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तुम नवांकुर से, सुद्रण तरु का,
ग्रहण संकल्प लेकर,
पथ सृजित अपना करो,
आगे बड़ो, द्रनता लिए,
संबल बनो तुम आत्म के,
उन्नति शिखर की ओर –
एकाकी चलो,
निर्माण अपना मार्ग,
अपने आप हो.
धैर्य की पूंजी ,
न कष्टों में कहीं तुम खर्च करना,
ज़िन्दगी से जूझना, लाचारिओं को तुम हराना.
तुम सदा मकशद लिए आगे बड़ो.
डगमगाएं पैर तो-
बैशाखिओं का लो सहारा,
जो की हिम्मत और द्रनता से बनी हो.
ज्वर उठता सिन्धु में तरनी उछलती और गिरती,
किन्तु नाविक जूझता हारे बिना पाता किनारा.
शक्ति और विवेक बल पर.
तुम मनुज हो,
जानते हो-
हर ख़ुशी क्रय की नहीं जाती कभी भी,
शक्ति से उस पर विजय पाते मनुज द्रण.
का पुरुष तो-
सहज- सरल- सुबोध पथ के पक्षधर बन,
कूप-कच्छप बन
उसी को विश्व सारा मानते है.
किन्तु-
वीरों के लिए ,
संघर्ष का पथ सहज पथ है.
मुश्किलें,
आनंद का पर्याय बनती.
इसलिए तुम मान लो यह,
ज़िन्दगी संघर्ष का पर्याय है,
म्रत्यु भी हमको न सकती मार यदि,
पास में संघर्ष मात्र उपाय है.
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