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लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /
जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*
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ला-इलाज ये रोग है प्यारे, न इसकी है परिभाषा /
धन हरता और हरे विवेक ये, हरता मन की अभिलाषा/*
*/मर्यादाएं रख बस्ते में युवजन लव-लव चिल्लाये /
लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /
जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*
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मर्यादाएं भंग हो रही, तंग हो रही चोलियाँ /
सबसे सस्ती देह हो गई, लगने लगी हैं बोलियाँ/*
*/पश्चिम की इस चकाचौंध में, मानवता मर-मर जाये /
लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /
जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*
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शहरों के कोतुहल में अब, बंद ज्ञान की शालायें /
फैशन के दलदली दौर में, देह बेचकर पेट पालती बालायें/*
*/खा-खाकर इस दौर के धक्के, मन क्रोध से भर जाये /
लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /
जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*
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प्रेम शब्द लव से अतिसुन्दर, संस्कृति को प्यारा है /
पाश्चात्य के कुप्रभाव से, अब ये लव से हरा है/*
*/देख दशा युवजन समाज की, दृग “अंकुर” के भर आये /
लव का चक्कर बड़ा भयंकर, कोई भी बच न पाये /
जो भी आये पास तो भैया, इसमें धसता ही जाये/*
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