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‘रावण’ कहाँ..

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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…………………………………………………………………………. रावण ने अकेले ही स्वर्ग में सभी देवताओं को परास्त कर दिया | तीनो लोकों में इस बात का पता चला और इस बात से दानव बहुत खुश हो गये उनकी वर्षो की मनोकामना पूर्ण हो गयी और दानवों ने रावण की जय जयकार की और रावण को अपना राजा बनने कि प्रार्थना की. रावण के तेज और उसके भव्य स्वरूप और नेतृत्व (डायनामिक लीडरशिप) से मय दानव ने प्रसन्न हो के अपनी अत्यंत सुंदर और मर्यादा का पालन करने वाली पुत्री मंदोदरी का विवाह रावण के साथ किया और रावण पत्नी रूप में मंदोदरी को पा के प्रसन्न हुआ. पतिव्रता नारियों में मंदोदरी का स्थान देवी अहिल्या के समकक्ष है……………. …………………………….रावण शंकर भगवान का बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।

वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपने रामायण में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥

आगे वे लिखते हैं “रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।”

रावण में शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, “हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम-भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।” शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेष है अतः अपने प्रति अ-कामा सीता को स्पर्श न करके रावण शास्त्रोचित मर्यादा का ही आचरण करता है।

वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।

बौद्धिक संपदा (विकास) का संरक्षणदाता : रावण

रावण की सभा बौद्धिक संपदा के संरक्षण की केंद्र थी। उस काल में जितने भी श्रेष्‍ठजन थे, बुद्धिजीवी और कौशलकर्ता थे, रावण ने उनको अपने आश्रय में रखा था। रावण ने सीता के सामने अपना जो परिचय दिया, वह उसके इसी वैभव का विवेचन है। अरण्‍यकाण्‍ड का 48वां सर्ग इस प्रसंग में द्रष्‍टव्‍य है।

उस काल का श्रेष्‍ठ शिल्‍पी मय, जिसने स्‍वयं को विश्‍वकर्मा भी कहा, उसके दरबार में रहा। उसकाल की श्रेष्‍ठ पुरियों में रावण की राजधानी लंका की गणना होती थी – यथेन्‍द्रस्‍यामरावती।……………………………. मय को विमान रचना का भी ज्ञान था। कुशल आयुर्वेदशास्‍त्री सुषेण उसके ही दरबार में था जो युद्धजन्‍य मूर्च्‍छा के उपचार में दक्ष था और भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली सभी ओषधियों को उनके गुणधर्म तथा उपलब्धि स्‍थान सहित जानता था। शिशु रोग निवारण के लिए उसने पुख्‍ता प्रबंध किया था। स्‍वयं इस विषय पर ग्रंथों का प्रणयन भी किया।

श्रेष्‍ठ वृक्षायुर्वेद शास्‍त्री उसके यहां थे जो समस्‍त कामनाओं को पूरी करने वाली पर्यावरण की जनक वाटिकाओं का संरक्षण करते थे – सर्वकाफलैर्वृक्षै: संकुलोद्यान भूषिता।………………………………………. इस कार्य पर स्‍वयं उसने अपने पुत्र को तैनात किया था। उसके यहां रत्‍न के रूप में श्रेष्‍ठ गुप्‍तचर, श्रेष्‍ठ परामर्शद और कुलश संगीतज्ञ भी तैनात थे। अंतपुर में सैकड़ों औरतें भी वाद्यों से स्‍नेह रखती थीं।

उसके यहां श्रेष्‍ठ सड़क प्रबंधन था और इस कार्य पर दक्ष लोग तैनात थे तथा हाथी, घोड़े, रथों के संचालन को नियमित करते थे। वह प्रथमत: भोगों, संसाधनों के संग्रह और उनके प्रबंधन पर ध्‍यान देता था। इसी कारण नरवाहन कुबेर को कैलास की शरण लेनी पड़ी थी। उसका पुष्‍पक नामक विमान रावण के अधिकार में था और इसी कारण वह वायु या आकाशमार्ग उसकी सत्‍ता में था :……………………………………. यस्‍य तत् पुष्‍पकं नाम विमानं कामगं शुभम्। वीर्यावर्जितं भद्रे येन या‍मि विहायसम्।

