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करुणा का स्वर एक कानों में सुनाई दिया,
मम्मी- मम्मी मै भी घर आना तेरे चाहती हूँ /
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भरूँ किलकारी अंगना में तेरे खेलूं खूब,
घर-आँगन को सजाना बस चाहती हूँ/*
*/सूनी है कलाई भाई बेचारा अकेला वहां,
धागा उसके हाथ में सजाना एक चाहती हूँ/*
*/.
दया तो दिखाओ जरा, घृणा से घूरो नहीं,
फ़र्ज़ बेटी होने का निभाना बस चाहती हूँ/*
*/ममता का नाम कहीं बदनाम हो न जाए,
फ़र्ज़ तेरा तुझको बताना अब चाहती हूँ/*
*/.
मैं हूँ नन्हा जीव जीना अधिकार मेरा भी है,
जड़ता से मुक्ति दिलाना सिर्फ चाहती हूँ/*
*/मान मेरी बात वरना लगेगा मेरा श्राप,
पाप भूर्ण हत्या का कराना नहीं चाहती हूँ/*
*/.
मांगती हूँ भीख अपने प्राणों की है मात आज,
जग-जननी मैं बनाना तुझे चाहती हूँ/*
*/चाहती हूँ देखना चेहरा तेरा एक बार,
ममता के साये में समाना बस चाहती हूँ./*
*/.
मेरा अधिकार गर, लगता है तुझे भार,
खुशिओं के लिए तेरी, मर जाना चाहती हूँ.
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वेदना अकेला “अंकुर” किस-किस को बताता फिरे,
अंधे और बहरों के हाथ में लगाम है/*
*/सब है नशे में चूर मद और मय के ,
हाथ में सभी के बस क्रूरता का जाम है/*
*/.
काम-लोभ-वासना पे, काबू खुद पाता नहीं.
ममता को करता, खुले में बदनाम है,
समता के दौर में , समान तू सुता को मान,
दान इस जहान में, महान कन्यादान है/*
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