ये वक़्त बीत जायेगा,
धीरे धीरे ये घाव भी ठीक हो जाएगा,
ये थकन, ये बदन दर्द, ये पैरो का दुखना,
इस धुप की तपन भी शायद घर मे,
मा के आंचल की छाव मे धुल जायेगा,
लेकिन कुछ बाते हैं जो भुलाया ना जायेगा
ये डरावनी यादे, भुखे बिलखते बच्चे,
रो रोकर वतन की ओर कदम बढाती,
भुखी प्यासी गर्भवती माए,
ये सामाजिक दुरी का नकली नारा
और ट्रको मे भर के, डरते छुपते मजदुर,
वो मजदुर जो बचपन से सुनते सुनाते थे
कि मरने वाला कुछ लेकर नही जाता और
खुद भुख व प्यास मन भर कर ले गये,
वो मजदुर दम्पत्ती जो बैलगाडी मे दुसरे बैल की जगह
खुद को भी बांध कर बारी बारी से,
अपने परिवार की सवारी खींचते है
मानो अपने बैल को भी हौंसला देते हो,
वो मजदुर जिन्हे जीते जी कोइ सवारी नसीब ना हुई
थक के सोये और मालगाडी से जब कट गये
फिर आयी सवारी उन्हे लेने,
जिन्हे मल्कुल मौत पहले ही ले जा चुके थे
हमारे जहनो मे सब याद रखा जायेगा
याद रखी जायेंगी
ये निकम्मी सरकारे, ये निकम्मा पक्ष और विपक्ष
वो पटाखो के साथ पीटी गयी तालिया और थालिया
ये बडे बडे जुमले और कभी ना निभाने वाले वादे
ये राजनीती, ये बैमानी, ये लुट, ये चाले
वो गरीबो पर भांजी गयी लाठीया और
वो अमीरो के घर पहुचाये गये केक
सब याद रखा जायेगा
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