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मैं लिखूं गीत ……………..

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /

जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*

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जो आशाओं का स्वप्न संजोया आँखों में,

मत तोड़ो पुष्प छिपा है भंवरा पाँखों में,

जीवन है जटिल, जीने का कोई गुर देना /

मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /

जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*

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पल्लव पावस की हरेक बूंद से लड़ता है,

पतझड़ आते ही पात धरा पर गिरता है,

पतझड़ से भी लड़ जाऊं मंत्र मधुर देना /

मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /

जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*

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त्याग- तपस्या- प्रेम भाव को कंठ लगा,

कटुता न आये पास उसे तूं दूर भगा,

पाणि- वाणी को ओज दास को वर देना /

मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /

जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*

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“अंकुर” छोटा सा जीव सही पर ज्वाला है,

शब्दों के साथ रहा, शब्दों ने पाला है,

कविता को जान, चिंतन को ज्ञान प्रखर देना /

मैं लिखूं गीत तो तुम गीतों को सुर देना /

जब थक जाऊं तो साथ मुझे प्रचुर देना/*

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