उसने जल प्रबंधन पर पूरा ध्‍यान दिया, वह जहां भी जाता, नदियों के पानी को बांधने के उपक्रम में लगा रहता था : नद्यश्‍च स्तिमतोदका:, भवन्ति यत्र तत्राहं तिष्‍ठामि चरामि च। …………………………………….कैलास पर्वतोत्‍थान के उसके बल के प्रदर्शन का परिचायक है, वह ‘माउंट लिफ्ट’ प्रणाली का कदाचित प्रथम उदाहरण है। भारतीय मूर्तिकला में उसका यह स्‍वरूप बहुत लोकप्रिय रहा है। ………………………………………………………………………… नीतिज्ञ ऐसा कि राम ने लक्ष्‍मण को मृत्यु शैय्या पर पड़े रावण के पास नीति.राजनीती ग्रहण के लिए भेजा था, विष्‍णुधर्मोत्‍तरपुराण में इसके संदर्भ विद्यमान हैं।”………………………………………………………….फिर ऐसे महान व्यक्ति के लिए अधर्म,बुराई का परिचायक मानकर क्यों उपमित किया जाता है | जबकि आधुनिक लोकतंत्र की सभी राजनीतिक क्रियाएं ही उसने की थी | चाणक्य नीति को राजनीती मैं सम्मानित किया जाता है किन्तु रावण नीति को नहीं ..( चाणक्य नीति रावण नीति से ही बनी है )जबकि रावण अपनी नीति से तीनों लोकों मैं सम्मानित रहा | चाणक्य नीति को अपनाकर गर्व महसूस करते हैं ,जबकि उस नीति के जनक रावण को अपमान का कारण …| रावण से पुकारा जाना अपमानित करता है किन्तु चाणक्य कहलाना अच्छाई पूर्ण धार्मिक राजनीतिज्ञ ….| ………………….यह सत्य है की राम को पूजना है तो रावण को बुरा मानना ही होगा | किन्तु जब राम के लिए ही रावण एक सम्मानित विद्वान गुणवान व्यक्ति रहा हो तो क्यों आम जन रावण को बुराई का प्रतीक मानते हैं | राम ने जब रावण को पुरोहित सा सम्मान देकर सम्मानित किया और लक्षमण को राजनीती के ज्ञान के लिए मृत्यु शैय्या पर पड़े रावण की शरण मैं भेजा | साधारण मनुष्य क्यों रावण को अपमान का कारण समझता है | ……………………………………किसी को कोई रावण नजर आता है किसी को कोई और ……किन्तु अपने अंदर छुपे रावण को कोई नहीं पहिचान पाता | दूसरे को रावण सिद्ध करके अपने को राम सिद्ध कर देना ही लोक तंत्र की चाणक्य नीति बन गयी है | बुराई के प्रतिक सिद्ध हो चुके रावण को वोट कैसे मिलेंगे …? वोट तो कलियुग मैं भी राम को ही मिलते हैं | यही पर चाणक्य नीति कारगर सिद्ध हो जाती है | ……………….किसी को रावण लुखनऊ मैं नजर आता है तो किसी को दिल्ली मैं ….| किन्तु राजनीतिज्ञों का रावण विपक्षियों मैं ही सिद्ध करना होता है | जिसने विपक्षी को रावण सिद्ध कर दिया वही सत्ता सुख के लिए वोट पाता है | सत्य युग मैं राम को रावण सिद्ध कर देना या रावण को राम सिद्ध कर देना संभव नहीं था किन्तु कलियुग मैं यह सब कुछ सिद्ध कर देने की टेक्नोलॉजी विकसित हो चुकी है | हनुमान का लंका दहन ,कुम्भकरण के खर्राटे भूकंप नहीं ला सके थे तो राहुल गाँधी कैसे भूकंप का अहसास दे पाते | .भूकंप का अहसास तो मोदी जी ने अपने धन्यवाद भाषण मैं विपक्षियों को करा ही दिया | विपक्षी मोदी जी के भूकंपीय भाषण के अहसास के अंत की कामना ईश्वर से कर ही रहे होंगे | …………………………………मोदी जी ने धन्यवाद प्रस्ताव मैं हास्य कवि काका हाथरसी की कविता सुनाकर इस तरह से रावण की खोज मार्ग सुझाया …………………………………………..अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट। मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोर्ट।………………………………………………………………………….” हर युग में इतिहास को जानने-जीने का प्रयास जरूरी है। इस समय हम थे या नहीं थे। हमारे कुत्ते भी थे या नहीं थे। औरों के कुत्ते हो सकते हैं। हम कुत्तों वाली परंपरा से पले-बढ़े नहीं हैं।” …………………………………..खैर जो भी हो रावण मिले या न मिले कुत्ता तो हर युग मैं हुआ होगा और मिलता रहेगा उसके लिए सिद्ध करने की कोई टेक्नोलॉजी नहीं चाहिए ……………………………………….वाह क्या शेर है: मल्लिकार्जुन जी कह रहे थे कि …….कांग्रेस की कृपा है कि अभी भी लोकतंत्र बचा है और आप पीएम बन पाए… वाह क्या शेर ……………………………ॐ शांति शांति शांति

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