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जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को अफजल गुरु को फांसी दिए जाने पर अफसोस जताते हुए कहा, इससे आम कश्मीरियों में राष्ट्र की मुख्यधारा से विमुखता की भावना और ज्यादा मजबूत होगी। मुझे इस बात का भी अफसोस रहेगा कि परिजन फांसी से पूर्व गुरु से नहीं मिल सके। हम प्रयास करेंगे कि अफजल गुरु का शव उसके परिजनों को सौंपा जाए। विदित हो कि उमर की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस भी संप्रग का घटक दल है और उनके पिता फारूक अब्दुल्ला केंद्र सरकार में मंत्री हैं।
यहां एक टीवी चैनल से साक्षात्कार में मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरु की फांसी के बाद आम कश्मीरियों में धारणा बनी है कि फांसी देने का फैसला सियासी था। इसलिए संप्रग सरकार को साबित करना पडे़गा कि यह फैसला सियासी नहीं था। अफजल को फांसी दिए जाने की सूचना से मुझे कोई हैरानी नहीं हुई, लेकिन मेरी राय में उसे यह सजा न दी जाती तो ज्यादा बेहतर होता। उसे फांसी दिए जाने के कश्मीर में दूरगामी परिणाम होंगे, विशेषकर यहां की नौजवान पीढ़ी पर।
इसे आप मानो या न मानो, लेकिन आम अवाम में इस फांसी के बाद यह भावना मजबूत हुई है कि उसके साथ पूरा इंसाफ नहीं हुआ। फिलहाल, हमारा ध्यान इस बात पर है कि हम लोगों में राष्ट्र की मुख्यधारा से विमुखता कैसे और किस हद तक कम कर सकते हैं।
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अफजल का चश्मा, किताबें लौटाएगा तिहाड़ प्रशासन
लोकतंत्र के मंदिर को दहलाने की साजिश रचने वाला जैश ए मोहम्मद का आतंकी अफजल गुरू को सामने जब अपनी मौत नजर आई तो घबराहट में वह अपनी सुधबुध खो बैठा था। तिहाड़ जेल सूत्रों के अनुसार ब्लैक वारंट सुनकर वह इतना सहम गया था कि कुछ पल के लिए तो कुछ सोच ही नहीं पा रहा था। ऐसा लगा जैसे उसने कुछ सुना या समझा ही नहीं। इस बात पर वह यकीन नहीं कर पा रहा था कि जिस जेल में उसने 12 साल बिताए व महफूज रहा, वहां एकाएक ऐसा क्या हो गया कि उसकी मौत आकर दस्तक दे रही है।
अफजल की फांसी की प्रक्रिया में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी की माने तो वह इतना घबरा गया था कि पत्नी व बच्चे से मिलने की इच्छा भी जाहिर नहीं कर पाया। उसका चेहरा देखकर लग रहा था कि वह अंदर से काफी टूट गया था।
अफजल को तिहाड़ जेल-3 के हाई सिक्यूरिटी वार्ड में रखा गया था। जहां तमिलनाडु पुलिस के जवान 24 घंटे तैनात रहते थे। जेल सूत्रों के अनुसार मध्यम लंबाई का औसत काया वाला अफजल भले ही ज्यादा लंबा नहीं था। पर उसकी आवाज काफी बुलंद थी। वह जेल में किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करता था। यदि अधिकारी बात करते तो वह संसद पर हुए हमले के बारे में भी बात करता था। तिहाड़ जेल-3 के एक पूर्व जेल अधीक्षक को उसने पूरी कहानी बताई है, जिसमें उसने अपना गुनाह कबूल किया है। साथ ही उसने खुद को आतंकियों का एक मोहरा बताया है। एक अधिकारी ने बताया कि जेल में फांसी देने के लिए चल रही तैयारियों के कारण वैसे तो उसे पहले भनक लग गई थी। फिर भी उसे विश्वास था कि उसे राजनीतिक कारणों से उसे फांसी नहीं दी जाएगी। इस बात को लेकर हमेशा वह संतोष की मुद्रा में रहता था।
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क्यों और कैसी मची भगदड़, जानिए चश्मदीदों की जुबानी
हादसा कैसे, कहां और कब हुआ, निश्चित तौर पर पुलिस-प्रशासन के अफसरों के साथ ही लोग भी यह जानना चाह रहे थे। रेलवे अस्पताल में घायलों को लाया गया तो पीछे-पीछे उनके परिजन व साथी भी पहुंचे। यह इस हादसे के चश्मदीद थे। इन्होंने जो बताया उसे सुनकर हर कोई दंग रह गया।
बांदा निवासिनी घायल लक्ष्मी देवी के नाती अजय कुमार द्विवेदी ने बताया कि वह अपनी नानी के साथ प्लेटफार्म नंबर चार पर घर जाने के लिए ट्रेन पर सवार होने के लिए मौजूद था। अचानक लाउडस्पीकर से आवाज आई कि बांदा की तरफ जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म नंबर छह पर आएगी। यह सुनते ही प्लेटफार्म चार पर मौजूद लोग प्लेटफार्म छह की तरफ भागे। इसी बीच अचानक ओवरब्रिज पर भगदड़ मच गई। लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। कई लोग ओवर ब्रिज की रेलिंग टूटने से सीधे नीचे चले गए।
