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दान इस जहान में, महान कन्यादान है…

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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करुणा का स्वर एक कानों में सुनाई दिया,

मम्मी- मम्मी मै भी घर आना तेरे चाहती हूँ /

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भरूँ किलकारी अंगना में तेरे खेलूं खूब,

घर-आँगन को सजाना बस चाहती हूँ/*

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सूनी है कलाई भाई बेचारा अकेला वहां,

धागा उसके हाथ में सजाना एक चाहती हूँ/*

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दया तो दिखाओ जरा, घृणा से घूरो नहीं,

फ़र्ज़ बेटी होने का निभाना बस चाहती हूँ/*

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ममता का नाम कहीं बदनाम हो न जाए,

फ़र्ज़ तेरा तुझको बताना अब चाहती हूँ/*

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मैं हूँ नन्हा जीव जीना अधिकार मेरा भी है,

जड़ता से मुक्ति दिलाना सिर्फ चाहती हूँ/*

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मान मेरी बात वरना  लगेगा मेरा श्राप,

पाप भूर्ण हत्या का कराना नहीं चाहती हूँ/*

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मांगती हूँ भीख अपने प्राणों की है मात आज,

जग-जननी मैं बनाना तुझे चाहती हूँ/*

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चाहती हूँ देखना चेहरा तेरा एक बार,

ममता के साये में समाना  बस चाहती हूँ./*

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मेरा अधिकार गर, लगता है तुझे भार,

खुशिओं के लिए तेरी, मर जाना चाहती हूँ.

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वेदना अकेला “अंकुर” किस-किस को बताता फिरे,

अंधे और बहरों के हाथ में लगाम है/*

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सब है नशे में चूर मद और मय के ,

हाथ में सभी के बस क्रूरता का जाम है/*

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काम-लोभ-वासना पे, काबू खुद पाता नहीं.

ममता को करता, खुले में बदनाम है,

समता के दौर में , समान  तू सुता को मान,

दान इस जहान में, महान कन्यादान है/*

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