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दक्षिण दिल्ली। डिफेंस कालोनी फ्लाई ओवर। शाम आठ बजे। दिन करवां चौथ। मर्सिडिज़, बीएम डब्ल्यू और पजेरो। अचानक किनारे इतनी कारों को देखकर लगा कि दुर्घटना हुई होगी।ध्यान से देखा तो नई नई साड़ियों में चमकती खनकती प्राण प्यारियां चांद निहार रही थीं। प्राण प्यारे कार में बैठे थे। कार का एसी ऑन था। कुछ प्राण प्यारी कार में बैठी थीं। एक पत्नी अपने पति के लिए दिन भर भूखी रही और पति क्रूड ऑयल के महंगे होने के ज़माने में एसी नहीं चलाएगा। हाय राम। कैसे कैसे पति हो गए। वो भी जब सेसेंक्स बीस हज़ारी हो गया हो।
लेकिन फ्लाई ओवर पर प्राण प्यारियां? जब बीएमडब्ल्यू कार है तो चांद देखने के लिए छत नहीं क्या? दिमाग खराब हो गया सोचते सोचते। आइडिया समझ में आ गया। डिफेंस कालोनी में हर अमीर ने दूसरे अमीर से ऊंची छत डाल ली है। नतीजा आसमान के करीब पहुंचने के बाद भी आसमान नहीं दिखता। जब आसमान नहीं दिखेगा तो चांद कहां से दिखेगा। ये सभी नव और पुरा दुल्हनें फ्लाई ओवर पर आईं थीं ताकि उसकी ऊंचाई से चांद दिख जाए। और वहीं ट्रैफिक के बीचो बीच पांव छूकर आरती उतारकर करवां चौथ संपन्न कर लिया जाए। जिनके पास छत है उन्हें चांद दिखता नहीं। जिनके पास छत नहीं उन्हें चांद से मतलब नहीं।
दिल दुखता है। वो छत ही क्या जहां से आसमान और चांद न दिखे। प्राण प्यारी को व्रत तोड़ने के लिए फ्लाई ओवर तो मॉल की छत पर जाना पड़े। अब अगले साल से करवां चौथ का फेस्टिवल डिफेंस कालोनी फ्लाई ओवर पर होगा। वहीं मेले लगेंगे। वहीं आरती होगी। वहीं चांद दिखेगा। हमें लगता था कि छत पर जाओ और चांद देखे। वाह। अब तो कार में बैठो और चांद देखने चले। एक गाना याद आ गया। आओ तुम्हें मैं प्यार सिखाऊं..सिखला दो न। उसी की तर्ज पर ये गाना है…
आओ तुम्हें मैं चांद दिखाऊं…दिखला दो न।
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