कोई कभी सन्यासी था अब सांसद बन गया | कोई सन्यासी भी है सांसद भी | सन्यासी होना या साध्वी होना अध्यात्म ज्ञान की पराकाष्ठा ही होती है | अध्यात्म यानि आत्मा परमात्मा ,जन्म मरण का सिद्धांत | भौतिक सांसारिक दिखने वाली समस्त चीजें नश्वर मानी जाती हैं | केवल परमात्मा और उसका अंश आत्मा ही अविनासी मानी जाती हैं | जिसको न काटा जा सकता है न मारा जा सकता है | जो अजर होती है अमर होती है | इस ज्ञान को ही ज्ञान कहा जाता है | जिसको यह ज्ञान हो जाता है वही ज्ञानी कहा जाता है | जो ज्ञानी होता है वह सांसारिक वस्तुओं से वैरागी हो जाता है | और भगवा वस्त्र धारण करते सन्यासी ,साधु ,साध्वी ,बन जाता है | कुछ वैरागी तपश्या मैं लीं हो जाते हैं | कुछ अर्ध वैरागियों मैं सांसारिक माया मोह कहीं न कहीं बचा होता है वे संसार के दीं दुखियों की भलाई के लिए नारद मुनि की तरह लोक परलोक भ्रमण करते विचरते रहते हैं | कुछ चाणक्य जैसे अपने हित साधना करते हैं | उन्हें सत्ता लोभ नहीं होता | कुछ सन्यासियों के शिष्य ही उन्हें अपने उद्धार के लिए नहीं छोड़ते हैं | जैसे देवताओं के गुरु बृहस्पति या राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य | …………………………..भारत मैं लोक तंत्र है | लोक तंत्र मैं किसी भी व्यक्ति को लोकतान्त्रिक तरीके से चुन कर सांसद मैं जाने का अधिकार होता है | इसलिए लोक भ्रमण करने वाले सन्यासी ,साध्वी भी पहुँच गए | भक्ति रस मैं डूबे ऐसे ज्ञानी सन्यासियों ,साध्वियों से तो अध्यात्म ज्ञान का भंडार ही टपकेगा | संसद से बाहर जिनके प्रसाद को चखने वाले कुछ ही होते हैं | किन्तु संसद मैं सर्वव्यापी भारतीय मिल जाते हैं | इसीलिये यह आध्यात्मिक ज्ञान समय समय पर लोक कल्याण करता रहता है और करता रहेगा | ……………………………...समस्या यहाँ तक नहीं | समस्या तो तब पैदा होती है जब भौतिकता की चकाचोंध से प्रभावित लोगों के चुने सांसद उनकी अध्यात्मित विचारधारा से मेल नहीं खा पाते हैं | उनके हिसाब से जो दीख रहा है वही सत्य है | उसी सत्य को हमने और भी सुन्दर बनाना है | सुन्दर बनाने के लिए विकास करना होगा | विकास के साधनों के लिए तिगणमें करनी होंगी | ………………………………………………………………………आध्यात्मिक विचारधारा से संसार के सब जीव परमात्मा की संतान है प्रकृति उनकी माँ होती है | वहां कोई भी हरामजादा नहीं कहा जाता | परमात्मा को जिस भी रूप मैं पुकारो उसी का जादा होता है | राम भक्त उसे रामजादा कह सकते हैं | …………………………………………………………………लेकिन भौतिक संसारियों मैं हराम जादा दुनियां की सबसे घृणित गाली मानी जाती है | ……………सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंतःकरण के अनुसार होती है जो जैसी श्रद्धा वाला है वह स्वयं भी वही होता है | भगवन कृष्ण ने गीता मैं यही कहा है | ……………………………………………….ज्ञान से आध्यात्मिक लोग सात्विक विचारधारा के होते हैं | जो देवताओं को पूजते हैं ,जिनका भोजन आयु ,बुद्धि ,बल ,आरोग्य ,सुख ,और प्रीती को बढ़ाने वाला ,स्वाभाव से मन को प्रिय होता है | कर्म फल की चिंता किये बिना कर्म करते हैं | शरीर से, मन से और वाणी से सात्विक लोक कल्याणकारी तप करते हैं | दान देना ही कर्तव्य मानते हैं | जो देश काल ,और पात्र के प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले को दिया जाता है | ……………………………………………………………………….