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वेनूर ज़िंदगी……… (ग़ज़ल)

कड़वा सच ......
कड़वा सच ......
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आमाल में अख़लाक़ मिलाने से क्या मिला.
वेनूर ज़िन्दगी के फ़साने से क्या मिला..

हालात ऐसे हो गए हैं अब तो दोस्तों.
नगमा वफ़ा का तुझको सुनाने से क्या मिला..

घर काँच का बनाया और पत्थर से डर गया.
अरमान को फौलाद बनाने से क्या मिला..

काली घटा के साये हैं शमशान की आहट.
अपनों पे खून अपना बहाने से क्या मिला..

आवाज तुझको दे रही हैं जलती बस्तियाँ.
खुद अपना हाथ तुझको जलाने से क्या मिला..

मेरी तमाम कोशिशें बेकार हो गईं.
उजड़े हुए चमन को बसाने से क्या मिला..

जब आशियाँ बारूद से तैयार है तेरा.
उसमे वफ़ा का ख्वाव सजाने से क्या मिला..

मैयत के पास बैठके क्यों रो रहा है तूँ.
तुझको चराग घर का बुझाने से क्या मिला..

नफरत की आँधियाँ है और सैलाब हर तरफ.
“अंकुर” तुझे बता दे ज़माने से क्या मिला..
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