kaduvi-batain
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रचना काल- ३० अप्रैल २००३
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ओ ऊंचे महलों वालो,
तनिक द्रष्टि नीचे भी डालो
भूखे-प्यासे-बेबस कितने,
जीवन रोज़ यहाँ मिटते हैं|
तड़फ तड़फ कर, सिसक सिसक कर,
कितने सपने यहाँ बिकते हैं|
फूलों सी कोमल शैय्या पर,
बेचैनी की नींद बुलाकर,
सो जाते हो जब तुम छुपकर,
तभी धरा के अल्पभाव मैं
कितने नयन यहाँ जागते हैं|
क्षुधापूर्ति जब तुम करते हो,
सुरापान का रस लेते हो,
सपनीली राहों पे चलते हो,
उसी राह पे न जाने कितने,
भूखे पेट यहाँ दीखते हैं|
वैभव का यह दंभ हटाकर,
करुणा के आँगन मैं आकर,
थोड़ी सी दया दिखला दो–
इसी आस मैं पंक्तिबद्ध हो,
कितने पग खड़े थकते हैं|
ओ ऊंचे महलों वालो,
तनिक द्रष्टि नीचे भी डालो
Copyright@Himanshu Nirbhay
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