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जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में पूजा हो !!
तन्हाई की कब्रों में अब,
दफ़्न हुए सारे अरमां !
दम निकले उसकी बाँहों में,
घर में जिसके पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में पूजा हो !!
पंकज पथिक प्रेम का मारा,
अथाह नीर में कुम्हलाया !
नैवेद्य- पात्र में उसे सजा लो,
जब भी कोई पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में पूजा हो !!
अस्तित्व हीन पंकज पूजा बिन,
पंकज बिन सूनी पूजा !
खो जाओ एक दूजे में तुम,
जहाँ भी पावन पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में पूजा हो !!
कीचड़ का वो रहने वाला,
तूं देवों की है दासी !
एक राह के दोनों राही,
तुम दोनों ही पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में पूजा हो !!
प्रेम राग हर दिशि में गूंजे,
हो जाये जग मतवाला !
“अंकुर” की बस अर्ज़ यही है,
घर-घर प्रेम की पूजा हो !
जीवन के धुंधले दर्पण में , पास न कोई दूजा हो !
मिल जाएँ सारी खुशियाँ जब, मन मंदिर में पूजा हो !!
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