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“माँ के आँचल की कसक का मोल न आँका जाये” (कुंडली छंद)

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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(१)
माता इस संसार में, बच्चों की भगवान /
खुद तो वो भूखी रहे, हमको दे पकवान/*
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हमको दे पकवान, छांव आँचल की देती /
देती ज्ञान अपार, कुछ भी हमसे न लेती/*
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कहि अंकुर कविराय, माँ के क़दमों में जन्नत /
जो रखे माँ का मान, पूर्ण उसी की मन्नत/*
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(२)
माँ आँचल का तेरे, मोल न आँका जाय /
बचपन में लाकर दिया, जो-जो मुझको भाय/*
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जो-जो मुझको भाय, सदा हित मेरा सोचा /
जब रोया तो आँख, से आंसू तूने पोंछा/*
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कहि अंकुर कविराय, थाह ममता की गहरी /
जानें सब ये बात, गांव का हो या शहरी/*
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(३)
कभी चुका न पाउँगा, माता तेरा क़र्ज़ /
क्षण भर में ही भांपती, माँ तू मेरा मर्ज़/*
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माँ तू मेरा मर्ज़, तड़प जाती थी ऐसे /
बिन पानी के मीन, जगत में तड़पे जैसे/*
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कहि अंकुर कविराय, त्याग तेरा है निश्छल /
तेरे कारन भाग बना, मेरा है उज्जवल/*
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(४)
माँ अब तक भूला  नहीं, मैं वो काली रात /
जब नियति ने किया था, संग मेरे आघात/*
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संग मेरे आघात, अंग था मेरा छीना /
तब करूणा से फटा, मात था तेरा सीना/*
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कहि अंकुर कविराय, मार्ग का बनी सहारा /
तेरा साहस देख, कभी मैं भी न हारा/*
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(५)
रग-रग में जो रक्त है, है तेरी ही देन /
पीड़ा सहती तू रही, दिन हो या हो रेन/*
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दिन हो या हो रेन, प्रसव की पीड़ा झेली /
किए बहुत अपराध, डांट अब तक न पेली/*
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कहि अंकुर कविराय, सत्य का पाठ पठाया /
झूठ न भटके पास, साहसी शस्त्र थमाया/*
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(६)
धरती-गगन-तारे-रवि, बिन माँ के बेकार /
जीवन बंजर सा लगे, सूना सब संसार/*
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सूना सब संसार, भाग को रचै विधाता /
संस्कार सिखलाय, जिंदगी रचती माता/*
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कहि अंकुर कविराय, धन्य माँ का है साया /
धन-दौलत बेकार, और है मिथ्या माया/*
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(७)
बेटा मेरा हो सही, हर माता की चाह /
रंच मात्र देती नहीं, अपने लाल को आह/*
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अपने लाल को आह, जिगर में उसे बिठाती /
माँ होने पर मंद-मंद, मन में मुस्काती/*
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कहि अंकुर कविराय, उपकार चुका न पाऊं /
निशि-वासर मैं तो बस, माँ के ही गुण गाऊं/*
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(८)
धरती पर मौजूद है, तरह-तरह के लोग /
माता से घृणा करे, लगता है जब रोग/*
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लगता है जब रोग, पत्नी पर जान लुटाते /
खुद ले छप्पन भोग, बाप-माँ को तरसाते/*
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कहि अंकुर कविराय, द्रग से नीर छलकता /
माँ की ममता से फिर भी, आशीष निकलता/*
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(९)
पहले भी नादान था, अब भी है नादान /
नादानी के फेर में, भूला माँ का मान/*
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भूला माँ का मान, कोख तुझको धिक्कारे /
जिसने सिंचित किया तुझे, तू उसको ही मारे/*
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कहि अंकुर कविराय, सुनो जगत कल्याणी /
भर दो ऐसा भाव, मृदु हो सबकी वाणी/*
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(१०)
गधा चराने एक दिवस, निकला मेरा यार /
खुद चरके घर आ गया, गधा था होशियार/*
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गधा था होशियार, यार मेरा था भोला /
दबा गया ह्रदय में , जलता आग का गोला/*
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कहि अंकुर कविराय, गधों से दूर ही रहिए /
सोच समझ कर बात, माँ के बारे में कहिए/*
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(११)
एक ज्ञानी ने कर दिया, एक अनौखा काम /
ममता को घायल किया, और किया बदनाम/*
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और किया बदनाम, ज्ञान है देता सबको /
मूर्खता पर उसकी, दया आती है हमको/*
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कहि अंकुर कविराय, अहम् उस पर है हावी /
ममता होती पाक, बताता फिरे खराबी/*
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(१२)
देना सदवुद्धि हमें, देना दाता ज्ञान /
हो न जाये भूल से, कहीं माँ का अपमान/*
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कहीं माँ का अपमान, बना दे शिष्टाचारी /
मांग रहा आशीष, हाथ फैलाए भिखारी/*
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कहि अंकुर कविराय, आस न टूटे स्वामी /
तेरा हूँ मैं दास, सुनो मम अंतर्यामी/*
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