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अंतर्जाल पर हिन्दी दिवस को लेकर जमकर खोज हो रही है. इस लेखक के ब्लॉगों जिन पाठों में हिन्दी दिवस के विषय पर लिखा गया है उन पर पाठकों की संख्या पहले से इन दिनों छह गुना अधिक है. इसका मतलब यह है कि पूरे वर्ष में कम से कम एक दिन तो ऐसा है जब बौद्धिक प्रवृत्ति के लोगों को हिन्दी की याद आती है. कौन लोग हैं जो सर्च इंजिनों में हिन्दी दिवस से से जुड़े शब्द डालकर इससे संबंधित पाठ खोज रहे होंगे?
एक बात तय है कि अभी इंटरनेट पर हिन्दी जनसामान्य में लोकप्रिय नहीं है. नयी पीढ़ी के लोग तथा कंप्यूटर के जानकार बौद्धिक व्यक्ति ही यह खोज कर रहे होंगें. नयी पीढ़ी में वह लोग हैं जिनको शायद हिन्दी दिवस पर अपनी शैक्षणिक संस्थानों के अलावा हिन्दी में अनुदान प्राप्त संघों के यहां होने वाली निबंध,कहानी, कविता अथवा वाद विवाद प्रतियोगिताओं मे भाग लेना हो. इसलिये यहां से कुछ प्रेरणा प्राप्त करना चाहते हो. इसके अलावा कुछ बौद्धिक लोगों को समाचार पत्रपत्रिकाओं के लिये लेख लिखने अथवा राजकीय धन से आयोजित परिचर्चा या भाषण देने के लिये कोई नयी सामग्री की तलाश हो. वह भी शायद इंटरनेट पर कुछ खोज रहे हों. इसी कारण इस लेखक को अपने पाठ पढ़ने का दोबारा अवसर मिल रहा है.
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उन लेखों से कोई प्रेरणादायी सामग्री मिल सकती है यह भ्रम लेखक नहीं पालता. दरअसल हिन्दी के महत्व पर लिखे गये एक लेख पर अनेक टिप्पणीकार यह लिख चुके हैं कि आपने उसमें असली बात नहीं लिखी. विस्तार से हिन्दी का महत्व बतायें. इस बात पर हैरानी होती है कि हिन्दी का महत्व अभी भी समझाना बाकी है. इस लेखक का विश्वास है कि हिन्दी दिवस पर लिखे गये पाठों वाले ब्लॉग इस समय किसी भी हिन्दी वेबसाइट या ब्लॉग से अधिक पाठक जुटा रहे हैं. शिनी स्टेटस में साहित्य वर्ग में एक ब्लॉग अंग्रेजी ब्लॉगों को पार करता हुआ तीन नंबर के स्थान में पहुंच गया है. कल इसके एक नंबर पर पहुँचने की संभावना है. इस वर्ग के पंद्रह ब्लॉग में तीन इस लेखक के हैं. मनोरंजन के अन्य वर्ग में एक ब्लॉग पंद्रहवें नंबर पर है. 14 सितंबर को हिन्दी दिवस है और 13 सितंबर वह दिन है जब इस लेखक के अनेक ब्लॉग अपनी पिछली संख्या का कीर्तिमान पार करेंगे. यह संख्या एक दिन में ढाई से तीन हजार होगी.
हिन्दी का महत्व क्या बतायें? यह रोटी देने वाली भाषा नहीं है. अगर प्रबंध कौशल में दक्ष नहीं है तो इसमें लिखकर कहीं सम्मान वगैरह की आशा करना भी व्यर्थ है. फिर सवाल पूछा जायेगा कि इसका महत्व क्या है?
इसका हम संक्षिप्त जवाब भी देते हैं. अनेक भाषाओ का ज्ञान रखना अच्छी बात है पर जिस भाषा में सोचते हैं अभिव्यक्ति के लिये वही भाषा श्रेयस्कर है. फेसबुक पर नयी पीढ़ी के लोगों को देखकर तरस आता है. वह हिन्दी में सोचते हैं-यह प्रमाण रोमनलिपि में उनकी हिन्दी देखकर लगता है- मगर प्रस्तुति के समय वह हकला जाते हैं. हिन्दी लिखने के ढेर सारे टूल उनके पास है वह इसका उपयोग नहीं जानते. जानते हैं तो कट पेस्ट में समय खराब करना उनको अच्छा नहीं लगता. उनका लिखा हमें हकलाते हुए पढ़ना पढ़ता है. तय बात है कि वह लिखते हुए समय बचाते हैं पर जब दूसरे का लिखा पढ़ने का समय आता है तो उनका दिमाग भी लिखे गये विषय को हकलाते हुए पकड़ता है. कुछ लोग अंग्रेजी में लिखते हैं पर पढ़ते समय साफ लगता है कि उनके मन का विचार हिन्दी में है. हिन्दी भाषा अध्यात्म की भाषा है यह इस लेखक की मान्यता है. जब हिन्दी में सोचकर अंग्रेजी भाषा या रोमन लिपि में लिखते हैं तो हकलाहट का आभास होता है. भाषा का संबंध भूमि, भावना और भात यानि रोटी से है. भारत में रोमन लिपि और अंग्रेजी भाषा की गेयता कभी पूरी तरह से निर्मित नहीं हो सकती. इस सच्चाई को मानकर जो हिन्दी को अपने बोलचाल के साथ ही अपने जीवन में अध्यात्मिक रूप से उपयोग करेगा उसके व्यक्त्तिव में दृढ़ता, वाणी में शुद्धता और विचारों में पवित्रता का वास होगा. यह तीनों चीजें अध्यात्मिक तथा भौतिक विकास दोनों में सहायक होती हैं. अध्यात्मिक विकास की लोग सोचते नहीं है पर भौतिक विकास के पीछे सभी हैं. कुछ लोग भौतिक संपन्नता प्राप्त भी करते हैं तो उसका सुख नहीं ले पाते. सीधी मतलब यह है कि अध्यात्मिक शक्तियां ही भौतिक सुख दिलाने में सहायक हैं और इसी कारण हर भारतवासी को हिन्दी के साथ जुड़े रहना होगा.
साभार: दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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