kaduvi-batain
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(रचना काल- १४ मई , २०१३ )
ऊपर छत पे चाँद आता रहा|
नीचे वो रोज पहरे लगाता रहा|
निकम्मा हो गया एक दिन वो, जो
हराम की रोटियां ता-उम्र खाता रहा|
बूड़े माँ-बाप की इज्ज़त ना कर सका कभी|
अपने बच्चों को जो इज्ज़त करना सिखाता रहा|
पूछने आया था बीमार का हाल एक मेहरबां|
वो अजीब शख्श अपनी परेशानियाँ ही बताता रहा|
Copyright@Himanshu Nirbhay
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