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देखा मैंने उन्हें कुछ यूं

रावत की कलम से
रावत की कलम से
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देखा मैंने उन्हें  कुछ यूं

सड़क किनारे कुछ ढूंढते हुए

कचरे के ढेर में कुछ तलाशते हुए

जल्दी थी हमें वहां से जाने की

और हम नाक बंद कर रहे थे

पर प्रसन्न से वो दिख रहे थे

वो अपनी रोजी रोटी ढूढ़ रहे थे

फ़ेंक दिया जिसे हम लोगों ने

उसे वो ध्यान से टटोल रहे थे

मिलता जैसे ही कुछ कूड़े में

वो लोग बहुत खुश हो रहे थे

कुछ बच्चे कुछ बूढ़े कुछ जवान

कूड़े के ढेर पर था सबका ध्यान

थैला था एक बड़ा सा यूँ हाथ में

एक डंडा भी था उनके हाथ में

कपडे थे उन लोगों के बड़े मैले

भर रहे थे वो कूड़े से अपने थैले

थैले होते जा रहे थे उनके भारी

हे प्रभु कैसी है ये गरीबी लाचारी

दिन भर कूड़े के ढेर पर बैठे हैं

रात को सड़क किनारे झोपडी में

न जाने कैसे वो जमीन पर सोते हैं

कभी हँसते, कभी किस्मत पर रोते हैं

हे प्रभु यह कैसा संसार रचा दिया

कोई राजा तो कोई रंक बना दिया

हे प्रभु बस इतना सब को देदो

कट जाये जिंदगी आराम से देदो

न कोई छोटा न कोई बड़ा हो यहां

भेदभाव का नामों निशां न रहे यहां

रच दो ऐसी लीला अब तो हे प्रभु

एक सा हो जाये ये सारा अब जहां

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत

“गढ़वाली इंडियन” दिनांक -१०-०३-२०१२

बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

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