वहीँ दूसरीओर भौतिकता वादी राजसी स्वाभाव के होते हैं जो यक्ष ,राक्षशों को पूजते हैं | जिन्हें कड़वे ,खट्टे ,लवणयुक्त ,बहुत गरम ,तीखे ,,रूखे ,दाहकारक ,और दुःख ,चिंता ,और रोगों को उत्पन्न करने वाले भोजन प्रिय होते हैं | उनके सब कर्म दम्भाचरण के लिए अथवा फल को दृष्टि मैं रख कर होते हैं | उनके कर्म तप सत्कार ,मान ,और पूजा के लिए तथा अन्य किसी स्वार्थ के लिए पाखंड से किया जाता है जो अनिश्चित फल वाला क्षणिक ही होता है | इनका दान क्लेश पूर्वक तथा प्रत्युपकार के प्रयोजन से ,फल को दृष्टि मैं रखकर फिर दिया जाता है | ………………………………………………………………...आध्यात्मिक और भौतिक विचारधारा मैं ऐसी ही विभिन्नता टकराव का कारण बन रही है | यही कारण समझते हुए साध्वी जी ने संसारियों के बीच अपनी क्षमा प्रार्थना कर ली | कभी सन्यासी स्वरुप मैं रह चुके प्रधानमंत्री जी भी अध्यात्मियों ,भौतिकतावादियों के बीच की खाई पाटने मैं लगे रहे | ……………………………..क्षमा बढ़न को चाहिए छोटन को उत्पात ………………………..गांव की पिछड़ी जाती की पिछड़ी का पहला उत्पात है ,वे संसारियों की भाषा नहीं पहिचान पाई |…………………………………………………………………….किन्तु भौतिकता वादी इस विचारधारा पर सहमत नहीं हुए | उनके हिसाब से तो गलती की सजा मिलनी ही चाहिए | ....अरविन्द्र केजरीवाल तो अपनी गलती के प्रायश्चित मैं जेल मैं रह आए | उन्होंने क्षमा प्रार्थना भी नहीं की | अब जब गलती स्वीकार कर चुके हो तो क्यों नहीं मर्यादा स्थापित करते हो | ………………………………………………………………………………………………………..मर्यादा क्या हो सकती है एक लोकतान्त्रिक धर्म निरपेक्ष देश की संसद मैं सब सांसदों का एक ही ड्रेसः कोड होना चाहिए | कुछ माननीय सफ़ेद वस्त्रों मैं कुछ भगवा वस्त्रों मैं | इससे दो तरह की मानसिकता यानि आध्यात्मिक और भौतिक जगत की उजागर होती है | भगवा वस्त्रों मैं आध्यात्मिक विचार कभी न कभी टकराव करते रहेंगे | एक सी विचारधारा यानि लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्षता ही संसद मैं उजागर होनी चाहिए | इसलिए साध्वी जी आम संसदीय वस्त्रों मैं ही अपने विचार प्रश्तुत करें तो भारतीय संसद धन्य हो जाएगी | …………………….जब हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री जी एक तपश्वी सन्यासी से प्रधानमंत्री बनते विचार साम्यता लाने के लिए , भारत के भौतिक विकास के साथ आध्यात्मिक विकास के लिए अपनी लोक सांसारिक वेश भूषा को अपना सकते हैं तो क्यों नहीं नारद मुनि के लोक कल्याण अभियान को सफल बनाने के लिए सन्यासी ,साध्वी सांसद अपने को संसदीय वेश भूषा मैं दिखा सकते हैं | ……………………………………………………...राम राज्य भी होगा जो लोकतान्त्रिक ,धर्म निरपेक्ष स्वरुप को दर्शायेगा ……………………………………………………………………. ओम शांति शांति शांति
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