कटनी बड़गांव निवासी ज्योति के चाचा पूरन ने बताया कि ट्रेन पर सवार होने के लिए वह परिजनों व गांव के लोगों के साथ प्लेटफार्म नंबर छह पर ओवरब्रिज से आ रहे थे। पुलिसकर्मी भीड़ को रोक रहे थे और जब भीड़ नहीं रुकी तो पुलिसकर्मियों ने लाठी चला दी, जिससे भगदड़ मच गई। वह तो बाल-बाल बच गया, लेकिन उसकी भतीजी ज्योति व भाभी सकुन बाई गंभीर रूप से घायल हो गई।
सोनीपत निवासी प्रवीण कुमार ने बताया कि उन्होंने ऐसा हादसा कभी नहीं देखा। प्लेटफार्म अचानक बदलने के कारण भीड़ जब दौड़ी तो पुलिसकर्मियों ने लाठी चला दी, जिससे भगदड़ मची और हादसा हुआ।
फतेहपुर निवासी प्रकाश तिवारी की पत्नी लक्ष्मी घायल हुई हैं। प्रकाश ने बताया कि ओवरब्रिज पर अचानक आगे जा रही भीड़ भागी तो भगदड़ मच गई। उनके समझ में नहीं आया कि यह क्या हो गया। उनके मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही थी। सतना के बेटा लाल का कहना है कि ओवरब्रिज पर वह अपनी पत्नी बिट्टन व गांव के अन्य लोगों के साथ था, तभी अचानक भगदड़ मची और चीख पुकार मच गई।
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मिशन कंगारू : चयनकर्ताओं के इन चार फैसलों ने चौंका दिया
रविवार को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले दो टेस्ट मुकाबले के लिए टीम इंडिया का चयन हो गया। जहां शिखर धवन, भुवनेश्वर कुमार और हरभजन सिंह को टीम में जगह मिली है, वहीं गौतम गंभीर, पीयूष चावला और परविंदर अवाना को बाहर रखा गया है। चयनकर्ताओं के इस महत्वपूर्ण निर्णय में चार फैसले ऐसे हैं, जो क्रिकेट प्रशंसकों को चौंकाने वाले हैं।
1. सुरेश रैना पर भरोसा नहीं करना
भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ताओं ने सुरेश रैना को टीम में शामिल नहीं कर पहला चौंकाने वाला फैसला लिया। सुरेश रैना इन दिनों जबरदस्त फॉर्म में हैं। पहले इंग्लैंड के खिलाफ वनडे सीरीज की चार पारियों में लगातार चार अर्धशतक जड़ना, फिर ईरानी ट्रॉफी में शानदार शतक (134) और दूसरी पारी में अर्धशतक (71) लगाना भी चयनकर्ताओं को नहीं रिझा पाया। रैना टेस्ट टीम में वापसी को लेकर काफी प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए हाल में उनसे जितना बना, उन्होंने उतना किया। नंबर 6 पोजिशन के लिए जबरदस्त दावेदार के रूप में सामने आए, लेकिन चयनकर्ताओं ने उनके बदले रविंद्र जडेजा को ही टीम में शामिल करना उचित समझा।
2. वसीम जाफर पर ध्यान नहीं देना
टीम इंडिया के चयनकर्ताओं ने क्रिकेट प्रशंसकों को उस समय चौंका दिया जब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वसीम जाफर को टीम में जगह देना उचित नहीं समझा। जाफर के नाम रणजी ट्रॉफी में सर्वाधिक शतक (32) लगाने का रिकॉर्ड है। उनके शतक की बदौलत मुंबई ने रणजी ट्रॉफी पर 40वीं पर कब्जा जमाया। ईरानी ट्रॉफी में भी उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। पहली पारी में 80 रन बनाए और दूसरी पारी में नाबाद 101 रनों की पारी खेली। इसके बाद चयनकर्ताओं को उनका यह प्रदर्शन नजर नहीं आया।
3. अजिंक्य रहाणे का चयन
चयनकर्ताओं का तीसरा चौंकाने वाला फैसला रहा अजिंक्य रहाणे को टीम में जगह देना। रहाणे घरेलू टूर्नामेंट में ओपनिंग बल्लेबाज की भूमिका निभाते हैं। वर्तमानं टीम में तीन ओपनर मौजूद हैं : वीरेंद्र सहवाग, शिखर धवन और मुरली विजय। इनके रहते रहाणे को ओपनिंग करने का मौका नहीं मिलेगा। जहां तक रही बात 6ठे नंबर पर बल्लेबाजी करने की तो रहाणे वहां भी सफल नहीं हो सकते। इसके अलावा उनका हालिया अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन भी सराहनीय नहीं रहा है। रैना और जाफर से तुलना की जाए तो उनका प्रदर्शन कहीं भी उनसे बेहतर साबित नहीं होता। इसके अलावा उनके पास अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच का अनुभव भी नहीं है। इसमें भी शक है कि कप्तान धौनी उन्हें अंतिम एकादश में जगह दें। इन सब बात को जानते हुए भी दो महत्वपूर्ण खिलाडि़यों को दरकिनार करते हुए चयनकर्ताओं ने रहाणे को टीम में शामिल कर लिया।
4. ईश्वर पांडे की मेहनत रंग नहीं लाई
वर्तमान रणजी ट्रॉफी सीजन में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज ईश्वर पांडे को भी टीम में शामिल नहीं किया गया। मध्यप्रदेश के इस तेज गेंदबाज ने 48 विकेट लेकर सबको चौंका दिया था। ऐसा लग रहा था कि उनका चयन टीम इंडिया में इस बार जरूर हो जाएगा, लेकिन चयनकर्ताओं ने अशोक डिंडा को शामिल करना उचित समझा। गौरतलब है कि डिंडा के पास भी अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट का अनुभव नहीं है और उनका हालिया फॉर्म भी कुछ खास नहीं है।
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