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ग़ज़ल : “सय्याद ने कफस को रखा चमन के पास”

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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(Kafas)

जाने को हूँ बैचैन मैं, अपने सजन के पास !
सय्याद ने कफस को, रखा चमन के पास !!
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गुलशन की महक मुझको अच्छी नहीं लगी,
रहना नहीं है मुझको ऐसी घुटन के पास !
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महरूम हो गया हूँ, दुनियाँ की चमक से,
घर बन गया है देखो मेरा तपन के पास !
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मैंने हसीन ख्वाव सजाया था आँख में,
खोली जो मैंने आँख तो पाया चुभन दे पास !
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मैयत की मेरी दोस्तों तैयारियां करो,
अब ले चलो यहाँ से मुझको अमन के पास !
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मैं तो चला गया हूँ दुनियाँ से बहुत दूर,
फरमान अपना रख दो चलती पवन के पास !
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जब था कफस में कैद तो आये नहीं करीब,
अब रो रहे हो बैठकर मेरे कफ़न के पास !
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जुल्मो-सितम से मुझको सताया गया बहुत,
दिल काट कर रखा गया मेरा अगन के पास !
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दुनियाँ की ठोकरें मिलीं “अंकुर” तुझे बहुत,
राहत मिली, सुकूं मिला, रब के वतन के पास !
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सय्याद = शिकारी,    कफस = पिंजरा,     मैयत = अर्थी

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