्तु सत्य यह भी है की यदि ‘ब्रह्मचर्य’ का पालन जप ,तप ब्रत ,संयम से निभा सकते हैं तो शरीर निरोग ,कांति युक्त रहता है | एक कामी व्यक्ति ही क्रोध का शिकार ज्यादा होता है जो समस्त दुर्गुणों को उत्पन्न करके योग भ्रष्ट कर देता है यानि किसी सिद्धी से दूर कर देता है | …………..आयुर्वेद मैं बीर्य नाश आयु का नाश करता है | बल बीर्य बर्धक खानपान ही जीवन सुगम करता है | किन्तु योगारूढ़ व्यक्ति का खान पान तो सात्विक होता है कामोत्तेजक खान पान वह नहीं करता किन्तु फिर भी दीर्घायु पाता है | क्यों की काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,मोह से दूर रहते तनाव रहित रहता है | बहुत ही कठिन असंभव मार्ग है यह | और फिर इतने कठिन मार्ग से चलकर यदि योग सिद्ध भी कर लिया तो मिलेगा क्या मोक्ष्य यानि जन्म मृत्यु से मुक्ति …| …जब पुनर्जन्म ही नहीं होगा तो विकास का सुख कहाँ भोगेंगे | ……………………..सबसे अच्छा तो सुलभ योग ही होगा जिसमें यहाँ भी सुख पूर्वक रहें और मरने के बाद भी स्वर्ग सुख भोगकर पुनर्जन्म के बाद फिर राजस सुख भोगें | ऐसा सुलभ यो तो राजस योग ही कहा गया है | ………………सुलभ योग मैं ‘ब्रह्मचर्य’ का पालन करो तब तक जब तक किसी कार्य सिद्धि हेतु अनुष्ठान जारी रहे | यानि जब तक उस लक्ष्य की प्राप्ति न हो | क्यों की ‘ ब्रह्मचर्य’ ब्रत उस लक्ष्य से भटकने नहीं देता है | इसीलिये किसी के लक्ष्य से भटकाने के लिए उसे भोग विलास का लालच दिया जाता है |……………………किसी व्यक्ति द्वारा सक्षम होते यौवन काल मैं ब्रह्मचर्य ब्रत का पालन असंभव ही होता है किसी न किसी रूप मैं ”ब्रह्मचर्य” भंग हो ही जाता है | अविवाहित होते भी मानसिक रुप से या अप्राकृतिक रूप से यौन आनंद का अहसास हो ही जाता है | ………………………..अतः इन सब तथ्यों को देखते योगाभ्यास बचपन से किया जा सकता है | अपने आपको सात्विक रखते यौवन को संतुलित सेक्स भोगते गृहस्थाश्रम बिताकर , बानप्रस्थ और सन्यास मैं ही योग को संपन्न किया जाये | बानप्रस्थ यानि ६० की उम्र पार करते सब जिम्मेदारियां निभाने के बाद जब ब्रह्मचर्य का पालन स्वयमेव ही हो जाता है, योग की अन्य अंगों से यानि भक्ति ,ध्यान से अपने योग को सम्पूर्ण किया जा सकता है | यानि की यह लोक भी सुखपूर्वक विता लिया और परलोक भी सुधार लिया | …………………भगवन कृष्ण ने भी गीता मैं इसी योग की सिफारिस की है …………………………………………गृहस्थ मैं रहते हुए फल और आशक्ति को त्याग कर राजा जनक की भांति प्रवर्ति मार्ग से योगारूढ़ हो सकते हैं | ………………………………..ओम शांति शांति शांति……………………………..अध्यात्म योग का अगला अंग .सुलभ ”.प्राणायाम ”…….अगले अंक मैं …क्रमश …….

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply