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हिसार(सतलोक आश्रम ) मैं स्वधर्म तांडव

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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स्वधर्म यानि अपने अपने कर्तव्य कर्मों को करना ही स्वधर्म पालन होता है | एक सर्व मान्य संत दीन दुखियों को शांति प्रदान करने वाला भगवन से कम नहीं होता | भगवन तो ढूंढो तो भी नहीं मिलते किन्तु संत साक्षात शांति प्रदान करते हैं | भगवन के स्वधर्म को अग्रसित करते जन सेवा करते हैं संत | भगवन तो शेषनाग सैया पर संतों के होते निश्चिन्त होकर सयन करते हैं | …….भगवन के साक्षात्कार करने वाले संत ही होते हैं | कबीरदास जी तो संत को भगवन से भी महान मानते हैं …….उन्होंने कहा भी है ……...गुरु गोविन्द दोनों खड़े ,काके लागों पाऊँ | बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियो मिलाय || …..………………………………………………………ऐसे स्वधर्म पालन करने वाले यदि भक्तों को भगवत दर्शन करके लोकहित करते कर्तव्य कर्म पालन करते गो लोक भी चले जाते हैं तो वे धन्य ही तो होंगे | …………………………………………………………………………..…ऐसे संतों के लिए कोई बंधन बांध नहीं सकता है | सामाजिक बंधन ,काम क्रोध मद लोभ ,मोह उनको प्रभावित नहीं कर पाते तो कानून के बंधन उनका क्या बिगाड़ लेंगे | उनका शरीर तो नाम का ही होता है | आत्मा तीनों लोकों मैं विचरण करती रहती है | मृत्यु भय उनको होता ही नहीं | क्यों की वे जानते हैं आत्मा मरती नहीं ,न उसको काटा जा सकता ,वह मान अपमान से भी परे होती है | कानून जिस शरीर को गिरफ्तार करना चाह रहा है ,वह तो नश्वर है | गिरफ्तार कर सकते हो तो आत्मा को करो | आत्मा आत्मा सभी मिलकर परमात्मा ही तो बनेंगी | ……………………..भक्ति धर्म भी अनोखा धर्म होता है ,जब अपने आराध्य के प्रति भक्ति जाग्रत हो जाती है तो अन्य सब वस्तुएं ,या जीव कोई महत्त्व नहीं रख पाते | भक्ति की धरा ही अनोखी होती है | अपने आराध्य के प्रति मरने मारने की भक्ति भाव आना स्वाभाविक स्वधर्मी कर्तव्य ही तो है | आराध्य पर आने वाली सभी विपत्ती उनकी अपनी विपत्ती लगती हैं उनका निवारण करना उनका स्वधर्म होता है | यदि भक्त अपने स्वधर्म पालन के लिए हथियार उठाते अपनी जान भी न्योछावर कर देते हैं तो यह पाप नहीं होता | यही तो भगवन श्रीकृष्ण ने गीता मैं अर्जुन से कहा था | …………………………………………………………………..दिव्य दृष्टी प्राप्त संजय यदि अपनी दिव्य दृष्टी से धृतराष्ट्र को आँखों देखा महाभारत नहीं सुनाएंगे तो अधर्मी बन जायेंगे | उनका स्वधर्म अपनी दिव्य दृष्टी से देखा सुनना ,दिखाना ही तो होगा | किन्तु यह कलियुग है ,लोकतंत्र है | धृतराष्ट्र को वही सुनाओ जो दिव्य दृष्टी प्रदायक निश्चित करता है नहीं तो मार खानी ही पड़ेगी ,कैमरे तो तोड़े ही जायेंगे | हजारों लाखों भक्तों का आराध्य है तो क्या हुआ कानून से ऊपर तो नहीं हो सकता | कानून की रक्षा के लिए लाखों करोड़ों खर्च करते कुछ बलिदान भी करने पड़ जाएँ तो कानून की मर्यादा ही होगी | कानून का स्वधर्म यही होता है | ……………..