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महादेवी वर्मा हिंदी के छायावादी कवियों की श्रृंखला में सबसे प्रतिष्ठित नामों में हैं. हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार महत्वपूर्ण कवियों में महादेवी वर्मा भी आती हैं. एक उच्चकोटि की कवियित्री के साथ ही महादेवी वर्मा एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं. महिलाओं के उत्थान के लिए उन्होंने बहुत से काम किए. उस वक्त इलाहाबाद प्रयाग महिला विद्यापीठ में वे पहली महिला प्रिंसिपल नियुक्त हुईं थी. इसके अलावे उन्होंने महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया.
महादेवी वर्मा की रचनाओं का संसार बड़ा ही व्यापक है. कविताएं उनकी लेखनी की प्रमुख विधा थी लेकिन इसके अलावे उन्होंने कई कहानियां, बाल साहित्य भी लिखे. उन्हें चित्रकला का भी शौक था और उन्होंने अपनी कई रचनाओं के लिए चित्र बनाए. 50 से अधिक वर्षों तक फैला उनका लेखनी संसार आज भी हिंदी साहित्य की पूंजी मानी जाती है. अपने अंतिम समय तक वह कुछ न कुछ रचती ही रहीं.
महादेवी वर्मा का साहित्य की दुनिया में पदार्पण की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. इसमें उनकी प्रिय सहेली और हिंदी साहित्य की एक और महत्वपूर्ण कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की भूमिका अति महत्वपूर्ण थी. इलाहाबाद में स्कूल के दिनों से ही महादेवी वर्मा लिखती थीं. लेकिन उनकी इस प्रतिभा का किसी को भान न था. उनकी सहपाठी और रूम मेट सुभद्रा कुमारी चौहान उन दिनों स्कूल में अपनी लेखनी के लिए प्रसिद्ध थीं. उन्होंने ही महादेवी वर्मा को चोरी-छुपे लिखते देख लिया था और सबको इसके बारे में बताया. सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी वर्मा को हमेशा उनकी लेखनी के लिए प्रशंसित करती थीं. कक्षा के बीच मिले समय में वे दोनों साथ बैठकर कविताएं लिखा करती थीं. इस तरह महादेवी वर्मा फिर सिद्धहस्त हो खुले रूप में लिखने लगीं.
महादेवी वर्मा की कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं:
कविता संग्रह
महादेवी वर्मा के आठ कविता संग्रह हैं- नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (अनूदित 1959), प्रथम आयाम (1974), और अग्निरेखा (1990).
संकलन
इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे काव्य संकलन भी प्रकाशित हैं, जिनमें उपर्युक्त रचनाओं में से चुने हुए गीत संकलित किये गये हैं, जैसे आत्मिका, निरंतरा, परिक्रमा, सन्धिनी(1965), यामा(1936), गीतपर्व, दीपगीत, स्मारिका, हिमालय(1963) और आधुनिक कवि महादेवी आदि.
रेखाचित्र
अतीत के चलचित्र (1941) और स्मृति की रेखाएं (1943)
संस्मरण
पथ के साथी (1956), मेरा परिवार (1972), स्मृतिचित्र (1973) और संस्मरण (1983)
निबंध संग्रह
श्रृंखला की कड़ियाँ (1942), विवेचनात्मक गद्य (1942), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (1962), संकल्पिता(1969)
ललित निबंधों का संग्रह
क्षणदा (1956)ललित निबंधों का संग्रह है. रचनात्मक गद्य के अतिरिक्त महादेवी का विवेचनात्मक गद्य तथा दीपशिखा, यामा और आधुनिक कवि- महादेवी की भूमिकाएँ उत्कृष्ट गद्य-लेखन का नमूना समझी जाती हैं. उनकी कलम से बाल साहित्य की रचना भी हुई है.
