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धरती पुत्र किसान का जीवन, अब उस पर ही भारी है.

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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सम्मानित,

जे. जे. परिवार, मंच के सशक्त रचनाकार बंधू, गुरुजन, मित्रगण और प्यारे पाठक बंधू.

यह रचना बदले हुए शीर्षक के साथ पुनः आपकी सेवा में इस प्रस्तुत कर रहा हूँ. जब मैंने इस मंच पर अपना ब्लॉग बनाया था, तब सर्व प्रथम यही रचना पोस्ट की थी किन्तु उस समय चूँकि इस मंच पर मैं नया रचनाकार था इसलिए ये रचना ज्यादा पसंद नहीं की गई थी.

पुनः इस आशय के साथ इस रचना पोस्ट कर रहा हूँ की आप सभी का समर्थन जरुर प्राप्त होगा.

प्रस्तुत है रचना………………………..

आओ मिलजुल कर करले, बातें अब दो चार जनाव !

देख दशा इस लोकतंत्र की, आँख से बहती धार जनाव !!

बदल गई है वर्तमान में लोकतंत्र की परिभाषा !

बदल गए सब रिश्ते नाते बदल गई सबकी भाषा !!

आज़ादी के नारे बदले और बदला संविधान !

दो पाटों के बीच पिस रहा नवयुग का इन्सान !!

चोर निकम्मों के हाथों में नित आती सरकार जनाव !

देख दशा इस लोकतंत्र की, आँख से बहती धार जनाव !!

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सुरसा जैसा मुंह फैलाये, राह में बैठी मंहगाई !

चमचे ही अब चाट रहे है, लोकतंत्र की दूध मलाई !!

नोटों का बण्डल पड़ता, अब डिग्री पर भारी है !

गरीब ग्रेजुएट पीछे रहता, यह उसकी लाचारी है !!

थर्ड क्लास को नौकरी मिलती, फर्स्ट क्लास बेकार जनाव !

देख दशा इस लोकतंत्र की, आँख से बहती धार जनाव !!

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दब कर क़र्ज़ के बोझ से उसने, मौत की करली तैयारी !

लाभ कोई भी दे न पाती, योजना उसको सरकारी !!

भूख प्यास के कारण भैया, नित्य पलायन जारी है !!

धरती पुत्र किसान का जीवन, अब उस पर ही भारी है !

विलख रहा है भूख से अंपने देश का अब आधार जनाव !

देख दशा इस लोकतंत्र की, आँख से बहती धार जनाव !!

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भारत को नंगा करने की सबने करली तैयारी !

मानवता के ढेर में डाली भ्रष्टाचार की चिंगारी !!

जला दिए गाँधी के सपने फैला दी रिश्वत की राख !

अन्याय-पाप के बोझ से लदकर टूट रही है शाख !!

कल तक जो पैदल चलते थे, अब चलाएंगे कार जनाव !

देख दशा इस लोकतंत्र की, आँख से बहती धार जनाव !!

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सुबह उठा देखा अखबार, खबर पड़ी दिल दहल गया !

एक बेचारा भूख के कारण इस दुनियां से टहल गया !!

दाने-दाने को भटका था, पर कोई न आया काम !

भरे- भरे सड़ रहे दोस्त के गेंहूँ से गोदाम !!

स्पर्धा की अंधी दौड़ में निर्धन है लाचार जनाव !

देख दशा इस लोकतंत्र की, आँख से बहती धार जनाव !!

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