कार्यपालिका का स्वधर्म भी यही है जैसा कानूनन कहा जाये करना वही है | हुक्म का पालन करना ,कानून को सही मार्ग पर चलाना ही स्वधर्म है | एक संत जो की हजारों भक्तों से घिरा हो | घेर कर गिरफ्तार करने जाना ,हजारों की फ़ोर्स ,जे सी बी आयुधों से युक्त होकर | भक्त मरें मरने दो , जन धन की हानि हो तो कोई बात नहीं कानून व्यवश्था विगड़े विगड़ने दो किन्तु स्वधर्म पालन मैं कोई बाधा, अधर्मी सिद्ध करते गोलोक के रास्ते बंद कर ही देगा | ………………………………………………………………………………………...संत आशाराम के भक्त तड़पते रहे ,भक्ति तड़पती रही कुछ नहीं कर पाये आराध्य को तारने की एक आश भारतीय जनता पार्टी से थी | किन्तु वह तो स्वार्गिक परम्पराओं मैं मग्न हो चुकी है | संत रामपाल अब किससे आश लगाएंगे | संतों को क्या फर्क पड़ता है वे तो कहीं भी भगवत चिंतन मैं लीं हो जायेंगे | उनके लिए तीनों लोक एक समान ही तो होते हैं | फर्क तो भक्तों को पड़ेगा उनकी दुश्चिंताओं को ,दुखों को अब कौन निवारण करेगा | मृत्यु लोक मैं अब नारद मुनी भी नहीं आते | क्या होगा इस हिंदुस्तान मैं हिन्दुओं का कैसे लोक परलोक सुधरेगा | संतों का होने वाला मान मर्दन धर्म को किस मार्ग पर ले जायेगा | भक्त जिस संत मैं आश लगते हैं वह संजय दिव्य दृष्टी का शिकार होकर अंतर्ध्यान हो जाता है | ………………….कहा यही जाता है की भक्तों का लोक परलोक सुधरने वाले संत कलियुग के आगमन पर हिमालय की कंदराओं मैं तपश्या मैं लीं हो गए | किन्तु कुछ दयालु लोक हितकारी संत अपनी दया दृष्टी भक्तों पर देकर लोक हित करने से अपने को नहीं रोक सके ,और दुर्गत हुए,उनकी तपश्या भंग कर दी गयी | क्या संतों से भरपूर हिंदुस्तान के संत इन संतों की कलियुगी गति से प्रेरणा लेकर हिमालय की कंदराओं मैं छूप जायेंगे ? | या ऐसे ही संतों की दुर्गती कलियुग द्वारा होती रहेगी | क्या भारतीय जनता पार्टी संत समागम से राम मय होते, संतों का राम बनते उद्धार करेगी ,या राक्षशों से प्रताड़ित होने देगी …? संतों की एक मात्र आश…हैं …| संत होंगे तभी भक्त होंगे …भक्त होंगे तभी हिन्दू धर्म होगा ..हिन्दू धर्म होगा तभी भारतीय जनता पार्टी फैलेगी फूलेगी | संतों के प्रति फैलाई जा रही साजिस तो नहीं हैं हिन्दू विरोधी भारतीय जनता पार्टी विरोधी पार्टियों की | आशाराम चीखते रहे यह मेरे खिलाफ साजिस है | क्या अब संत रामपाल चीखेंगे की यह सब साजिस है …? अगला कौन संत होगा साजिस का शिकार सावधान हो जाओ संतो …..| और चुप चाप कंदराओं मैं तपश्या मैं लीं हो जाओ | …………………………………………………....चिंता मत करो संतो भगवन अवश्य अवतरित होंगे ….क्यों की उन्होंने स्वयं कहा है …..………………………………………यदा यदा ही धर्मष्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युथानम् धर्मष्य तदात्मानं सृजाम्यहम || ………………………………………………...जब जब धर्म की हानि और अधर्म की बृद्धि होती है ,तब तब मैं अपने रूप को रचता हूँ | अर्थात साकार रूप मैं लोगों के सन्मुख प्रकट होता हूँ |………………………………………………………………...ओम     शांति शांति शांति

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