महादेवी की प्रमुख गद्य रचनाएं
महादेवी वर्मा ने लिखा है- ‘कला के पारस का स्पर्श पा लेने वाले का कलाकार के अतिरिक्त कोई नाम नहीं, साधक के अतिरिक्त कोई वर्ग नहीं, सत्य के अतिरिक्त कोई पूँजी नहीं, भाव-सौंदर्य के अतिरिक्त कोई व्यापार नहीं और कल्याण के अतिरिक्त कोई लाभ नहीं।’ लेखन-अवधि में उन्होंने एकनिष्ठ होकर अबाध-गति से भावमय सृजन और कर्ममय जीवन की साधना में लिखी हुई बात को सार्थक बनाया. एक महादेवी ही हैं जिन्होंने गद्य में भी कविता के मर्म की अनुभूति कराई और ‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति’ उक्ति को चरितार्थ किया है. विलक्षण बात तो यह है कि न तो उन्होंने उपन्यास लिखा, न कहानी, न ही नाटक फिर भी श्रेष्ठ गद्यकार हैं. उनके ग्रंथ लेखन में एक ओर रेखाचित्र, संस्मरण या फिर यात्रावृत्त हैं तो दूसरी ओर संपादकीय, भूमिकाएँ, निबंध और अभिभाषण, पर सबमें जैसे संपूर्ण जीवन का वैविध्य समाया है. बिना कल्पनाश्रित काव्य रूपों का सहारा लिए कोई रचनाकार गद्य में इतना कुछ अर्जित कर सकता है, यह महादेवी को पढ़कर ही जाना जा सकता है. हिन्दी साहित्य में चंद्रकान्ता मणि के समान द्रवणशील करुण रस की देवी महादेवी वर्मा न केवल विशिष्ट कलाकार, कवयित्री और गद्य लेखिका हैं अपितु इससे आगे एक श्रेष्ठ निबंधकार भी हैं. उनका गद्य कविता की भांति सौंदर्य के भुलावे में डालकर हमें जीवन से दूर नहीं ले जाता, वह तो हमारी शिराओं में चेतना भरकर हमें यथार्थ जीवन में झांकने की प्रेरणा प्रदान करता है.
स्मृति की रेखाएं और अतीत के चलचित्र
स्मृति की रेखाएं और अतीत के चलचित्र में निरंतर जिज्ञासा शील महादेवी ने स्मृति के आधार पर अमिट रेखाओं द्वारा अत्यंत सह्रदयतापूर्वक जीवन के विविध रूपों को चित्रित कर उन पात्रों को अमर कर दिया है। इनमें गांव, गंवई के निर्धन, विपन्न लोग, बालविधवाओं, विमाताओं, पुनर्विवाहिताओं तथा कथित भ्रष्टाओं और वृद्ध-विवाह के कारण प्रताड़िताओं के अत्यंत सशक्त एवं करुण चित्र है. उनके इन रेखाचित्रों में गंभीर लोक का भी पर्याप्त समावेश हुआ है.
पथ के साथी और शृंखला की कड़ियां
‘पथ के साथी’ में महादेवी ने अपने समकालीन रचनाकारों का चित्रण किया है. ‘श्रृंखला की कड़ियां’ 1942 ई. में सामाजिक समस्याओं, विशेष कर अभिशप्त नारी जीवन के जलते प्रश्नों के संबंधों में लिखे उनके विचारात्मक निबंध संकलित हैं.
अन्य
रचनात्मक गद्य के अतिरिक्त ‘महादेवी का विवेचनात्मक गद्य’ तथा ‘दीपशिखा’, ‘वामा’ और ‘आधुनिक कवि- महादेवी’ की भूमिकाओं में उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा को आसानी से महसूस किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त गिल्लू कहानी संग्रह तथा दो कविता संग्रह- ठाकुरजी भोले हैं और आज खरीदेंगे हम ज्वाला उनके बाल-लेखन का सुंदर उदाहरण हैं.
Great Indian Poetess Mahadevi Verma
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