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जिंदगी की जंग हार गए सरबजीत

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लाहौर के जिन्ना अस्पताल में भारतीय कैदी सरबजीत सिंह की मौत हो गई है। 6 दिनों तक जिंदगी और मौत से जंग के बाद सरबजीत ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। बीती रात करीब एक बजे सरबजीत की मौत हुई। पोस्टमॉर्टम करने के बाद शव को भारतीय उच्चायोग को सौंप दिया जाएगा।6 दिनों तक मौत से जंग लड़ने के बाद सरबजीत सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया। लाहौर के जिन्ना अस्पताल में भारतीय कैदी सरबजीत सिंह ने भारतीय वक्त के मुताबिक रात एक बजे आखिरी सांस ली। सरबजीत सिंह 29 अप्रैल से अस्पताल में भर्ती थे। जिन्ना अस्पताल के डॉक्टरों की विशेष टीम उनका इलाज कर रही थी। अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक सरबजीत का दिल तो धड़क रहा था लेकिन दिमाग काम नहीं कर रहा था। उनका शरीर भी कोई हरकत नहीं कर रहा था। वह बिना वेंटिलेटर के वो सांस भी नहीं ले पा रहे थे। वो नॉन रिवर्सिबल कोमा में पहुंच चुके थे जहां से उनका होश में आना संभव नहीं था। डीप कोमा की वजह से उनका ब्रेन डेड हो गया और यही उनकी मौत की वजह बना।


सरबजीत सिंह की मौत की पुष्टि सरबजीत सिंह के इलाज के लिए बनाए गए जिन्ना अस्पताल के मेडिकल बोर्ड के प्रमुख महमूद शौकत ने की। उन्होंने कहा कि मुझे ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने फोन किया और बताया कि रात करीब एक बजे सरबजीत की मौत हो गई है 26 अप्रैल की शाम करीब 5 बजे लाहौर की कोट लखपत जेल में बंद सरबजीत सिंह पर जेल के ही दो कैदियों ने हमला किया था। कैदियों ने सरबजीत पर ईंटों और ब्लेड से हमला किया और उसकी जमकर पिटाई की। इस हमले में सरबजीत के सिर में गंभीर चोटें आईं थीं। सरबजीत पर ये हमला उस वक्त हुआ जब कैदियों को एक घंटे के ब्रेक के लिए जेल की कोठरी से बाहर लाया गया था।


सरबजीत की जान बच सकती थी, लेकिन हमले के दो घंटे बाद उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। इसमें काफी वक्त बर्बाद हो गया। और सरबजीत कोमा में चले गए। सरबजीत के परिवार का मानना है कि उनका कत्ल हुआ है। भारत में संसद पर आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी की सजा के बाद से ही कोट लखपत जेल में सरबजीत की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। लेकिन इसके बावजूद सरबजीत पर जानलेवा हमला हो गया। अस्पताल में भी डॉक्टरों के अलावा सरबजीत से कोई भी नहीं मिल सकता था। सिर्फ सरबजीत के परिवार के सदस्यों को भी कुछ क्षणों के लिए मिलने दिया गया। ऐसे में सरबजीत का परिवार पाक सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहा है।


49 साल के सरबजीत को 1990 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुए बम धमाके में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस धमाके में 14 लोगों की जान गई थी। गिरफ्तारी के बाद सरबजीत को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी। हालांकि परिवार की मुताबिक पाक में हुए धमाकों में सरबजीत का कोई हाथ नहीं था और वो गलती से भारतीय सीमा पार कर पाकिस्तान चला गया था। सरबजीत की मौत के साथ ही उनके परिवार की लंबी जद्दोजहद का अंत हो गया। अब परिवार की मांग है कि भारत सरकार सरबजीत को शहीद का दर्जा दे।

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