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मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए जिये।
मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे।I
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर अपनी परदुःखकातरता के लिए विख्यात थे। वे सदैव कोई-न-कोई सेवा का मौका खोज ही लेते थे.
एक बार वे रास्ते से गुजर रहे थे. सामने एक ब्राह्मण आँसू बहाता हुआ मिला. विद्यासागर ने उस ब्राह्मण को थाम लिया और पूछाः “क्या बात है जो आपकी आँखों से आँसू गिर रहे हैं ?”
“अरे भाई ! आप क्या मेरा दुःख करेंगे !”
विद्यासागर ने प्रार्थना करते हुए कहाः “फिर भी भैया! बताओ न, मेरी जिज्ञासा है.”
ब्राह्मण बोलाः “मैंने अपनी लड़की की शादी में देखा-देखी ज्यादा धन खर्च कर दिया क्योंकि जाति में ऐसा रिवाज है. खर्च के लिए कर्जा लिया. जिस महाजन से कर्जा लिया था, उसने मुझ पर दावा कर दिया है. मैं अदालत में जाकर खड़ा रहूँगा तो कैसा लगेगा. कितनी शर्मनाक घटना होगी वह! हमारी सात पीढ़ियों में, पूरे खानदान में कभी कोई कोर्ट कचहरी नहीं गया. अब मैं ही ऐसा बेटा पैदा हुआ हूँ कि मेरे बाप, दादा, नाना सबकी नाक कट जायेगी.”
ऐसा कहकर वह सिसक-सिसककर रोने लगा.
विद्यासागर ने पूछाः “अच्छा, महाजन का नाम क्या है ?”
ब्राह्मणः “नाम जानकर आप क्या करेंगे? अपना दुर्भाग्य मैं स्वयं भोग लूँगा. आप अपने काम में लगें”
विद्यासागर ऐसा नहीं बोले कि ‘मैं कर्जा चुका दूँगा. मैं सब ठीक कर दूँगा. मैं विद्यासागर हूँ….’ परोपकारी पुरुष सेवा का अभिमान नहीं करते, न ही प्रशंसा चाहते हैं.
विद्यासागर ने कहाः “कृपा करके बताओ तो सही.”
ब्राह्मण से बहुत विनती करके उन्होंने महाजन का नाम-पता तथा कोर्ट की तारीख जान ली. जिस दिन ब्राह्मण को कोर्ट जाना था, उससे पहले ही घर बैठे उसे पता लग गया कि उसका केस खारिज हो गया है. क्यों ? क्योंकि महाजन को रूपये मिल गये थे. किसने दिये ? कोई पता नहीं.
आखिर उसे पता लग ही गया कि परदुःखकातर विद्यासागर ही उस दिन उसे सड़क पर मिले थे और उन्होंने ही पैसे भरकर उसे ऋण से मुक्त कराया है.
आजकल के धनाढ्य और देश-विदेश में धन की थप्पियाँ लगाने वाले लोग विद्यासागर की नाईं परोपकार का, परदुःखकातरता का महत्त्व समझें तो उनका और गरीबों का कितना मंगल होगा!
अपने दुःख में रोने वाले! मुस्कराना सीख ले।
औरों के दुःख-दर्द में आँसू बहाना सीख ले।।
जो खिलाने में मजा है आप खाने में नहीं।
जिंदगी में तू किसी के काम आना सीख ले।।
Ishwar Chandra Vidyasagar in Hindi
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